चूल्हा
( हिन्दी में पीढा, चौकी, कुदाल जैसी अतीत हो चुकी चीजों पर लिखी अतीतग्रस्त कविताओं की लम्बी शृंखला है। चूल्हा भी ऐसा ही पवित्र प्रतीक है ... पर मै जब इसे देखता हूँ तो यह अलग ही दीखता है)
चूल्हे की याद करता हूँ
तो याद आती है
ताखे पर टिमटिमाती ढिबरी
जलते - बुझते गोइंठे * की
जुगनू सी नाचती लुत्तियां
और इन सबकी आंच में
दिपदिपाता माँ का संवलाया चेहरा
उन गीतों की उदास धुनें
अब तक गूंजती हैं
स्मृतियों की अनंत गुहा में
लीपते हुए जिन्हें गाया करती थीं बुआ
छत तक जमी कालिख
दीवारों की सीलन
पसीने की गुम्साइन गंध
आँखों के माडे
दादी के ताने
चिढ- गुस्सा- उकताहट - आंसू
इतना कुछ आता हैयाद चूल्हे के साथ
कि उस सोंधे स्वाद से
मितलाने लगता है जी…
* कण्डा
चूल्हे की याद करता हूँ
तो याद आती है
ताखे पर टिमटिमाती ढिबरी
जलते - बुझते गोइंठे * की
जुगनू सी नाचती लुत्तियां
और इन सबकी आंच में
दिपदिपाता माँ का संवलाया चेहरा
उन गीतों की उदास धुनें
अब तक गूंजती हैं
स्मृतियों की अनंत गुहा में
लीपते हुए जिन्हें गाया करती थीं बुआ
छत तक जमी कालिख
दीवारों की सीलन
पसीने की गुम्साइन गंध
आँखों के माडे
दादी के ताने
चिढ- गुस्सा- उकताहट - आंसू
इतना कुछ आता हैयाद चूल्हे के साथ
कि उस सोंधे स्वाद से
मितलाने लगता है जी…
* कण्डा
टिप्पणियाँ
कि उस सोंधे स्वाद से
मितलाने लगता है जी…’
इन आखिरी पंक्तियों ने बन रही मानसिकता को एक दम से झकझोर कर सुन्न कर दिया।
शुक्रिया!
yaado me base pratiko me choolhe ke sang aapne kuchh aour pratiko ko ukera he..jo dil ko chhu jaati he. dhibri, goithe, littiya, gobar,(kanda)....waah ji waah.. gaanv ki yaad , maa kaa daaman sabkuchh to saamne aa gayaa.
आपकी कविताओं से छलकती संवेदना प्रभावित करती है साथ ही कवि की सूक्ष्म द्रष्टि... उन एतिहासिक अनुभवों, चित्रों और पलों को सहज शब्दों में बाँध पानी के ऊपर औरत की तस्वीर खींच देना...
बहुत खूबसूरत रचना
chulha hamare liye ek pavitra nastalgic pratik ho sakta hai par ise bhogane vaalon ke liye yah kasht kaa hii sabab hai....
purani vyavstha ki yaaden unhen hi sukh pahunchati hain jo iske kashto ke sahbhagi nahi the
namaskar
main kya likhun , us din subah se aaj tak kai baar ise padh liya par man shaant nahi hua..padhkar maan ki yaad aa jaati thi aur aankhe geeli ho jaati thi ..
aapko sach me mera pranaam .. aapki lekhni ko main salaam karta hoon bhai saheb...
bhaavnaaye aur shabdo ke dwara unko ujagar karna ....
itni shashkt rachna ki main apne beete hue kal me chala gaya , jahan abhaav the, garibhi ka jor tha , phir bhi maa chulhe par roti bana kar khilati thi
sab kuch vaisa hi hua hai , jaise aapne likha hai ...
bahut bahut dino ke baad kisi kavita ne itna andolit kiya hai ...
main aur meri patni ise kai baar padh chuke hai .. ab wo muhe mana karti hai ki aur na padhu kyonki phir main rone lag jaata hoon maan ki yaad me ...
just hats off to you ashok ji
vijay
कि उस सोंधे स्वाद से
मितलाने लगता है जी…
पढ़ते ही निकली ये आह!!
महज तारीफ़ करके छोड़ दूं तो कैसे हो...आप जानते हो मैं आपका फैन हूँ..
ये अनूठापन जो आपका है वो विशिष्ट बनाता है आपको औरों से, उस भीड़ से जो अकविता, नई कविता, मुक्तछंद के नाम पर जो मन आये परोसते रहते हैं...
हम सलाम करते हैं अशोक जी! you are superb sir!!
कि उस सोंधे स्वाद से
मितलाने लगता है जी…’
!!!!!!!!!!!!!!!!