आदित्य प्रकाश की पहली कहानी



असुविधा पर मेरी कोशिश हमेशा से नए से नए रचनाकार को स्पेस देने की है. मुझे संतोष है कि आज प्रिंट तथा ब्लॉग, दोनों क्षेत्रों में अपनी जगह बना चुके तमाम रचनाकार सबसे पहले या अपने बिलकुल आरम्भ के समय में असुविधा पर छपे थे. आज इसी क्रम में आदित्य प्रकाश की यह पहली कहानी पेश करते हुए एक गहरा आत्मसंतोष हो रहा है, यह इसलिए और कि मैंने पिछले दो सालों में आदित्य के भीतर के मनुष्य और रचनाकार, दोनों को बनते हुए और बदलते हुए देखा है और इस कहानी की रचना-प्रक्रिया में कहीं न कहीं शामिल भी रहा हूँ. काल सेंटर में काम करने वाले एक संवेदनशील युवा की कशमकश को यह कहानी बहुत  सहजता से दर्ज करते हुए नवउदारवादी आर्थिक व्यवस्था के इन नए प्रेक्षागृहों के भीतर पनप रही उस नयी संस्कृति के उस भयावह चेहरे को बेपर्द करती है, जिसे सतरंगे रैपरों में लपेट कर पेश किया जाता है. इस कहानी में जो चीज मुझे सबसे अधिक अपील करती हा वह है किस्सागोई का शुद्ध एशियाई तरीका. इसपर फिलहाल किसी बड़े लेखक का प्रभाव दर्ज नहीं किया जा सकता. साथ ही आदित्य ने जो विषय  उठाया है वह उसके आसपास का है और हिन्दी में अब तक अछूता. असल में मुझे यह बड़ी दिक्कत लगती है कि हमारी समकालीन रचनाओं में  नयी आर्थिक व्यवस्था के बाद बने ये नए क्षेत्र बहुत कम आये हैं और जहाँ आये भी हैं वहाँ एक बाहरी दर्शक या फिर संवेदनशील,लेकिन अपरिचित आलोचक की निगाहों से देखे हुए ही दीखते हैं, जहाँ सैद्धांतिक आलोचनाएं तो होती हैं लेकिन वह ज़रूरी आत्मीयता और अंतर्दृष्टि नहीं होती जिसके सहारे एक पाठक उस दुनिया में प्रवेश कर अपनी निगाह से उस पूरे परिदृश्य को देख सके, समझ सके और फिर उसमें खुद को लोकेट कर सके. आदित्य की यह कहानी उस ज़रूरी काम को करने की करने की श्लाघनीय कोशिश करती है और भविष्य के लिए उम्मीदें जगाती हैं.

Alienation, 1992, ink and color on rice paper, 69 x 138 cm, Shanghai Art Museum.
वू गुवानझाओ ( Wu Guanzhong )  की पेंटिंग यहाँ से साभार  



कफस हवा का ही परवाज़ खा गया मेरी *

बार बार फोन निकाल के देखने में डर लगता हैं, कहीं कोई देख न ले कि यह फोन ले के आ गया हैं आज फिर, पर मजबूरी हैं घडी जो नही हैं.अब ऐसा भी नही हैं कि खरीद नही सकता लेकिन कुछ और बात हैं इसलिए नही पहनता... अरे भाई लड़की का चक्कर नही हैं. पिछली बार भी जब इस नो पेपर ज़ोन में फोन के साथ पकड़ा गया था तब भी यही जवाब दिया था गंजे मैनेजर को. पता नही सबको यहीं क्यूँ लगता हैं कि लड़की का चक्कर रहा होगा इसलिए नही पहनता लेकिन कैसे बताऊ कि दसवी पास होने पर मामा ने जो घडी दी थी, १२०० कि थी टाइटन वो भी गोल्ड प्लेटेड, लेकिन बेरोजगारी के दिनों में पाठक ने उसे गुम कर दिया था. बड़ी कोफ़्त हुई थी उस रोज अपने आप पर, उसी दिन पता नही किस खीझ में कसम ले ली कि अब कभी घडी न खरीदूंगा और न ही पहनूंगा.  लेकिन आज तो बार बार चिढ सी हो रही हैं फोन कि तरफ भी देखने में. भूख के मारें दिमाग खराब हुआ जा रहा हैं और ब्रेक नहीं मिल रही हैं. कहने को तो ये अब बहुराष्ट्रीय कंपनी बन गयी हैं लेकिन काम अभी भी वहीँ बनिए के दूकान जैसा. कब से बैठे हैं लेकिन ब्रेक नहीं हैं इसलिए जगह से उठ नहीं सकते. कालसेंटर कि जिंदगी भी न और वो भी टेकसपोर्ट में काम करना तो जी का जंजाल हैं. लेकिन क्या करते बीए करने के बाद और क्या मिल जाता. एमबीए के लिए पिताजी के पास पैसे नहीं थे और मन भी नहीं था. लेकिन अब तो सब भूलगया बीती बातें. अच्छी तनख्वाह हैं और पिछले साल प्रमोशन भी मिल गया था. बस रात भर जागना पड़ता हैं और हफ्ते में दो दिन कि छुट्टी. क्या चाहिए इसके अलावा. सब ठीक तो हैं. गांव में तो लोग यही जानते हैं कि बढ़िया नौकरी हैं और गाड़ी से आता जाता हैं. जब प्रमोशन मिला था दो साल के बाद तो कार के भी सपने आने लगे थे लेकिन अब सब धुंधले पड़ गए हैं. रोज रोज कि इस चिक चिक से तबाह हो गया हूँ और ऊपर से राणा साहेब कि रोज कि नसीहतें भी नहीं बर्दाश्त होती हैं. लेकिन क्या करें फिर से एजेंट नही बनना हैं कहीं और जाकर इसलिए टिके हुए हैं. अब तो धीरे धीरे सब्र साथ छोड़ रहा हैं. थोड़ी सी देर में ये सब सोचतें हुए झल्ला गया और सीट से उठ बैठा. पास ही दीपक खड़ा था. दीपक और मैं साथ साथ कालिंग करते थे लेकिन उसने बीटेक करी थी इसलिए उसे पहले प्रमोट कर दिया. अब टीम लीड हैं दूसरे टीम का. पुरानी कहावत हैं यहाँ कि जब आप काम करने लायक नहीं होते या हरामखोरी बढ़ जाती हैं तो आपको प्रमोट कर दिया जाता हैं क्यूंकि तब आप पर अपने जैसे ही कुछ लोगो को संभालना और काम करवाना पड़ता हैं तो सब समझ में जाता हैं. दीपक के भी साथ यही हुआ था लेकिन अभी भी दोस्ती हैं वो भी बढ़िया वाली.. गाली दे दो तो बुरा नहीं मानता. 

