सपने में मौत!
असीम |
( असीम मेरा पुराना दोस्त है। बचपन का… बारहवीं तक देवरिया के सरकारी इंटरकालेज में साथ ही पढ़े। वह कुछ उन दोस्तों में से था जिनसे दोस्ती का मतलब सिर्फ़ मौजमस्ती नहीं रही। हम कविता, देश-दुनिया और न जाने क्या-क्या बतियाया करते थे। अपना कवि जाग चुका था तो जो टूटा-फूटा लिखते शेयर करते। लंबे समय तक अपनी-अपनी ज़िंदगियों में मशरूफ़ रहे और फिर नेट पर टकराये। असीम एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में है और उन अर्थों में साहित्यिक जीव नहीं है। विचारधारा को लेकर भी उसके आग्रह नहीं। इधर कसाब को फ़ांसी की सज़ा के बाद जो यूफोरिया पैदा हुई उसने देश में एक अजीब सा माहुल बना दिया है। हर कोई ख़ून के बदले ख़ून जैसी मध्यकालीन सोच से संचालित हो रहा है। मीडिया भी इस पागलपन को ही बढ़ा रहा है। ब्लाग पर भी धीरेश की एक ज़िद्दी धुन के अलावा कहीं कोई संयत आवाज़ नही सुनाई दी। ऐसे में जब असीम आज सुबह चैटरूम में टकराया तो उसने एक कविता पढ़वाई जो इसी अन्तर्द्वंद्व से उपजी है। आप भी पढ़िये।
“कल मैंने एक सपना देखा”
कल मैंने एक सपना देखा,
सपने में कोई अपना देखा,
उस अपने का तडपना देखा,
तड़प तड़प के मरना देखा.
ए के ४७ और ग्रेनेड देखे,
उनको चलाने वाले चेहरे देखे,
हर चेहरा था बिलकुल एक सा....
पर नाम थे अलग अलग
अल्लाह, गाड और भगवान.
और मरने वाला था “इंसान”.
टिप्पणियाँ
हाँ शंकर जरूर इसे सपना बोलते हैं।
बहुत सुंदर कविता।
उनको चलाने वाले चेहरे देखे,
हर चेहरा था बिलकुल एक सा....
पर नाम थे अलग अलग
अल्लाह, गाड और भगवान.
और मरने वाला था “इंसान”.
वाह .....!!
गज़ब की प्रस्तुति .....!!
उनको चलाने वाले चेहरे देखे,
हर चेहरा था बिलकुल एक सा....
पर नाम थे अलग अलग
अल्लाह, गाड और भगवान.
और मरने वाला था “इंसान”.
सत्य इसी तरह कडवा होता है