अपना-अपना मानसून




बारिश देश भर में शुरू हो गयी है...हर किसी का इसे देखने का अपना नज़रिया है...असुविधा पर देखिये इसे कवि मनोज छाबड़ा की आँखों से...

मानसून की पहली बारिश है


मानसून की पहली बारिश है
और
पूरब से आये मज़दूर
लौट रहे हैं अपने गाँव

ये
उनके घर बह जाने के दिन हैं
पानी के साथ
उनके सपनों के बह जाने के दिन हैं
डरते-डरते लौटते हैं
मज़दूर अपने गाँव


वे तैयार हैं घर के बह जाने के लिए

वे
सहमे हैं --
ये उनके बच्चों के बह जाने के दिन न हों
न हों पत्नी, माँ-बाप के खो जाने के दिन
ट्रेन को देखते हैं
और
पटरी पर बहते
लोहे के पहियों को देखकर
कांप जाते है...

टिप्पणियाँ

rashmi ravija ने कहा…
कई आँखों का सच है यह...कुछ लोगो के लिए बारिश रूमानी अहसास लिए होता है...और कुछ के लिए भयावह...
मर्मस्पर्शी कविता..
sonal ने कहा…
सच्चाई बयां करती कविता
मनोज पटेल ने कहा…
सचमुच, एक भयावह पहलू यह भी...और बारिश ही क्यूं, उनके लिए तो सारे मौसम ऐसे ही हैं. उन्हें लीलने के लिए ही बने.
Patali-The-Village ने कहा…
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
Travel Trade Service ने कहा…
वाह ...छोटी किन्तु सब दुखों को समेट लिया शब्दों में एक दो जून की रोटी के मजबूर इन्सान का दर्द ...जबरदस्त अशोक जी !!!!!!Nirmal Paneri
Travel Trade Service ने कहा…
वाह ...छोटी किन्तु सब दुखों को समेट लिया शब्दों में एक दो जून की रोटी के मजबूर इन्सान का दर्द ...जबरदस्त अशोक जी !!!!!!nirmalpaneri
अरुण अवध ने कहा…
एक चित्रकार की दृष्टि और एक कवि की सोंच का सुन्दर फ्यूजन ! अशोक जी का आभार !
अपर्णा मनोज ने कहा…
सच्चाई बयां करती कविता.. क्यों इसे पढ़कर वह तोड़ती पत्थर याद आई ....
अपर्णा मनोज ने कहा…
यथार्थ की त्रासदी यही है .. अच्छी कविता .
Pratibha Katiyar ने कहा…
ooooh! Bah gaya barish ka sara rooman...
vandana gupta ने कहा…
भयावह सच्चाई का अहसास करा दि्या।
हर बार की तरह वो भरोसे में रह गया
फिर झोंपडा गरीब का बारिश में बह गया
Santosh ने कहा…
बहुत खूब मनोज जी ! " अब तो लगता है कि ये नाउम्मीदी के दिन हैं "!आभार !
Ashok Kumar pandey ने कहा…
Subhash Mehta · Sain Dass Anglo-Sanskrit Senior Secondary School
Once a labourer women told me be4 20 years ago, which is still fresh in my mind, "Sahib, hamaare liye to garmian hi theek hai, aur koie bhi mausam hamaare liye theek nahin hai". Photo & Poem refreshed my memories. Life for poor is certainly hard in all seasons... and our Govt. is making poors as poorers... Good creation..
Like · Reply · Subscribe · Yesterday at 16:42
viren ने कहा…
kavita sashakt hai,
rajani kant ने कहा…
बह गयीं बरसात में मंगरू की सारी बकरियां
और तहसीलदार ने सूखे की राहत बांट दी !
bahut badhiya. rongte khade ho gaye. bhayanak sachchai. shukriya
ये
उनके घर बह जाने के दिन हैं
पानी के साथ
उनके सपनों के बह जाने के दिन हैं...
गीता पंडित ने कहा…
चित्र सा उकेरती मर्म को छूती सुंदर रचना के लियें मनोज जी बधाई

अशोक जी, आभार...
हर बार की तरह वो भरोसे में रह गया
फिर झोंपडा गरीब का बारिश में बह गया
namaskaar !
behad sunder pakti , badhai
sadhuwad
neera ने कहा…
मर्मस्पर्शी और सशक्त कविता ...
Neeraj Jha ने कहा…
सच्चाई बयाँ करती हुई भावूर्ण कविता
Unknown ने कहा…
thought provoking poem...reality of life

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