दीपक को देख कर कुछ उम्मीद तो जगी कि अब थोड़ी देर कि फुर्सत मिलेगी. शायद वो भी समझ गया और अपने मुस्कुराने वाले अंदाज में बोल पड़ा, ब्रेक मत मंगियो भाई...गंजा बोल के गया हैं कि अगले आधे घंटे तक फ्रीज़ हैं सब कुछ. बैक तो बैक कॉल हैं..सब लाल पड़ा हैं. ये सुनकर रही सही उम्मीद भी जाती रही. मैं भी गुसे में जवाब दिया ..हाँ बे अब तो तुम सिर्फ गंजे कि ही बात सुनते हो. भूल गए बेटा अपने दिन जब ब्रेक के लिए लड़ते थे मोहन से. जबरदस्ती ले लेते थे और मेरा ही सिखाया जुमला कि ब्रेक लेना हमारा अधिकार हैं और जब चाहे तब ले सकते हैं. इसमें हमारी मर्ज़ी चलेगी. दीपक भी जवाब के साथ तैयार था कि लेकिन अभी नहीं मिल पाएगी यू नो बिसनेस नीड. मेरा पास भी जवाब था ..हाँ अब तो सब नीड याद आ गयी होगी तुम्हे ..आगे कि चीज दिख रही हैं न इसीलिए, बढ़िया हैं अच्छे दिख रहे हो रंग बदल कर. उसे मुझसे ऐसे जवाब कि उम्मीद नहीं थी वो भी सब के सामने. दोस्त हैं तो क्या हुआ टी एल हैं. कुछ बोला नहीं अपने सिस्टम में झाँक कर बोला कि जाओ एक डिनर ब्रेक हैं. ले लो लेकिन टाइम से आ जाना. मैंने भी बिना कुछ भाव बदले चुपचाप लाग ओउट किया और सिस्टम लोक करके बाहर निकल आया. शायद उसे मेरा ये रवैया अच्छा नहीं लगा या फिर पुरानी दोस्ती के दिन याद आ गए. पीछे पीछे चला आया. हम दोनों साथ साथ कैफेटेरिया तक आयें. कोई एक दूसरे से कुछ नहीं बोला.  मैंने जल्दी से खाने वालों कि लाइन में लग गया. आधे घंटे में ही सब कुछ करना था. यहाँ खाना और नीचे जाकर सुट्टा भी. दीपक पीछे ही था ...कहना शुरू किया कि पंडित बात समझो ..मेरे हाथ में सब कुछ नहीं हैं. गंजा मेरी जान का दुश्मन बन जाता हैं मीटिंगों में. क्या करूँ तुम्हारी तरह मैं भी मजदूर हूँ. उसकी बातें सुनकर मेरे भी मुह से निकल पड़ा हाँ बे मजदूर मतलब मज़ा से दूर ..कोई बात नहीं. फिर उसने धीरे से कहा कि सबके सामने ऐसे मत बोला कर अब ठीक नहीं लगता. मुझे भी लगा कि कुछ ज्यादे ही हो गया था. मैंने कुछ कहा चुप रह गया. माफ़ी मांगना ठीक नहीं लगा और सोच कि ये तो रोज कि चिक चिक हैं. क्या बात करना इस बारें में. 

खाने के काउंटर पर आज कोई नया वेंडर आया हुआ हैं ....क्यूंकि सब कुछ नया सा दिखाई दे रहा था. सारे बैरे भी नए नजर आ रहे थे. थोड़ी खुशी मिली कि कुछ बढ़िया खाना लायें होंगे पहले दिन तो और आज भूख भी जबरदस्त हैं. दबा के खायेंगे और सुबह दूध के पैसे बच जायेंगे. हर रोज कि तरह मीठे वाले आईटम को नज़रें खोजने लगी. जलेबियां देखकर तो सब कुछ भूल गया मैं. थोड़ी ही देर पहलें मन में नौकरी, दोस्ती, पैसा सबकुछ चल रहा था लेकिन अब सब भूल गया. आदमी का दिमाग भी कैसा होता हैं एक पल पहले क्या क्या था और अभी सिर्फ जलेबियां पाने कि ललक थी. शायद ऊपर वालें ने उसे सबसे बेहतरीन ताकत भूलने कि ही दी हैं. मीठे के काउंटर पर खड़े बैरे को मैंने बड़े प्यार से देखा और उसने बिना कुछ कहें एक कटोरी में जलेबियां रख दी. मेरे ललचाएं मन ने फिर मुह खोलने पर मजबूर कर दियां. मैंने उससे बड़े प्यार से कहा कि अरे भैया थोडा और रख दो...सुने मुस्कुरातें हुए जवाब दिया ..सर जितना दे सकते थे दे दिया. सबका हिस्सा हैं यहाँ पर. मुझे उससे कुछ भी कहना ठीक नहीं लगा. ऐसे लोगो से प्यार से बात करो तो सर चढ जातें हैं. मैं भुनभुनाते हुए आगे बढ़ गया. पीछे खड़े दीपक कि बात सुनाई दी मुझे ...अरे दे देते भैया पंडित जी हैं हमारे. सिर्फ मीठे से ही प्यार हैं इनको. सिर्फ उसकी हसने कि आवाज सुनाई दी. मैंने मूड कर नहीं देखा. 

खैर किसी तरह दिन बीत गया या कहूँ कि रात बीत गयी और दिन निकल आया रोज कि तरह घर आकार सो गया. शाम ढलते ढलते आँख खुली और सुबह शुरू हुई. खाना बनाने वाली नहीं रखा कभी और घर पे कभी कभार ही खाना बनता था. होटल जाकर कुछ खाया और घर आकार गाड़ी का इन्तेज़ार करने लगा. बहुत सारी बातें जिन्हें भूलना चाहता था याद किया बारी बारी ...नौकरी, इन्क्रीमेंट, प्रमोशन, पिताजी का इलाज और शिवांगी को भी. सब मीलों दूर हैं जिस जगह मैं हूँ लेकिन फिर भी हर वक्त आखों के आगे घूमते रहते हैं. कुछ भी कर लो लाख बहाने बना लो भूलते नहीं हैं. कुछ सूझता भी नहीं कोई रास्ता भी नहीं दीखता. वापिस घर भी नहीं जा सकता ..इतनी हिम्मत नहीं हैं मुझमे. कभी कभी घर बहुत याद आता हैं. लेकिन भाग के आया था वहाँ से इसलिए जा नहीं पाउँगा. कोई जवाब भी नहीं हैं और कुछ हैं भी नहीं. शाम घिर आई थी जब बाहर झाँका तो,गुलामी पर जाने का वक्त करीब आ चूका था. रोज ही तो आता हैं. कौन सा आज कुछ नया हो रहा हैं. कई बार तो लगता हैं की कुछ भी तो नही बदला हैं. बेमन से तैयार होकर चला आया हूँ रोज की तरह. फिर से वहीँ सब कुछ करना हैं.

