दुख की हरियरी फसल


पेंटिंग यहां से साभार

दर्द



सिर्फ़ नसों में
पिन्हां नहीं होता दर्द

आंसुओं की उदास नमी में ही नहीं
हँसी की टटका धूप में भी
पनप सकती है
दुख की हरियरी फसल

समय को रस्सियों सी बटती
सख़्त हथेलियों की लक़ीरों में बसी कालिख सा
चुपचाप जगह बनाता है दर्द
हम खड़ी करते रहते हैं
पथरीली दीवारें चारों ओर
और एक दिन
चींटियों सा सिर झुकाये
चला आता दर्द चुपचाप

दवाईयों से दब जायें जो
दर्द नहीं
महज बीमारियाँ हैं वे!

टिप्पणियाँ

neera ने कहा…
सही पहचाना है इसको अलग-अलग रूप में कहाँ-कहाँ नहीं रहता यह?
खूबसूरत बहाव, भाव और संवेदनशीलता को देख कर कविता के अंत से कुछः ज्यादा उम्मीदें बंध गई थी...
Pratibha Katiyar ने कहा…
दवाइयों से दब जायें जो
दर्द नहीं
महज बीमारियां हैं वे...

वाह!
मनोज कुमार ने कहा…
बहुत अच्छी कविता।
Anupama Tripathi ने कहा…
चींटियों सा सिर झुकाये चला आता दर्द चुपचाप
दवाईयों से दब जायें जोदर्द नहींमहज बीमारियाँ हैं वे!



गहन अभिव्यक्ति -
बहुत सुंदर लिखा है .
Rahul Singh ने कहा…
दुख-दर्द को समझने वाली सक्षम भाषा.
Kailash Sharma ने कहा…
गहन अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर
सही है, दर्द की फसल तो कहीं भी, कभी भी लहलहा सकती है. मौसम का भी उस पर कोई असर नहीं होता. सुन्दर है.
प्रशान्त ने कहा…
दर्द का बयां....सुंदर!
अरुण अवध ने कहा…
दर्द व्याप्ति का सही-सही आकलन किया है ,
कविता के माध्यम से ! प्रस्तुतीकरण -अतिसुन्दर !!
बहुत सुन्दर है ..आपका सोचना अभिव्यक्त करना .. उम्दा.. वाह..
दवाइयों से दब जाये, वो दर्द नही...!

हम्म्म्....!!
Bahut khoob ... dard aata hai bas ... jaata to insaan hai is duniya se ...

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