दे जाना चाहता हूँ तुम्हे

ऊब और उदासी से भरी इस दुनिया में
पांच हंसते हुए सालों के लिए
देना तो चाहता था तुम्हे बहुत कुछ

प्रकृति का सारा सौंदर्य
शब्दों का सारा वैभव
और भावों की सारी गहराई

लेकिन कुछ भी नहीं बच्चा मेरे पास तुम्हे देने के लिए

फूलों के पत्तों तक अब नहीं पहुंचती ओस
और पहुँच भी जाए किसी तरह
बिलकुल नहीं लगती मोतियों सी

समंदर है तो अभी भी उतने ही
अद्भुत और उद्दाम
पर हर लहर लिख दी गयी है किसी और के नाम

पह्दों के विशाल सीने पर
अब कविता नहीं
विज्ञापनों के जिंगल सजे हैं

खेतों में अब नहीं उगते स्वप्न
और न बंदूकें ...
बस बिखरी हैं यहाँ-वहां
नीली पद चुकीं लाशें

सच मनो
इस सपनीले बाज़ार में
नहीं बचा कोई दृश्य इतना मनोहारी
जिसे दे सकूँ तुम्हारी मासूम आँखों को
नहीं बचा कोई भी स्पर्श इतना पवित्र
जिसे दे सकूँ तुम्हे पहचान की तरह

बस
समझौतों और समर्पण के इस अँधेरे समय में
जितना भी बचा है संघर्षों का उजाला
समेटकर भर लेना चाहता हूँ अपनी कविता में
और दे जाना चाहता हूँ तुम्हे उम्मीद की तरह
जिसकी शक्ल
मुझे बिलकुल तुम्हारी आँखों सी लगती है

टिप्पणियाँ

"और दे जाना चाहता हूँ तुम्हे उम्मीद की तरह
जिसकी शक्ल
मुझे बिलकुल तुम्हारी आँखों सी लगती है"
बहुत खूबसूरत शब्द और भाव....
आप की बिटिया हमेशा सुखी रहे इसी कामना के साथ.
नीरज
Bahadur Patel ने कहा…
bitiya hamari jiye hajaron sal. bitiya ko bahut badhai . kavita ka jawab nahin . bahut sundar. likhaten rahen.
विधुल्लता ने कहा…
फूलों के पत्तों तक अब नहीं पहुंचती ओसऔर पहुँच भी जाए किसी तरहबिलकुल नहीं लगती मोतियों सी aआपकी कविताओं मैं जो संवेदना है ,जो एक गहरी अनुभूति है,जीवन मूल्यों से अलग हुए लोगों के लिए शब्दों की तलाश से आगे हैं जो सुख और दुःख को एक साथ पोषित करती है ,
बेनामी ने कहा…
Aapke blog par aapkee lagbhag
sabhee kavitayen padh gayaa hoon.
Sabhee kavitayen khoob hain.Aapkee
nayee kavita bhee khoob hai.
Shubh kamnayen.
रजनीश 'साहिल ने कहा…
Bahut sundar Ashok bhai,

Blog ki duniya me naya-naya shaamil hua hoon, aapki talash me tha aur aap mil gaye.

Jitna gahan bhaav utne hi sundar shabd. badhai.
बेनामी ने कहा…
Kavitayein Naye Tavar Ki Hain. Aasha hai yahi varkrar rahega.
Aseem ने कहा…
yahi antar hai ek vicharak aur doosron me..,,jahan na jaye ravi wahan jaye kavi...

acha likha hai ashok..likhte raho

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