कुछ खास नही हुआ उस रोज बस जोर जोर से हंसना, किसी नयी लड़की के बारें दो चार बातें उसकी भाव भंगिमा को लेकर और किसी युगल को देखकर थोड़ी बहुत इधर उधर की बातें बस. हमारा बढ़िया दिन अक्सर ऐसे ही बीत जाता था. खाने के लिए कैफेटेरिया पहुंचे, फिर से लाइन में लगे और खाना लिया. उस रोज रसगुल्ले थे. वहीँ लड़का अपना जगह पर था. उसने एक हलकी सी मुस्कान दी लेकिन आज मेरा मन नही था. कल इसने सबके सामने मुझे मना कर दीया था और मुझे ऐसे लोगो से बात नही करनी चाहिए. बिना मुस्काए या कुछ कहें मैं आगे बढ़ गया. भरी हुई थाली लेकर मै खाली जगह जा बैठा. मुझे अपने बारें थोडा अजीब लगा लेकिन फिर मैंने ध्यान नही दिया. कुछ और दोस्त लोग भी आ गए और हम फिर अपनी बातों में खो गए. खाना खतम ब्रेक खतम और फिर से वही हेडसेट और चीखना चिल्लाना. किसी अमरीकन बुड्ढे पर अपना दिल खाली किया और बिना बताये फिर से उसी कैफेटेरिया में आके बैठ गया. खाना खतम होने वाला था. सब लोग खा चुके थे. बैरे बर्तन खाली करने में जुटे हुए थे और सिर्फ बर्तनों कि आवाजे आ रही थी. मैं कुछ भी सोचने के लायक नही था उस वक्त ..मैंने देखा कि मिठाई के काउंटर वाला बंदा मेरी तरफ ही आ रहा था और उसके हाथ में एक बड़ी सी कटोरी थी. मेरे पास आकर उसने बड़े धीरे से कहा कि पंडित जी लीजिए रसगुल्ले खाईये. मैंने कहा कि बच गए हैं इसलिए खिला रहे हो ...वो हँसते हुए बोल पड़ा अरे नही पंडित जी मुझे लगा कि आप नाराज हो गए हैं और यहाँ अकेले बैठे हैं. मुझे उसका ये तरीका अच्छा लगा. मैंने कहा आप भी बैठो साथ ही खाते हैं. उसने अपने साथ वाले लोगो को आवाज दी कि जब सब काम खत्म हो जाए तो बता देना. धीरे धीरे हम दोनों में बात शुरू हुई ..मैंने अपने घर के बारें में, परिवार के बारें में थोड़ी बहुत बाते कही उसने भी बताया कि इस कैटरिंग का मालिक एक सरदारजी हैं और वो उनका मुलाजिम. पिछले सात सालों से उनके साथ ही काम कर रहा हैं. मैंने फिर पुछा कि कहाँ के रहने वालें हो आप ...उसका जवाब था कि घर हैं जिला गोरखपुर . मुझे अच्छा लगा ....अरे मैं भी तो पास का ही हूँ ..गोरखपुर में कहाँ.. उसने चहकते हुए जवाब दिया ..गोला बाज़ार के पास, मैंने फिर पुछा कौन गांव हैं जी आपका? उसका जवाब था कि गोला बाज़ार से पच्छू ओर हैं एक गांव सेमरी और सीधे चकरोड जाता हैं कोडरी ...वहीँ हमरा घर हैं.. कोडरी से कुछ याद आया ...मैं गया था वहाँ एक बार और वो पूरा इलाका घुमा भी हुआ था मेरा… अपने बाबा के साथ साईकिल पे. थोडा जोर दिया दिमाग पे तो याद आया कि कौवा चाचा कि शादी में गया था वहाँ. बहुत छोटा था. पहली बार रात भर जाग कर विडियो पर फिल्म भी देखि थी. बहुत दूर चला आया हूँ उन सबसे अब. मैंने फिर कहा कि मैं गया हूँ कोडरी, मेरे चाचा कि शादी हुई हैं वहाँ.. ननिहाल हैं उस गांव में. ये सुनकर उसके चेहरे पर एक खुशी कि लहर आ गयी ...उसने पूछना शुरु किया किसके घर ..अब मुश्किल मेरी और थी बहुत जोर डालने पर भी नाम नही याद आया, चौथी कक्षा कि वार्षिक परीक्षा के बाद गया था वहाँ ...कुछ नही तो कम से कम बीस साल तो हो ही गए होंगे. मैंने धीरे से कहा कि नाम तो नही याद हैं लेकिन घर के बाहर बाग था आम का..प्राइमरी स्कूल भी था उसी के बगल में. आपका घर किस तरफ हैं? उसने कहा कि जरुर मिश्राने में होगा आप के नाना का घर ..हमारा तो बाग के दखिन और चमरौटिया  में हैं. अब पक्का करा लिया हैं. ये कहते हुए उसके चेहरे पे कोई शिकन नही थी. मिश्राने में अब तो कोई रह नही गया हैं. पूरा खाली पड़ा हैं..सबके बच्चे गोलबाजार जाते हैं पढ़ने. उसका एक और सवाल आया मेरे सामने ...आपका बियाह हुआ पंडित जी? अब मेरे मुस्कुराने कि बारी थी ..अरे नही भाई साहेब अभी नही हुई हैं . मैंने सवाल दागा ...आपकी हो गयी हैं कि नही, उसका जवाब आया अरे दो बच्चे हैं यहीं पढते हैं, घरवाली भी यहीं हैं. अम्मा भी हमरे साथ ही रहती हैं यहीं. सरदार जी ने कमरा दीया हैं. मैंने फिर पुछा ..और गांव पे कौन हैं अब? बडके दादा के लड़के हैं ...मास्टर हैं स्कूल में गांव वाले. बोवाई में गया था घर ...परिवार सहित फिर जायेंगे होली के बाद भतीजी का बियाह हैं. मैंने कहा बढ़िया हैं. आप तो घर के ही आदमी निकले. मुझे वहाँ बैठे हुए देर हो गयी थी ...रसगुल्ले भी खतम हो गये  था. अंदर सब तलाश रहे होंगे मुझे. मैंने नमस्कार करते हुए विदा लिया उनसे. जब अंदर आ गया तब लगा कि अरे मैंने नाम तो पुछा ही नही उनका, मैं भी क्या आदमी हो गया हूँ. सब कुछ भूल जाता हूँ. 

