नीतू अरोड़ा की कवितायेँ
पंजाबी की कवियत्री नीतू अरोड़ा की कवितायेँ किसी विमर्श की सीमा में नहीं बंधती। अक्सर आकार में छोटी इन कविताओं में बहुत तीखी व्यंजना होती है। इनमें प्रेम के अनेक रंग हैं, जीवन की विडंबनाओं के चित्र हैं तो व्यवस्था के अन्याय के प्रति आक्रोश भी, और यह सब कविता के फार्मेट के भीतर। न कोई तेज़ शोर, न कला का कोई अतिरिक्त आग्रह, बस एक सबलाइम से स्वर में वह पूरी दृढ़ता से अपनी बात कहती जाती हैं। पंजाबी मूल से इन कविताओं का अनुवाद जगजीत सिद्धू ने किया है।
भूमिकायें
बड़ी आसान होती है --
वह भूमिकाए,
जो होती है --
हु ब हु आप जैसी ...
बहुत मुश्किल है निभाने ,
वह किरदार ,
जिनको निभाने के लिए ,
होना पड़ता है ,
किसी और के जैसा ........
मजदूर
१.
सर के ऊपर मिटटी से भरे तसले उठाये ,
दो मजदूर ,
एक बूढ़ा,
एक जवान ...
जवान आगे निकलता ,
बूढ़े की और देखता ,
जीत भरी निगाह से ...
बूढ़ा जवान की और देखता ,
तरस भरी निगाह से .....
२ .
रसोई के बाहर,
बर्तन रखता मजदूर ,
तिरछी निगाह से देखता मेरी और ,
मुझे गुस्सा नहीं आता ..
मजदूर की आँखें ,
गुस्से से लाल हो जाती ......
३ .
हर बार जब वह ,
घर बना रहा होता ,
एक सपना देखता ......
घर बना चुकने के बाद ,
उसके हाथो में होते है ,
कुछ कागज़ ,
और आँखों में टूटे सपनो के कंकर ....
यह कई बार हुआ ,
वह फिर भी बाज़ नहीं आता .......
रिश्ते
एक दूसरे का होने के लिए ,
इन्तहा की तड़प ,
एक दूसरे का न होने के लिए ,
इन्तहा की तड़प ,
यह ,
एक ही समय में हो सकता है ,
किसी रिश्ते का हश्र ........
जूठे बर्तन
दादी कहती है ,
जूठे बर्तन श्राप देते है ...
मै पूछती हु --
सिर्फ औरतो को ही क्यों देते है ...
वह कहती है ,
तेरी तो मत ही मारी गई है ..........
कविता
कविता युद्ध में से पैदा होती है ,
कविता युद्ध को जन्म देती है ,
कविता युद्ध में हथियार बनती है ,
कविता हथियारों को युद्ध देती है ....
एक प्यार कविता
आजकल बहुत व्यस्त रहती हू ,
यहाँ से उठाती हू ,
वह रख देती हू ,
बावरी हुई घुमती हू ,
मेरी मदद करो ,
मैं एक भैंगापन ढूँढती हू ,
मेरी ऑंखें ठीक है ,
उसको भी दिखता है साफ़ साफ़ ,
भैंगापन कही भी नहीं ,
पर कुछ है जो ठीक नहीं ,
तुम कहोगे ,
यह कविता नहीं इश्तिहार है ,
इसमें कहा प्यार है ,
मैं कहुगी यही प्यार है .
वह अपने आसमान में उड़ रहा होता है ,
मैं मरने के लिए कुआ तलाशती हू ,
मैं उड़ रही होती हू ,
वह मर रहा होता है ,
हमें एक दुसरे के दर्द का ,
कुछ पता नहीं ,
अगर पता हो ,
तो कोई खलल नहीं होता ,
बहुत अहमिअत देते है हम ,
एक दूसरे के एकांत को ,
और सोचते है ,
किसी को नहीं आयेगा ,
हम जैसे प्यार करना ,
आप पूछोगे ,
भैंगापन का क्या हुआ ,
मैं कहुगी ,
वही ढूँढ रही हू ,
वही ढूँढ रही हू
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santosh chaturvedi