ज़हीर कुरैशी की कुछ गजलें
ज़हीर कुरैशी हिन्दी ग़ज़ल की दुनिया के एक जाने-पहचाने नाम हैं. ग्वालियर में रहते हुए उनका सानिध्य और आशीर्वाद मेरे लिए एक बेशकीमती तोहफा रहा है. आज उन्हीं की कुछ गज़लें
(एक )
वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं
बहुत कम लोग , घर को फूँक कर घर से निकलते हैं
अधिकतर प्रश्न पहले, बाद में मिलते रहे उत्तर
कई प्रति-प्रश्न ऐसे हैं जो उत्तर से निकलते हैं
परों के बल पे पंछी नापते हैं आसमानों को
हमेशा पंछियों के हौसले ‘पर’ से निकलते हैं
पहाड़ों पर व्यस्था कौन-सी है खाद-पानी की
पहाड़ों से जो उग आते हैं,ऊसर से निकलते हैं
अलग होती है उन लोगों की बोली और बानी भी
हमेशा सबसे आगे वो जो ’अवसर’ से निकलते हैं
किया हमने भी पहले यत्न से उनके बराबर क़द
हम अब हँसते हुए उनके बराबर से निकलते हैं
जो मोती हैं, वो धरती में कहीं पाए नहीं जाते
हमेशा कीमती मोती समन्दर से निकलते हैं
बहुत कम लोग , घर को फूँक कर घर से निकलते हैं
अधिकतर प्रश्न पहले, बाद में मिलते रहे उत्तर
कई प्रति-प्रश्न ऐसे हैं जो उत्तर से निकलते हैं
परों के बल पे पंछी नापते हैं आसमानों को
हमेशा पंछियों के हौसले ‘पर’ से निकलते हैं
पहाड़ों पर व्यस्था कौन-सी है खाद-पानी की
पहाड़ों से जो उग आते हैं,ऊसर से निकलते हैं
अलग होती है उन लोगों की बोली और बानी भी
हमेशा सबसे आगे वो जो ’अवसर’ से निकलते हैं
किया हमने भी पहले यत्न से उनके बराबर क़द
हम अब हँसते हुए उनके बराबर से निकलते हैं
जो मोती हैं, वो धरती में कहीं पाए नहीं जाते
हमेशा कीमती मोती समन्दर से निकलते हैं
(दो)
यहाँ हर व्यक्ति है डर की कहानी
बड़ी उलझी है अन्तर की कहानी
शिलालेखों को पढ़ना सीख पहले
तभी समझेगा पत्थर की कहनी
रसोई में झगड़ते ही हैं बर्तन
यही है यार, हर घर की कहानी
कहाँ कब हाथ लग जाए अचानक
अनिश्चित ही है अवसर की कहानी
नदी को अन्तत: बनना पड़ा है
किसी बूढे़ समन्दर की कहानी
बड़ी उलझी है अन्तर की कहानी
शिलालेखों को पढ़ना सीख पहले
तभी समझेगा पत्थर की कहनी
रसोई में झगड़ते ही हैं बर्तन
यही है यार, हर घर की कहानी
कहाँ कब हाथ लग जाए अचानक
अनिश्चित ही है अवसर की कहानी
नदी को अन्तत: बनना पड़ा है
किसी बूढे़ समन्दर की कहानी
(तीन)
मुश्किल से मुझको आपके घर का पता लगा
घर का पता लगा तो हुनर का पता लगा
अंकों के अर्थ शून्य ने आकर बदल दिए
भारत से सारे जग को सिफ़र का पता लगा
जंगल को छोड़ना ही सुरक्षित लगा उसे
चीते को जब से शेरे-बबर का पता लगा
उसने निकाह करने से इन्कार कर दिया
जब उसको तीन लाख मेहर का प्ता लगा
कितने हज़ार डर हैं हरएक आदमी के साथ
क्या आपको भी आपके डर का पता लगा?
टिड्डी दलों -से टूट पड़े चींटियॊं के दल
जैसे ही चींटियॊ को शकर का पता लगा
मंत्रों की शक्ति पर मुझे विश्वास हो गया
जब से मुझे ग़ज़ल के असर का पता लगा
घर का पता लगा तो हुनर का पता लगा
अंकों के अर्थ शून्य ने आकर बदल दिए
भारत से सारे जग को सिफ़र का पता लगा
जंगल को छोड़ना ही सुरक्षित लगा उसे
चीते को जब से शेरे-बबर का पता लगा
उसने निकाह करने से इन्कार कर दिया
जब उसको तीन लाख मेहर का प्ता लगा
कितने हज़ार डर हैं हरएक आदमी के साथ
क्या आपको भी आपके डर का पता लगा?
टिड्डी दलों -से टूट पड़े चींटियॊं के दल
जैसे ही चींटियॊ को शकर का पता लगा
मंत्रों की शक्ति पर मुझे विश्वास हो गया
जब से मुझे ग़ज़ल के असर का पता लगा
(चार)
ये शे’र हैं अँधेरों से लड़ते जहीर के
मैं आम आदमी हूँ तुम्हारा ही आदमी
तुम,काश, देख पाते मेरे दिल को चीर के
सब जानते हैं जिसको सियासत के नाम से
हम भी कहीं निशाने हैं उस खास तीर के
चिन्तन ने कोई गीत लिखा या गज़ल कही
जन्मे हैं अपने आप ही दोहे कबीर के
हम आत्मा से मिलने को व्याकुल रहे मगर
बाधा बने हुए हैं ये रिश्ते शरीर के
टिप्पणियाँ
इसके लिए धन्यवाद !
कुछ शेर जिन्होंने खास असर डाला वे हैं --
परों के बल पे पंछी नापते हैं आसमानों को ,
हमेशा पंछियों के हौसले 'पर' से निकलते हैं !
अलग होती है उन लोगों की बोली और बानी भी ,
हमेशा सबसे आगे वो जो 'अवसर'से निकलते हैं !
कितने हज़ार डर हैं हर एक आदमी के साथ ,
क्या आपको भी आपके डर का पता लगा ?
सर्प बन कर जो हमेशा विषवमन करते रहे
एक तख्ती टांग कर वो लोग शंकर हो गए
हर एक ग़ज़ल खास है