अंदर आते ही लोग सवाल करने लगे ...कहाँ गायब थे, बिना बताएं.मैंने कुछ जवाब नही दिया. एक चुप हज़ार चुप..मन में यही था जो ठीक लगे कर लो. फिर उसी गंजे के पास भेजा गया मुझे ..उसकी वहीँ चिर परिचित मुस्कान और चमकती खोपड़ी याद आई मुझे एक बार को लगा कि गश खा के गिर जाऊंगा...रोज रोज का ये टंटा तो जान पे बन आया हैं. उसके केबिन में भरपूर रौशनी थी..जिसका असर उसकी गंजी खोपड़ी पे साफ़ दिखाई दे रहा था. मैं पहले से ही बहुत जला हुआ हूँ .. मेरे चेहरे पे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था. उसने भांप ली ये बात ..बोला मुझसे ..क्या हुआ मेरे रुस्तम ..जाना ही हैं तो बता तो दिया कर ..तेरी खबर तो हो हमें कि कहाँ हैं तू? मैंने कुछ नही कहा ..उसने प्यार से कहा बैठ जा आराम से ..अगर आज तेरा मन नही हैं तो मत कर कालिंग. मैनेजर औक्स ले ले. फिर उसने धीरे से चैट पे किसी को पिंग किया कि इसका लॉगिन करके मैनेजर औक्स पे डाल दो. मैंने जेब से रुमाल निकला और पसीना पोछते हुए उसके सामने बैठ गया. उसने कम्पूटर स्क्रीन कि तरफ निगाह करके कहना शुरू किया ...मैं तुझसे वैसे भी मिलना चाहता था. कुछ बात करनी थी.. कितने साल हो गए तुझे यहाँ? मैंने धीरे से कहा..साढ़े तीन साल से ऊपर . अक्टूबर में चार साल हो जायेंगे. उसने कहा..फिर क्या सोचा हैं तुने ...यहीं रहेगा या कहीं और जाएगा. छोड़ने कि तो नही सोच रहा हैं. मैं फिर चुप रहा. मुझे नही मालूम था कि क्या जवाब दू . उसने लैपटाप मेरी तरफ मोड दिया ..सामने मेल बॉक्स खुला हुआ था. एक मेल भी खुली हुई थी. मैंने बिना कुछ पूछे पढ़ना शुरु किया. अगली आईजेपी कि अनाउंसमेंट थी. अगले दो हफ्ते में पूरी करनी थी टाइम लिमिट भी लिखी थी साथ में.. मैंने गंजे को देखा मेरी आखों में अब कुछ सुकून था ..लगने लगा की कोई रास्ता हैं...मन में कई प्रश्न चक्कर काटने लगे. अब उसकी बारी थी. हम दोनों साथ साथ मुस्कुराये फिर उसने शुरू किया अपना दिमाग ठंडा रखा कर, सबसे लड़ा मत कर वर्ना तेरे जैसे बड़े सारे देखे हमने यहाँ ...कितने आयें और चले गए. मैं भी ऐसा ही था ...बात बात पे सबसे भिड जाता था लेकिन हर चीज का एक वक्त होता हैं. तू अकेला नहीं हैं जो दुखी हैं ...तेरे अपने ही साथ के लोग हैं जो अब तक वहीँ हैं. उनसे पूछ की क्या कर रहे हैं वो ...अभी माहौल बहुत गर्म हैं. छोटी छोटी गलतियों पर पिंक स्लिप मिल रहि हैं रजत पागल हुआ हैं और तेरी तो..मालूम हैं न तुझे. अपनी नौकरी बचा और दिखा की तू कंपनी के लिए सही कैंडिडेट हैं. आज आखिरी बार बता रहा हूँ फिर नहीं कहूँगा ...और मुझे मालूम था की तू कहाँ था इतनी देर. मेरे पास कोई शब्द नहीं था उसके लिए. उसने फिर बोलना शुरू किया की देख मन न हो तो जबरदस्ती मैं खुद भी नहीं करता किसी से ...लेकिन काम हैं तो करना ही पड़ेगा. मोटी मुझे दिखा के और सुना के भी गयी हैं की तू वहाँ बैठा हैं और उस कैफेटेरिया वाले से लगा हैं. क्या जरुरत हैं तुझे उससे बात करने की ..उनसे तेरा क्या काम. बस एक रसगुल्ला ज्यादे मिल जाएगा इसलिए दोस्ती बढ़ा रहा हैं उससे. मोटी तुझसे खुद बात करना चाह रही थी लेकिन मैंने ही मना कर दिया. तभी उसके ब्लैकबेरी बज उठा. उसने फोन उठाया. मुझे नहीं मालूम की किसका फोन था ..एक बार को लगा की मोटी ही होगी उसी के खुजली मचती हैं हमेशा.. फोन रख के उसने फिर बोलना शुरू किया कुछ दिन शांत रहो..काम में मन लगाओ, अंदर किसी को इस बारे में खबर नहीं होनी चाहिए वर्ना फिर रह जाएगा साले एडियाँ रगड़ते..तेरा प्रमोशन इस बार पक्का हैं. मैं अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ कांच के दरवाज़े से बाहर निकलने लगा तो उसने बड़े प्यार से कहा की अब कहाँ जाएगा ..मैंने कहा की लोगिन कर लू जा के. उसने कहा ग्रेट ..एक और काम कर क्या तू वीक ऑफ पे भी आ जायेगा..श्रीन्केज बढ़ गयी हैं टीम की. एक्स्ट्रा लोगिन फायदा ही करेगा तुझे. मैंने दबे मन से कह दिया की बिलकुल आ जाऊंगा. उसने फिर कहा की ओटी नहीं मिलेगी लेकिन. मेरा जवाब था कोई बात नहीं. बस कैब की मेल कर देना आप. उसने कहा निक को बोल देना वो तेरी रिक्वेस्ट ट्रांसपोर्ट को भेज देगा. मैं बाहर निकल आया. वो लैपटॉप में घुस गया. मैं दबे मन से फ्लोर पे वापस आ गया. समझ ही नहीं पा रहा था की खुश होऊ या फिर दुखी. वैसे मेरी ये हालत अक्सर हो जाती हैं ..लगता  हैं जैसे सोचने और समझने की ताकत खतम हो गयी हैं. नहीं जानता की क्या करूँ ऐसी हालत में. रात भर जागने और दिन भर सोने की वजह से तो नहीं हो रहा हैं ये सब..कुछ कर भी तो नहीं सकता हूँ मैं. फ्लोर पे खून बरस रहा था..जब भी हमें क्यु लाल दिखती बड़ी स्क्रीन पे हम यही जुमला दुहराते. हेडसेट फिर से कान पे चढा लिया. सब के सब अपने अपने काम में लगे थे. 

