यह आप पर है
मै लिखना चाहता था शेर
उन्होंने कहा
कविता में बस बना दी जाती है पूँछ
अब यह पाठक पर है
कि शेर समझे या बकरी
मै करना चाहता था प्रतिवाद
उन्होंने कहा
कविता में बस लगा दी जाती है तीन बिंदी
अब यह आलोचक पर है
कि प्रतिवाद समझे या स्वीकार
मै चाहता था ठठाकर हँसना
उन्होंने कहा
कविता में बस खींच देते है सीधी रेखा
अब यह संपादक पर है
की तय कर ले आकार
रोने के साथ नही है ऐसा
रुदन ही है हमारे समय का
समय का सबसे बड़ा सच
जो जितनी जोर से रोये
वह उतना ही प्रतिबद्ध
उन्होंने कहा
कविता में बस बना दी जाती है पूँछ
अब यह पाठक पर है
कि शेर समझे या बकरी
मै करना चाहता था प्रतिवाद
उन्होंने कहा
कविता में बस लगा दी जाती है तीन बिंदी
अब यह आलोचक पर है
कि प्रतिवाद समझे या स्वीकार
मै चाहता था ठठाकर हँसना
उन्होंने कहा
कविता में बस खींच देते है सीधी रेखा
अब यह संपादक पर है
की तय कर ले आकार
रोने के साथ नही है ऐसा
रुदन ही है हमारे समय का
समय का सबसे बड़ा सच
जो जितनी जोर से रोये
वह उतना ही प्रतिबद्ध
टिप्पणियाँ
yah ek prayas hai ise jitana chaho lamba kar sakte ho.
हमारे समय का
समय का
yahan bhi kuchh dikkat hai.
achchha vyng hai.
जोरदार डंका बजा दिया
जैसे लंका में हनुमान ने तिरंगा फहरा दिया
tumhari ray mere liye mahatvpoorn hai. par kavita ke ve koun se pratiman hain jinake adhar par kisi rachana ki vastusthiti tay ki jaegi?
vyazna ki had yah hai ki yahi smajh nahi ata rki koun kis ka virodh kar raha hai.
mera virodh ise par hai..
parantu kya sirf rudan hi ekmatra paimana hai ? Kshobh,Aham-tushti, Swagarvita ka kya ?
रुदन ही है हमारे समय का
समय का सबसे बड़ा सच
जो जितनी जोर से रोये
वह उतना ही प्रतिबद्ध
बहुत बढिया...
kintu aapki rachna ne mujhse
chhin liya ye adhikaar....."
VAKAI behtreen he janaab aapki kavita...
Ashok Pandey ji
Thanks for your versatile poems received today.Yoy are a different genius from others. Best wishes. Pradeep
वह उतना ही प्रतिबद्ध
सच है
सच तो सच होता है
कोई कर के दिखाए
सच को सच से अलग
मार्क्सवादी का सच
राष्ट्रवादी का सच
ऐसा सच लिखा नहीं जाता
इसे कोई लिखवा देता है
तब लिख देता है कोई नास्तिक
पूरी आस्था से विश्वास से
पूरी आस्तिकता में जीकर
बधाई
सच लिखने पर
इतने सुंदर ढंग से संयोजित करने पर
सच तो सच होता है
कोई कर के दिखाए
सच को सच से अलग
मार्क्सवादी का सच
राष्ट्रवादी का सच
ऐसा सच लिखा नहीं जाता
इसे कोई लिखवा देता है
तब लिख देता है कोई नास्तिक
पूरी आस्था से विश्वास से
पूरी आस्तिकता में जीकर
बधाई
सच लिखने पर
इतने सुंदर ढंग से संयोजित करने पर
यहां फोन पर व्यक्त भावना को दे रहा हूं। विश्वास रखें मेरे लिये आलोचना ज़्यादा महत्वपूर्ण है )
बहादुर पटेल से पूर्ण सहमति। यह कविता नहीं है।
सुशील कुमार
kintu kah dun ......
aisi hai aap ki kavita
kahiye nahi sahiye aor sabake sath
rahiye.viradari ke taraf ungali kyon uthate hain!