सिर्फ हुसैन के लिए नहीं....
बहुत दिनों बाद आज अपनी एक कविता....
माफीनामा
मैं एक सीधी रेखा
खींचना चाहता हूँ
मैं अपने शब्दों में
थोड़ी सियाही भरना चाहता हूँ
कुछ आत्मस्वीकृतियाँ
करना चाहता हूँ मैं
और अपनी कायरता के
लिए माफी माँगने भर का साहस चाहता हूँ
मैं किसी दिन मिलना
चाहता हूँ तमाम शहरबदर लोगों से
मैं अपने शहर के
फक्कड़ गवैये की मजार पर बैठकर लिखना चाहता हूँ यह कविता
और चाहता हूँ कि
रंगून तक पहुंचे मेरा माफीनामा.
मैं लखनऊ के उस होटल
की छत पर बैठ किसी सर्द रात ‘रुखसते दिल्ली’ पढ़ना चाहता हूँ
इलाहाबाद की सड़कों
पर गर्म हवाओं से बतियाते भेडिये के पंजे गिनना चाहता हूँ
मैं जे एन यू के उस
कमरे में बैठ रामसजीवन से माफी मांगना चाहता हूँ
मैं पंजाब की सड़कों
पर पाश के हिस्से की गोली
और मणिपुर की जेल
में इरोम के हिस्से की भूख खाना चाहता हूँ
मैं साइबेरिया की
बर्फ से माफी मांगना चाहता हूँ
मैं एक शुक्राना लिखना
चाहता हूँ
हुकूमत-ए-बर्तानिया
और बादशाह-ए-कतर के नाम
टिप्पणियाँ
डॉ.अजीत
कविता ध्यानाकर्षण करती है।
सादर...