सुबह हुई ..कांच की दीवारों से सूरज की नरम रौशनी आने लगी, मतलब साफ़ साफ़ दिखने लगा की रात बीत गयी और अब निकलना हैं यहाँ से अपने घर की तरफ. कुछ एक दोस्तों के साथ लिफ्ट से नीचे उतरे..रास्ते भर उसी के बारेंमें बातें होती रही की क्या हुआ अंदर ..मेरी शकल देख कर हर कोई यहीं अंदाजा लगा रहा था की आज झाड पड़ी हैं लौंडे को तगड़ी वाली. क्या पता की कुछ और भी होने वाला हो इसके साथ. कई लोगो को बाहर का रास्ता दिखाया जा चूका हैं ..जितने पुराने लोग हैं उनपे गाज कभी भी गिर सकती हैं. सब साले थोड़ी प्रमोट हो जायेंगे. जो चुपेबजी में तेज हैं वो बच जाएगा बाकियों की तो लगेगी. कुछ लोग खुश भी थे और मेरे जैसे लोग मुझसे जानना चाहते थे की क्या हुआ अंदर. ट्रांसपोर्ट ज़ोन में दीपक मिल गया मुझे शुक्ला भी उसके साथ था. मैं और शुक्ला जी साथ साथ ही थे. वो भी दुखी था, डर था की कहीं उसका नंबर न हो अगर नौकरी चली गयी तो क्या करेगा. उसने बड़े प्रेम से पुछा की क्या हुआ पंडित जी ..बुरी खबर हैं क्या? उसकी आखों में साफ़ दिखाई दे रहा था की हम लोगो के भविष्य पे तलवार लटकी हैं. कब गिर जायेगी कोई नहीं जानता? बुरा तो और भी हैं की कोई सुनवाई भी नहीं होती ..किस ज़माने की गलतियाँ खोद निकालते हैं. अब जाके मैं कुछ कहने लायक हुआ था क्यूंकि शुक्ला की ये हालत मुझसे देखि नहीं जा रही थी. मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़े , तुमको भी सुना दिया फरमान आज और एहसान जरुर जताया होगा गंजे ने ..मैं तो सोच सोच के मरा जा रहा हूँ की मेरा क्या होगा अगर निकाल दिया तो ..बीवी प्रेगनेंट हैं,  गाड़ी की किश्त भी हैं, पिछले दो महीने से इंसेंटिव भी नहीं आ रहा हैं ठीक से. खर्चा मुश्किल हो गया हैं. दीपक ने रोका उनको अरे इससे पूछो तो साले से की क्या हुआ हैं अंदर..मुझे भी नहीं बताया कुछ. दादा से पूछा तो कहने लगे की तुम्हारे काम का नहीं हैं. अब तू बता बे की क्या हुआ? मैंने बड़ी सफाई से आईजेपी छोड़ के सारी बातें बता दी उसे ..अब शुक्ला के चेहरे का रंग उड़ गया था उसने आहें भरते हुए बड़े धीरे से कहा कि मतलब अभी तुम्हारा नंबर नहीं आया हैं. दीपक की तरफ मुड़कर बोला ..फिर कौन हैं लिस्ट में ऊपर ..दीपक ने चेहरा दूसरी तरफ फेरते हुए जवाब दिया- नहीं मालूम भाई किसका हैं. सिर्फ मोटी और रजत को ही मालूम हैं. वही दोनों मिल के गुल खिला रहे हैं.. मालूम हैं रजत ने क्या कहा मीटिंग में ..सारी गंदगी साफ़ कर दूँगा इस बार कोई नहीं बचेगा. हमपे भी गाज गिर सकती हैं. हम सबके चेहरे मुरझाये थे ..शुक्ला का अपना रीसन था, मेरी छुटियाँ शहीद हो गयी थी, दीपक की खबर नहीं थी हमें. बड़े लोग हैं होगा कुछ. हम तीनो ने अपनी अपनी कैब ले ली और घर की तरफ निकल पड़े. सुबह सुबह रास्तो को जी भर के निहारता रहता था मैं...खास तौर पे खाली रस्ते मुझे बहुत पसंद थे. चाणक्यपुरी और शांतिपथ तक आते आते मैं सब कुछ भूल गया. वीकऑफ जाने का दुख जरुर था लेकिन सोचकर देखा तो लगा की वैसे भी मैं क्या करूँगा दो दिन. अब तो किसी का इन्तेज़ार भी नहीं रहता. उसके कालेज भी नहीं जा सकता. शराब पीता नहीं ..कोई फिल्म ऐसी नहीं आई हैं इनदिनों की देखने जाऊ. हफ्ते के बीच में कोई दोस्त घर पे भी तो नहीं मिलता,कम से कम खाना बनाने से फुर्सत रहेगी इन दो दिनों में.  घर पहुंचा और बिस्तर पकड़ लियां. आज सोचने के लिए बहुत कुछ था और कुछ भी नहीं था. 

