मत करना विश्वास




मत करना विश्वास
अगर रात के मायावी अन्धकार में
उत्तेजना से थरथराते होठों से
किसी जादुई भाषा में कहूं
सिर्फ़ तुम्हारा हूँ मैं

मत करना विश्वास
अगर सफलता के श्रेष्ठतम पुरस्कार को
फूलों की तरह गूँथते हुए तुम्हारे जूडे मे
उत्साह से लडखडाती हुई भाषा में कहूं
सब तुम्हारा ही तो है!

मत करना विश्वास
अगर लौट कर किसी लम्बी यात्रा से
बेतहाशा चूमते हुए तुम्हे
एक परिचित सी भाषा में कहूं
सिर्फ़ तुम आती रही स्वप्न में हर रात
हालांकि सच है यह
कि विश्वास ही तो था वह तिनका
जिसके सहारे पार किए हमने
दुःख और अभावों के अनंत महासागर
लेकिन फ़िर भी पूछती रहना गाहे बगाहे
किसका फ़ोन था कि मुस्करा रहे थे इस क़दर ?
पलटती रहना यूं ही कभी कभार मेरी पासबुक
करती रहना दाल में नमक जितना अविश्वास!

हंसो मत
ज़रूरी है यह
विश्वास करो
तुम्हे खोना नही चाहता मैं

टिप्पणियाँ

बेहद नाजुक संबंध पर बेहद प्रभावी कविता। शायद इस विषय पर मेरी पढी उन कविताओं में से एक जो भुलायी नहीं जा सकती।
अनिल कान्त ने कहा…
अशोक जी बहुत अच्छी रचना लगी मुझे ... मत करना विश्वास ...सही कहा आपने ....सहमत हूँ मैं
कडुवासच ने कहा…
एक परिचित सी भाषा में कहूं
सिर्फ़ तुम आती रही स्वप्न में हर रात
... कुछ अलग व प्रभावशाली है।
Bahadur Patel ने कहा…
ashok bhai bahut badhiya kavita hai.
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत उम्दा भाव!! बेहतरीन.
बेनामी ने कहा…
bhaiyya ,

is baar to gazab kar diya aapne .. jabardasht poem , mera salaam kabul karo yaar... kya gahrai hai .. wah ji wah ...

maza aa gaya .... do baar pad chuka hoon ...

kudos dear

vijay kumar sapatti

(mail par prapt)
Arvind Mishra ने कहा…
adbhut bhav , sachhe abhivyakti !1 isliye hee kabhee shresth kavitaaon ke vashtigat bhaav maanon samshti ke swar ban jate hain !
Sushil Kumar ने कहा…
अपने चरित्र के पूरे खुलेपन के साथ अशोक का कवि अपनी प्रेयसी के विश्वास को अर्जित करता है इस कविता में अविश्वास का विश्वास के अंतर्द्वंद्व के साथ। यही प्रेम के भरतीय चित्त लक्षण है जो उनकी इस कविता में अनुभव में समाया है। यह प्रेम की उन रागालाप करती कविताओं से अलग और विलक्षण है जिसे देखकर लगता है कि प्रेम कविताओं में अगर आत्मबद्धता कपूर की तरह उड़कर वह प्रेम की सच्ची अभिव्यक्ति बन जाये तो वह पाठकों को प्रभावित किये बिना नही रह सकती।
ati sudho saneh ko marag hai , yaha sayan pan bank nahi tum koun si pati padhe ho lalaa man leo ,dehu chatank nahi...bahut hi saral or hraday sparshee bayangee hai . badhai
neera ने कहा…
Wow! gazab ki kavita!
Krishna Patel ने कहा…
bahut achchha likha apne.
Jayram Viplav ने कहा…
kawita pasand aayi .........
Amit Kumar Yadav ने कहा…
Bahut sundar...!!
___________________________________
युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
बेनामी ने कहा…
are yaar aap bahut accha likhte hain
Ashok Kumar pandey ने कहा…
शुक्रिया दोस्तों

आप सबका उत्साह सँवर्धन मेरा प्रेरणास्रोत बनेगा।
bahut hi badhiya bhaisahab ,kamaal likha hai. punah bahut umda
saloni ने कहा…
aapki kavita lajawab hai.
pehli baar apke blog ko dekha hai bahut sunder abhivyakti hai
mark rai ने कहा…
mera comment swikar kare naya bloggy hoon
mark rai ने कहा…
i want to know more about blogging what can do.
Ashok Kumar pandey ने कहा…
नवीन जी, सलोनी जी,निर्मला जी तथा मार्कण्डेय जी आप सबका आभार।
kya baat hai....! bahut bahut bahut khoob....! naveenata..! bhavparavanata...! man ko chhoo gai...!
राहुल यादव ने कहा…
sach kahu to mere paas shabd nhi hain aapki rachna ko dene ke liye ......
राहुल यादव ने कहा…
shabd nhi hai,, kuch kanhe ho,, bahut khoob......
रजनीश 'साहिल ने कहा…
gulab ki tarah nazuk,
usi ki tarah sugandhit hai,
sochta hoon apne rishte me bhi
kuchh kante hote to achha hota.

aapki rachna padhkar ruk nahin saka ye panktiyan likhne se.
विजय गौड़ ने कहा…
apne par yakeen karo bhai ashok
jadui bhasha me nahi hakikat me pukaro wah naam jise vishvash dilana chahte ho.
achchhi hai.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अलविदा मेराज फैज़ाबादी! - कुलदीप अंजुम

पाब्लो नेरुदा की छह कविताएं (अनुवाद- संदीप कुमार )

मृगतृष्णा की पाँच कविताएँ