वे स्वर्ग से निर्वासित आदम हैं

१९९३ में नीलाभ प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ कवि महेश्वर का संकलन 'आदमी को निर्णायक होना चाहिए' मेरे पास उसी वर्ष से हमेशा साथ रहा है. अपनी बीमारी के दौरना पी जी आई चंडीगढ़ के एक बिस्तर पर लिखीं उनकी इन कविताओं का खरापन मुझे हमेशा से रोमांचित करता रहा है. आज उन्हीं में से एक कविता 'अंतरर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस' पर क्रांतिकारी अभिनंदन के साथ

रौशनी के बच्चे

मत करो उन पर दया
मत कहो उन्हें- 'बेचारी गरीब जनता'
या, इसी तरह कुछ और

मत करो उनकी यंत्रणाओं का बयान
छेडो मत उनकी सदियों पुरानी
भूख और बीमारी की लंबी दास्तान
मत कहो तबाही-बदहाली-लाचारी और मौत
जो कि निरे शब्द हैं
उनकी जागृत जिजीविषा के सामने
टिसुए मत बहाओ
अगर उन्हें समझा जाता है समाज का तलछट
और फेंकी जाती है मदद मुआवजे के बतौर

वे झेल आये हैं इतिहास की गुमनामी
वे वर्तमान में खड़े हैं
भविष्य में जायेंगे
उन्हें नहीं चाहिए हमदर्दी की हरी झंडी

उनकी नसों में उर्वर धरती का आवेग है
उनके माथे पर चमकता है जाँगर का जल
उनके हाथ की रेखाओं से
रची जाती है सभ्यता की तस्वीर
उनकी बिवाइयों से फूटते हैं संस्कृति के अंकुर
उनके पास उनकी 'होरी' है
'चैता', 'कजरी' और 'बिरहा' है
हज़ारों हत्याकांडों के बावजूद
सही-सलामत है उनका वजूद--
उनकी शादी-गमी
उनके पर्व-त्यौहार
उनका हँसना-रोना
जीना-मरना
सोना-जागना
उठाना-बैठना
पाखण्ड और बनावट से परे है उनका होना

वे स्वर्ग से निर्वासित आदम हैं
उनके निर्वासन से डरता है स्वर्ग
वे रौशनी के बच्चे हैं
सुबह से शाम तक
पूरब से पच्छिम तक
वे धोते हैं सूरज अपनी पीठ पर

मत करो मैली उनकी राह
अपने मन के घनेरे अन्धकार से
मत थोपो उनके संसार पर अपना संसार

टिप्पणियाँ

मनोज कुमार ने कहा…
श्रमकरों के श्रम के बिना हम जीवन में कुछ नहीं हासिल कर सकते। उनका श्रम वंदनीय है।
firoj khan ने कहा…
hum itihas me darz nahi hote, hona bhi nahi chahte, lekin itihas hamari mehnat ka natija hota hai, itna to yaad rakho....
may divas ke jiyaloN ko salam.
thank u Ashok bhai, aapke chalte achchi kavitaye padhne ko mil jati haiN.
udaya veer singh ने कहा…
utkrisht rachana sunder lagi shukriya ji

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