शाम हुई और दिन उग आया मेरे कमरे में ..थोडा अजीब ये लगा की मैं अब भी खुश नहीं हूँ इस खबर के बाद भी. आखिर चाहता क्या हूँ अपने आप से ... जान भी पाउँगा? एक बात तो साफ़ थी की कुछ गडबड जरुर हैं वर्ना कुछ तो कहता, भले ही रोता, चीखता, चिल्लाता तो कम से कम लेकिन किस पर..घर तो खाली हैं. ऑफिस में सोच भी नहीं सकता ऐसा कुछ भी. आवाज़ बाहर नहीं आ रही, जिन्हें दोस्त मानता हूँ उनसे भी नहीं और जो दुश्मनों की तरह हैं उनसे भी नहीं ..शायद इसे ही घुटन कहते हैं. आज जागकर बड़ी उलझन में हूँ ..बीती हुयी सारी बातें एक एक करके सामने से गुजर रही हैं ..बचपन, जवानी का उतावलापन, किसी के साथ की उम्मीद, बड़े बनने की कोशिश और तमाम सारे सपने हजारों ख्वाहिशे लिए लेकिन सब हवा  हैं. उम्मीद को चूल्हे पर पानी के साथ खौलाने लगा, एक छोटी सी उम्मीद जैसी प्रमोशन बची थी उसे भी चढा दिया ..असर दिखने लगा. मीठे की शक्कर जैसी आस तो पहले ही खत्म हो गयी थी..खरीदने के लिए कुछ पास नहीं बचा था. काली उम्मीद छान कर पी गया मैं और तैयार हो गया दुहराने के लिए रोज की जिंदगी. ऑफिस पहुंचा लेकिन आज और दिनों की तरह नहीं था मैं ..किसी लड़की को भी नहीं देखा, फब्तियां नहीं कसी. हेडसेट लगने से उथल पुथल शांत सी हो गयी. दिन भागना शुरू हो गया ..किसी ने और भी खबर सुनायी की शुक्ला को अंदर ले गयी थी मोटी, रजत वहीँ था. जब से बाहर आया हैं कुछ बोल नहीं रहा हैं. इसका पत्ता भी कट गया. मैं सबका सब कुछ सुनता रहा ..मेरे पास सुनाने को कुछ नहीं था. हम सब के आस पास मनहूसियत का बसेरा हो गया था. राणा साहेब दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहे थे. लगता हैं की बिजली उनपर पहले गिर गयी थी लेकिन किसको उनकी फिक्र हैं. सब अपनी संभाले बैठे हैं. बहुराष्ट्रीय जगहों का पारदर्शी सच हम सबके सामने था. हर बात साफ़ साफ़ कही जाती हैं आपसे की.. पिछले इतने दिनों में आप पर इतना खर्च कर दिया हमने और आप अपनी सैलरी जस्टीफ़ाई नहीं कररहे हैं. उनके सामने आपका कोई जवाब सही नहीं होता.. आप कांच की दीवारों के बीच बैठे मजदूर हैं जिसे दिहाड़ी गाली सुनने के बाद ही मिलती हैं..वैसे भी रजत के लिए उसकी गर्लफ्रेंड और उसका तरीका...सिर्फ दो चीजे सही थी दुनिया में. लेकिन मुझे इन सबसे क्या लेना था मेरा नाम तो हैं भी नहीं. खबर तो मुझे मिल ही चुकी थी की मैं निकल जाऊंगा इन सबसे. 

थोड़ी देर बाद एक पिंग आया मैसेन्जर का ...मैं चौक गया. मोटी ने मुझे अपने केबिन में बुलाया था. दीपक ने तुरंत मुझे जाने को कहा. मैं सहमा हुआ उसके केबिन का दरवाजा खोल्कर अंदर घुसा, वो किसी से फोन पे लगी हुई थी. मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था, मैं जिस भ्रम में था वो टूटने ही वाला था. मेरा नंबर भी आ गया. उसने इशारे से मुझे बैठने को कहा. मैंने थूक निगलते हुए बिना कुछ बोले चुपचाप सिमट गया उस कुर्सी पर. उसने फोन काटा और फिर जल्दीसे किसी को मैसेज किया साथ ही साथ बोलना भी शुरू किया ..हाउज यू? सिमटा सा जवाब मेरा भी- गुड मैम उसकी आवाज फिर खनकी ..व्हाट हपैंड येस्टरडे मैंने जान संभाल के जवाब दिया नथिंग मैम ..फिर सवाल बट आइ हर्ड समथिंग, टेल मी. मेरी जबान नहीं हिली, आवाज भी नहीं आई. फिर उसी की आवाज आई, यू वेर नाट ऑन फ्लोर एंड यू डीनट इन्फोर्म अन्य्वन. मैं अब भी चुप था उसका बोलना जारी रहा. यू आर सिनीयर इन दिस कंपनी एंड इफ यू विल बिहैव लाईक दिस व्हाट शुड एक्सपेक्ट फ्राम अदर्स. मैं अब क्या कहता ..बिजली गिरी मुझपर अगली बात से  ..रजत वांट्स तो मीट यू ..ही विल बी हियर इन अ मिनट. रेडी विथ अन आंसर. सब खत्म हो गया. रो भी नहीं सकता था. चीख भी नहीं पाया ..इतना मजबूर तो पहले भी हुआ था, कई बार हुआ था. लेकिन तब ऐसा नहीं महसूस किया था जो आज हैं. उस वक्त रोया भी, चिल्लाया भी, झगडा भी किया लेकिन आज तो कुछ नहीं था. 

तभी रजत आ गया, मैं डर के मारे ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. उसने नाम लिया मेरा और बिना हाथ मिलाये या कुछ कहें सामने पड़ी चेयर पे जम गया. अपने सामने पड़े कुछ पन्ने हाथ में लिए और एक नजर देखा उनको. मैं जम गया था और किसी भी वक्त पिघल सकता था. अब उसकी बारी थी ..कितना टाइम हो गया तुझे यहाँ ..मैंने जान बटोरी और धीर्रे से कहा ..मोर देन थ्री येअर्स ..वो गरजा चार साल होने वाले हैं तेरे ..मैंने सर हिलाया. फिर गरजा पिछले महीने क्या बना था ..धीरे से ईई, रजत- उससे पहले, जवाब- ईई . पन्ने रखकर जोर से बोला ..कभी केसी नहीं बना मैंने नहीं में सर हिलाया. उसने फिर पुछा क्वालिटी में कितना हैं तेरा ..अब मैंने थोडा ढंग से जवाब दिया हंड्रेड परसेंट फ्रॉम लास्ट क्वार्टर. उसने मोटी की ओर देखा और कहा अब बोला ये ...मोटी मुस्काई कुछ बोली नहीं .रजत फिर से ..इतने दिन से क्यूँ नहीं प्रमोट हुआ..मेरे पास फिर कोई जवाब नहीं था. अपनी कुर्सी पर लेटते हुए फिर कहा उसने ..मैं बताऊ तुझे ..नेता मत बन. यहाँ क्रांति नहीं कर पायेगा तू. तू पढ़ा लिखा होगा लेकिन बाकि सारे पढ़े लिखे अनपढ़ हैं यहाँ. अपना काम कर इन्हें कानून मत सिखाया कर. एक मिनट नहीं लगेगा मुझे तुझे यहाँ से भगाने में. मैं अब बिलकुल चुप था. सांस भी नहीं ले रहा था शायद. अब मोटी की बारी थी ...उसने शुरू किया एंड यू नो रजत आवर कैफेटेरिया गाय इस अ गुड फ्रेंड ऑफ हिम. ही सीट्स विथ हिम डयूरिंग शिफ्ट टाइम एंड डोंट इन्फर्म. उसने फिर कहा ..तू कामरेड हैं, तेरी बातें सुनी हैं मैंने. राणा तेरी सारी बातें बताता हैं मीटिंगों में..ये तेरा कालेज नहीं हैं. इट्स ऑफिस एंड रूल्स दैट वी हैव तो फोलो. मैं मर चूका था ..सब कुछ पता हैं इनको ..वो फिर कुर्सी पे आगे आया और लैपटॉप की स्क्रीन में झाँक कर बोला सुमन डिड यू इन्फोर्म हिम..मोटी ने सर हिलाया. उसने कहना शुरू किया. तेरा नाम हैं इस बार लिस्ट में..लेकिन अगर यही हाल रहा तो गायब भी हो जाएगा. रजत पास लेल लेकर बोलता रहा: ये ड्रामे बंद कर और काम कर. फ्लोर पे जाके गाने मत लगियो. नाऊ चीयर अप, खुश हो जा. मैं मशीन नहीं था जो उसके कहते ही मुस्कुराऊ ..लेकिन फिर भी मुस्काया. जान वापस आ गयी थी.  मैं बाहर आ गया था उनके केबिन से...शीशे के पार वो दोनों हंस रहे थे. 

