अंतिम इच्छा

शब्दों के इस
सबसे विरोधाभासी युग्म के बारे में सोचते हुए
अक्सर याद आते हैं गा़लिब


वैसे सोचने वाली बात यह है कि

अंतिम सांसो के ठीक पहले
जब पूछा जाता होगा यह अजीब सा सवाल
तो क्या सोचते होंगे वे लोग
कालकोठरी के भयावह एकांत में
जिनके गले पर कई बार कसी जा चुकी होती है
वह बेमुरौव्वत रस्सी

हो सकता है एकाएक कौंध जाता हो
फ़ैसले के वक़्त फूट पड़ी पत्नी का चेहरा
या अंतिम मिलाई के समय बेटे की सहमी आंखे

बहुत मुमकिन है
किए-अनकिए अपराधों के चित्र
सिनेमा की रील की तरह गुज़र जाते हों
उस एक पल में

या फिर बचपन की कोई सोंधी सी याद
किसी दोस्त के हांथों की ग़रमाहट
कोई एक पल कि जिसमें जी ली गई हो ज़िंदगी

वैसे अंधेरों से स्याह लबादों में
अनंत अबूझ पहेलियां रचते वक़ील
और दुनिया की सबसे गलीज़ भाषा बोलते
पुलिसवालों का चेहरा भी हो सकता है
ठीक उस पल की स्मृतियों में

कितने भूले-बिसरे स्वप्न
कितनी जानी अनजानी यादें
कितने सुने अनसुने गीत
एकदम से तैरने लगते होंगे आंखांे में
जब बरसों बाद सुनता होगा वह
उम्मीद और ज़िंदगी से भरा यह शब्द - इच्छा

और फिर
कैसे न्यायधीश की क़लम की नोक सा
एकदम से टूट जाता होगा
इसके अंतिम होने के एहसास से

न्यायविदों कुछ तो सोचा होता
यह क़ायदा बनाने से पहले!

टिप्पणियाँ

रजनीश 'साहिल ने कहा…
सच है, जीवन जीने का सबसे मज़बूत आधार - इच्छा
और वो भी जब अन्तिम कही जाए तो उसके होने या न होने में क्या फर्क हो सकता है!
या फ़िर ये प्रतीक है, इच्छा का अंत - जीवन का अंत.
ओम आर्य ने कहा…
bahut hi sundar ........ichchha ke baare me yah bhi kaha jata hai hai ki har ichchhaye ek dusare se alag bhi hoti hai ........par ichchha ka antim hona ......to mrituyu hi hai
बहुत अच्छी रचना है बधाई।
Science Bloggers Association ने कहा…
गंभीर भावों की सफल प्रस्तुति.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अत्यंत गंभीर..! भावुक..! टिप्पणि को शब्द नही
Ashok Pande ने कहा…
उम्दा! अच्छी सधी हुई पकड़ और रफ़्तार.
फाँसी की अमानवीय सजा के विरुद्ध सशक्त बयान है। बधाई!
Vinay ने कहा…
उम्दा रचना है
---
'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!
शरद कोकास ने कहा…
अच्छी कविता है अशोक मुझे याद आ रहा है मैने अक्षर पर्व मे पढी थी वैसे अब इसी शब्द युग्म पर और कविता लिखो अपने सामयिक विस्तार मे वह और बेहतर होगी -शरद कोकास्
अंतिम इच्छा के अनछुए पहलू को कितनी मर्मिक खूबसूरती से छुआ है आपने...
कई लोग आँखों के आगे घूम गये, जिनसे यह प्रश्न पूछा गया होगा...
vijay kumar sappatti ने कहा…
ashok ji

deri se aane ke liye kshama chahta hoon ..

just amazing , kya khoob likha hai mere dost , padhkar man bahut vyateeth ho utha hai mitr, lekin maanav ki mrugtrishna ka kya kare bhai ...


regards

vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
Rangnath Singh ने कहा…
"अंतिम इच्छा"
....."शब्दों के इस
सबसे विरोधाभासी युग्म"
wah kya baat h bade bhai, bahut umda.....

is sabd yugm ki vidambanaa ko ujagar karne wali kavita yad rahegi...
अंतिम इच्‍छा गर हो
कि देने वालों
आप मेरी जगह लटक जायें
और सचमुच ऐसा हो जाये
तो ........
और चाबी खो जाए।
बोधिसत्व ने कहा…
kya baat hai pande prabhu jite rahen
somadri ने कहा…
कितने भूले-बिसरे स्वप्न
कितनी जानी अनजानी यादें
कितने सुने अनसुने गीत
एकदम से तैरने लगते होंगे आंखां में
जब बरसों बाद सुनता होगा वह
उम्मीद और ज़िंदगी से भरा यह शब्द - इच्छा

और फिर ...

in lines ne mujhe moh liya hai.. meri ichcha ko bal diya hai aapki is rachna hai, aabhar,
http://som-ras.blogspot.com
sandhyagupta ने कहा…
Ashok ji anek sawal khadi karti hai aapki yah marmik kavita.Shubkamnayen.
neera ने कहा…
अत्यंत मार्मिक! इच्छा शब्द इतना बेमानी हो सकता है?
आपकी पोस्ट २००९ की है . आज नई पुरानी हल में दिखाई पड़ी. न्याय प्रक्रिया और फांसी के दंड पर प्रश्न उठती अच्छी रचना .
latest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
Madan Mohan Saxena ने कहा…
बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .

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