अच्छे आदमी

अच्छे आदमी
अंधेरा होते ही बंद कर लेते हैं दरवाज़ा

अच्छे आदमी
करते हैं अच्छी-अच्छी बातें
नाप जोख कर लिखते हैं कवितायें
सोच समझ कर करते हैं हर काम
यहां तक की प्यार भी।

अच्छे आदमी के कपड़ों पर
नहीं होता कोई दाग़
घर होता है सुन्दर सा
पत्नी सुशील-बेटा मेधावी-बेटी-गृहकार्यदक्ष !

अच्छे आदमी
नहीं करते कोई बुरी बात
देखते हैं पारिवारिक धारावाहिक
और बदल देते हैं चैनल
चुंबन दृश्य से ठीक पहले।

अच्छे आदमी होते हैं
समय के इतने पाबंद कि
दफ़्तर तो दफ़्तर
संडास आने जाने से भी
मिलाई जा सकती हैं घड़ियां।

अच्छे आदमी
वैसे तो होते हैं स्वस्थ और प्रसन्नचित्त
लेकिन कभी जब आ ही जाता है गुस्सा
पांच बार दोहराते हैं गायत्री मंत्र
और पानी पीकर सो जाते हैं।

अच्छे आदमी
होते हैं बहुत अच्छे दोस्त
अच्छे वक़्त में

अच्छे आदमी
सोचते हैं हमेशा अच्छी बातें
यहां तक कि दुनिया बदल देने के बारे में भी
लेकिन सिर्फ़ सोचते हैं

अच्छे आदमी
होते हैं कुछ इस क़दर अच्छे
कि कई बार
शक़ होता है
उनके पूरे आदमी होने पर

टिप्पणियाँ

neera ने कहा…
कुछ ज्यादा ही अच्छे हो गए हैं अच्छे आदमी कि अब उनके अच्छेपन पर अविश्वास सा होने लगा है...
ओम आर्य ने कहा…
अच्छे आदमी
होते हैं कुछ इस क़दर अच्छे
कि कई बार
शक़ होता है
उनके पूरे आदमी होने पर

ek achchhi rachna par aapki ye baat kuchh hajam nahi huee
श्यामल सुमन ने कहा…
शब्दों को सजाकर एक तीक्ष्ण प्रहार किया है आपने। बहुत अच्छा लगा। बधाई। इसी भाव की खुद की पंक्तियाँ हैं कि-

बने भगतसिंह पड़ोसी घर में छुपी ये चाहत सभी के मन में।
इसी द्वंद ने उपवन के सब कली सुमन को जला दिया।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
एक अच्‍छी कविता की तरह
होते हैं सभी अच्‍छे आदमी
आदमी होते हैं वे पूरे पर
नहीं होते वे अधूरे कवि।
Unknown ने कहा…
ek shaashvat satya ko aapne naveentam shbdon me baandh kar atyant rochak roop de diya hai aap ke is tailent ko salaam !
badhaai !
Ashok Kumar pandey ने कहा…
अविनाश जी…काश कि अच्छे आदमी एक अच्छी कविता की तरह होते। अक्सर वे आत्माहीन तुकबंदियों से ही होते हैं।
शरद कोकास ने कहा…
कभी कभी लगता है/नपुंसक होते है अच्छे आदमी

क्यों ठीक है ना?
Unknown ने कहा…
एक बेहतरीन कविता...

अच्छेपन के अंतर्विरोधों को बेहतर शब्द दिए हैं जो कि सीधे समझ पर हमला करते हैं...
आनंद पाण्डेय जी,
बहुत दिनों बाद एक सधी हुई कविता पढने को मिली...
सीधे दिमाग से नज़रें मिलाती हुई...
के सी ने कहा…
कविता स्तरीय है कहना तो औपचारिकता होगी, मुझे बहुत पसंद आई, आदमी के अच्छे होने के विद्यालय हर जगह खुले हैं और हर कोई अपनी पीढ़ी को अच्छे आदमी में तब्दील होते हुए देखने की इच्छाओं के पीछे दौड़ा जा रहा है. आप बड़े जायज सवाल करते हैं यही अच्छा होना है तो अच्छा होके हासिल क्या है ?
vijay kumar sappatti ने कहा…
अशोक जी

मैं speachless हूँ ..बस एक शब्द कहूँगा " ulti mate " मैंने कई बार पढ़ा ..आज के मानव के थोथे चहरे पर प्रहार करती हुई सी है ..लेकिन एक नाजुक सी डोर भी है ..कुछ बन्दे तो वाकई में अच्छे होते है ....फिर उनका अच्छापन और ये नकलीपन के बीच कि दूरी अक्सर दिखाई नहीं देती है ..

anyway ...kudos to you boss.. इस शानदार अभिव्यक्ति के लिए ...

विजय
Rangnath Singh ने कहा…
good satire !!
mujhe hindi ke kuchh aala kavi-aalochak ki yad aa gyi ...aap ne uhi jaise kisi ko samarpit kar di hoti to...aur sukh milta...ho sakta h iske liye aapko lalit kala academi se best kavi ka award mil jata !!!!!!
तीखे प्रहार के साथ एक अच्छी रचना।
प्रदीप कांत ने कहा…
अच्छे आदमी
नहीं करते कोई बुरी बात
देखते हैं पारिवारिक धारावाहिक
और बदल देते हैं चैनल
चुंबन दृश्य से ठीक पहले।

BAHUT BADHIYA
Vinay ने कहा…
आपको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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चाँद, बादल और शाम | गुलाबी कोंपलें
Sathiya ने कहा…
अशोक जी अच्छे आदमी की सही परिभाषा भी जरुर परिभाषित करियेगा ताकि लोग भी समझ सके की असल में अच्छाई है क्या और वो सिर्फ ढोंग कर रहे है अच्छा आदमी बनने का

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Regards
fazal
fazalsathya@gmail.com
अगर अच्छा कहा कर निकल जाऊँ तो खास क्या होगा और अगर ना कहूँ तो कहूँ क्या..??
गौतम राजऋषि ने कहा…
आज एक अंतराल बाद आने का मौका मिला...
जाने कितनी जगह चर्चा कर चुका हूँ आपके नाम का, आपकी कविताओं का!! ज्यादा हिचकियां तो नहीं आती आपको?
अभी तक की पढ़ी समस्त रचनाओं मे ये वाली तनिक कमजोर सी लगी...

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