इसके बाद जब भी कैफेटेरिया वाले भाई से आमना सामना होता तो सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाता. बात करने की हिम्मत नहीं थी मुझमे. उसकी मुस्कान का जवाब मैं बहुत बनावटीपन से देने लगा था. लेकिन उसकी तरफ से कोई कमी नहीं आई. एक की जगह दो टुकड़े मिलने लगे. फ्लोर पे भी कई लोगो को शक हो गया था की पंडित का चांस हैं इस बार ..अब इसका भी बडबोलापन बंद हो गया. कई तो चिढाने भी लगे थे. वीक ऑफ पर भी ऑफिस आता देख कर कईयों ने भविष्यवाणी भी कर दी मेरे लिए. मैं इतना हारा हुआ कभी नहीं था. जब घर छोड़ दिया था और तब भी जब शिवांगी मुझे छोड़ गयी थी. दो हफ्ते बीतने ही वाले थे ..घर पे खबर कर दिया था की इस बार प्रमोट हो जाऊंगा. हर किसी पर असर हो रहा था इस बार ..मम्मी ने कोई मनौती भी मान ली थी अबकी मेरे लिए. बाबा शादी की बात फिर से करने लगे थे. मैं सपने में फिर से कार देखने लगा था. 

आखिर में वो दिन भी आ गया जब इंटरव्यू हुआ और ढेरो सवाल पूछे गए. कुछ एक बेहद वाहियात और कुछ बहुत ही आसान ..सबसे मुश्किल सवाल था की अगर टीम में कोई बिना नहाये आता हैं उससे सबको दिक्कत होती हैं तो कैसे संभालोगे इसको. क्या कहोगे उससे ..एक बार को तो मैं चौक गया की ये क्या सवाल ..लेकिन कुछ  गोल गोल जवाब दे ही दिया.  नहीं मालूम की वो उससे खुश थे या नहीं. दो दिन बाद लिस्ट भी आ गयी. नाम भी था मेरा उसमे. लोगो ने बधाईयाँ दी, कुछ दोस्त लोगो ने जम के गालियाँ दी और बेइज्जत भी किया. चमचागिरी का आरोप भी लगा और चाटने की प्रशंशा भी की. खैर अब भी मेरे पास कोई जवाब नहीं था. जवाब होना जरुरी नहीं था बल्कि मुझे लगने लगा की देना जरुरी नहीं हैं. 

मैंने अब मुस्कुराना सीख लिया था. आधी बातों के जवाब इसी तरीके से देता था. मैं इसे हंस के टालना नहीं कहूँगा बल्कि हर बात पे खुश होने जैसा ही मानूंगा. अगले रोज सुमन मुझे अपने साथ डिनर के लिए ले गयी उसी कैफेटेरिया में. मैंने उसकी हर बात को बहुत ही ध्यान से सुनना शुरू कर दिया था. वो कहे जा रही थी आई वास वैरी हैप्पी विथ यौर परफोर्मेंस बट समटाइम यू टाक वैरी नानसेन्स. यू नो देयर इज अ दिफ्फ्रेंस बेत्वीन यू एंड अ मजदुर बट यू अल्वेस काल यौर्सेल्फ़ अ मजदुर,  यू आर गेटीग हैंडसम सेलेरी...बट स्टिल. नाऊ गेट आउट ऑफ यौर शेल एंड बिहैव लाईक मैनेजर. स्टार्ट थिंकिंग अबोउट यौर्सेल्फ़ एंड ग्रो उप. कल को तुम्हारे बच्चे तुमसे ऐसी बातें करेंगे तो उन्हें क्या जवाब दोगे ..या फिर कोई शेर पढोगे. दे आल फोल्लो यू एंड तुम उन्हें कुछ सिखाने कि जगह फ़ालतू कि बातें समझाते हो. मैं उनकी कही हर बात को पीता रहा ..धीरे धीरे चाय की तरह ..एक साथ सब अपने अंदर उतार पाना भी मुश्किल था. उसी पल कुछ बेहद अजीब हुआ ..वही कफेटेरिया वाला भाई मेरे पास आकार खड़ा हो गया और सामान्य शिष्टाचार से अनभिज्ञ होते हुए उसने मुझसे कहना शुरू कर दिया ...का हो पंडित जी सुनली हे की तुह्रो परमोशन हो गईल.. तुहो अफसर बन गईला. घरे बतावला की ना हो..आज देखा तुहरे खातिर राजभोग मंग्वले हैं. हम्मे कलिहे दीपक बाउ बतवले रहले लेकिन तू मिलबे ना कईला. किसी गहरी नीद से एकाएक जाग गया लेकिन मैं नहीं जानता क्यूँ पर मैं उस वक्त भी चुप ही रहा ..लेकिन मोटी चुप नहीं रही वो गुस्से से उबल पड़ी ..यू ईडियट ..यू कान्ट सी वी आर इन अ मीटिंग एंड यू ..लुक हाउ दे ट्रीट यू. मिठाई ले के आ गया तुम्हारे लिए. यही लोग हैं ना तुम्हारे अपने ..वंस यू फिनिश विथ हिम ..देन मीट मी, नाउ वि हैव तो थिंक अगेन ...और उठकर चली गयी. मैंने सिर्फ उसे जाते हुए देखा और दूसरों को अपनी तरफ घूरता हुआ. अब चुप ना रहने कि बारी मेरी थी, मैं रोक नहीं पाया खुद को चीखने लगा, गालियाँ देने लगा. मैंने गुस्से में उससे क्या क्या कहा मुझे सब याद हैं. अच्छी तरह से याद हैं मेरा हर शब्द मेरी स्मृति में बैठने लगा उसके चेहरे का हर रंग भी साथ साथ. बरस पड़ा था मैं उसपर ..साले रुक नहीं सकते थे तुम थोड़ी देर ..जात दिखा दि तुमने अपनी यही तो बुराई हैं तुम लोगो में ..थोडा सा बात कर लो तो सर पे चढ जाते हो साले ..अपनी औकात भूल गए हो. तुम्हारी मिठाई बिना मरा जा रहा था मैं तो ..दिखाई नहीं देता किसके साथ बैठा हूँ मैं. धीरे धीर मेरा लहजा बदलने लगा और धीमी पड़ती आवाज में फिर कहा ये क्या बेवकूफी हैं भाई साहेब कम से कम इतनी समझ तो होनी भी चाहिए आप में भी ..अब क्या करूँ मैं ...और भी बहुत कुछ कहा ...जो भी कुछ दबा हुआ था अंदर उसे निकाल दिया. कुछ भी जवाब ना देने की बारी उसकी थी. उसकी चुप वाली शकल मैंने इससे पहले कभी नहीं देख थी. मैं जिस जगह पे खड़ा था वहीँ बैठ गया ..सब कुछ मेरी आखों के सामने ही था. थोड़ी देर पहले ही जिस सब को मैं अपना माने बैठा था ..रेत कि तरह फिसल गया मेरे हाथ से. जैसे ही चेतन हुआ ..मैं चुपचाप सर झुकाए बिना आखें मिलाये बाहर आ गया और सुमन के केबिन कि तरफ चल दिया ...

