लीना मल्होत्रा राव की कवितायें


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संपर्क टूटा नही ... 

वो सब बाते अनकही रह गई है
जो मै तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थी
हम भूल गए थे
जब आँखे बात करती है
शब्द सहम कर खड़े रहते है

रात की छलनी  से छन के निकले थे जो पल
वे सब  मौन ही  थे
उन भटकी हुई दिशाओ में
तुम्हारे मुस्कराहटो से भरी नजरो ने जो चांदनी की चादर बिछाई थी
अंजुरी भर भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न मन्त्र
याद है मुझे

अब भी मेरी सुबह जब खुशगवार होती है
मै जानता हूँ ये बेवजह नही
तुम अपनी जुदा राह पर
मुझे याद कर रही हो

-२-
बस बची रहूंगी मै प्रेम में.. 

एक दिन जब मै चली जाऊंगी
तो घर के किन्ही कोनो से निकलूंगी फ़ालतू सामान में 
बहुत समय से बंद पड़ी दराजो  से निकलूंगी किसी डायरी  में लिखे हिसाब से
मेरे किसी पहने हुए कपडे में कभी अटकी पड़ी रहेगी मेरी खुशबू
जिसे मेरे बच्चे पहन के सो जायेंगे
जब मुझे  पास बुलाना चाहेंगे
मै उनके सपनो में आऊंगी
उन्हें सहलाने और उनके प्रश्नों का उत्तर देने

मै बची रहूंगी शायद कुछ घटनाओं में
लोगो की स्मृतियों में उनके जीवित रहने तक
गाय की जुगाली में गिरती रहूंगी मै 
जब
वह उन रोटियों को हज़म कर रही होगी जो उसने मेरे हाथ से खाई थी 
बहुत दिन तक 
उन आवारा कुत्तो की उदासी में गुम पड़ी रहूंगी मै 
और मेरी सीढ़ी  पर पसरे सन्नाटे में वे खोजेंगे मेरी उपस्थिति 

मै मिलूंगी 
सड़क के अस्फुट स्पर्शो के खजाने में जब वह अपनी आहटो को जमा करने के लिए खोलेगी अपनी तिजौरी 
और 
पेड़ की  वो जड़ों  में जिन्हें मैंने सींचा था 
उसके किसी रेशे कि मुलायम याद में पड़ी मिलूंगी मै  एक लम्बे अरसे तक
किसी बच्चे कि मुस्कराहट में बजूंगी मंदिर की घंटी जैसी
बस बची रहूंगी मै प्रेम में 
जो मैंने बांटा था अपने होने से ..
दिया था इस सृष्टि को ..
तब ये सृष्टि देगी मुझे 
मेरे चुक जाने के बाद बचाए रखेगी मुझे ... 


टिप्पणियाँ

दूसरी कविता देर तक याद रहेगी.
अजेय ने कहा…
लीना मल्होत्रा राव को लगातार पढ़ रह हूँ , बहुत अच्छा लिख रही हैं .उन्हे असुविधा मे देख कर खुशी हुई .आभार अशोक भाई !
santosh chaturvedi ने कहा…
दोनों कवितायेँ उम्दा हैं. पढवाने के लिए आपका आभार अशोक जी. लीनाजी को बेहतरीन कविताओं के लिए बधाई .
santosh chaturvedi ने कहा…
दोनों कवितायेँ उम्दा हैं. पढवाने के लिए आपका आभार अशोक जी. लीनाजी को बेहतरीन कविताओं के लिए बधाई .
santosh chaturvedi ने कहा…
दोनों कवितायेँ उम्दा हैं. पढवाने के लिए आपका आभार अशोक जी. लीनाजी को बेहतरीन कविताओं के लिए बधाई .
एक दिन जब मै चली जाऊंगी तो घर के किन्ही कोनो से निकलूंगी फ़ालतू सामान में बहुत समय से बंद पड़ी दराजो से निकलूंगी किसी डायरी में लिखे हिसाब से मेरे किसी पहने हुए कपडे में कभी अटकी पड़ी रहेगी मेरी खुशबू जिसे मेरे बच्चे पहन के सो जायेंगे जब मुझे पास बुलाना चाहेंगे मै उनके सपनो में आऊंगी उन्हें सहलाने और उनके प्रश्नों का उत्तर देने...... sochker hi sukun mila
varsha ने कहा…
doosri kavita behad sarthak aur maheen hai...
विजय गौड़ ने कहा…
leena ji ki kavitaon se idhar parichay hona shuru hua, net patrikaon ne bahut se achchhe rachnkaro se parichay karwaya hai. leena ji ki rachnao se bhi parichay usi ki kadi hai. chape khane ki patrikaon ki bahut apathaniy rachnao se jyada pathnaiy aur gambhir rachnao se parichay ki yah duniya ek saugat hai. leena ji ko badhai aur aabhar ashok aapka.
Amrita Tanmay ने कहा…
दोनों कवितायेँ प्रभावित करती हैं..
neera ने कहा…
बहुत सुंदर दोनों ही कविता!
vijay kumar sappatti ने कहा…
लीना जी कि ये कविताएं , मन को छु गयी . शब्दों कि अभिव्यक्ति बहुत खूब है ..

बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
leena malhotra rao ने कहा…
abhaar sabhi mitron ka.. ashok ji ka mujhe unhone apne blog par sthan diya

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