*इस कहानी को प्रकाशन से पहले पढकर मशहूर शायर 'आदिल रज़ा मन्सूरी ' ने एक शेर कहा

मैं  अपनी आँख में आकाश भर के बैठा हूँ 
कफस हवा का ही परवाज खा  गया मेरी 


शीर्षक वहीँ से




परिचय


एक एम एन सी में नौकरी करने वाले आदित्य साहित्य के गंभीर अध्येता हैं और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता. सेव शर्मिला कैम्पेन सहित अनेक मुद्दों पर दिल्ली में उन्होंने गंभीर पहलकदमियां ली हैं. जयपुर में आयोजित कविता-समय 2 सहित अनेक कार्यक्रमों के आयोजन में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह कहानी लमही के ताज़ा अंक में छपी है,कुछ और कहानियां जल्द ही अन्य पत्रिकाओं में.  संपर्क 09873146393, e mail : divediaditya@gmail.com 

टिप्पणियाँ

भाषा में गजब की रवानी है और कथ्य भी उस दौर का प्रतिसंसार रच रहा है , जिसके आकर्षण में पूरी दुनिया पागल है ...| क्या कहें इस व्यवस्था पर ..? यदि यह नए दौर की शुरुआत है , तो पीछे लौटना किसे कहते हैं ..? बधाई स्वीकारें ...
Akhi Ojha ने कहा…
कहानी पढ़ कर लगा जैसे आदित्य भैया से सामने बैठ कर बातें हों रही हों,सारे दृश्य जैसे आँखों के सामने जीवंत हों गए, मन अतीत में कहीं खो गया,, बहुत अच्छी कहानी, पहली कहानी कि बधाई स्वीकारें..
वंदना शर्मा ने कहा…
आदित्य ने शानदार शुरुआत की है ..खुशी की बात है कि किस्सा बुनने का उनका अंदाज किसी का अनुकरण तो नही ही कर रहा बल्कि इस विधा में एक बेहतर संभावना का दावा भी पेश कर रहा है ..आदित्य को हार्दिक बधाई और असुविधा का भी बहुत बहुत शुक्रिया ..
himanshu ने कहा…
बहुत सुन्दर कहानी . मुझे शेखर जोशी की कहानी 'दाज्यू' याद आयी. बेशक इस कहानी की शैली अलग और मौलिक है.कुछ पैरेग्राफों को बिखेर दिया जाता तो और अच्छा होता.
आदित्य लगातार लिखते रहें. हमें उनसे ढेर सी कहानियां पढनी-सुननी हैं.
फिर से बधाई !
कुलदीप अंजुम ने कहा…
भाई ..जब कुछ जिया हुआ लिखा जाता है तो शायद इस तरह का ही अफसाना होता होगा ..कमाल कर दिया आपने ....क्या कहूँ .....कहानी और किस्सागोई किस बला का नाम है ...कई किस्सागो यहाँ से सीख सकते हैं ....बहैसियत पाठक इतना तो कह ही सकता हूँ !
मृत्युंजय ने कहा…
आदित्य हो, कहानिया निक लगलि.
देखा भाय, जवन चीज उठवले हवा, उ त एकदम्मे जरूरी हौ. बाकी तोहरे कहानी के हीरो के जिनगी क़ अउर किस्सा जाने के मन क़रै लगल.माने कहानी, हमारे हिसाब से अउर फ़इलावे के चाहत रहै.

देखा भाई, हम्मैं पढले के बाद लगल कि तोहार भाषा अबहिन राहि खोजति हवै. हम्मैं सही कहीं त रवानी ना लगलि. हडबड़ी लगति रहै.

तीसर बात ई कि शेर त बढ़िया हौ, बाकी ओकरे दुसरे मिसरा के शीर्षक बनवले से कहानी के असल रंग टेढ़ीयाय जात हौ, गरिष्ठ होए जात हौ. हमरे हिसाब से त शीर्षक तनी सरल-सहज होवे के चाही.

अउरू लिखा भाय. ए सब मामिला पे ढेर अ बढ़िया लिखे के दरकार हवै.

खैर अबीहिन् त कुल मिला के इहे कहत हईं कि घिव क़ लड्डू, टेढो भला.
गीता पंडित ने कहा…
आदित्य की पहली ही कहानी प्रभावित कर गयी .. आगे और भी बेहतर कहानियां पढ़ने के लियें मिलें ..

शुभ कामनायें
सलमान अरशद ने कहा…
is khani ne call center me wo bhi night sift me kam karne wale mere bhai ki muskilon se robroo kra dia. jhakjhorne wali khani hy aur is or dhyan khinchti hy ki kis trah rojgar ki is nyi duniya me khon chosa jata hy aur shikayat karne ke lia koi jagah b nhi, thank you Aditya. Apse yasi hi aur khaniyon ki ummid hy
Vipin Choudhary ने कहा…
kahani shandar hai, pahlee pankti se hee pathak ko pakad letee hain. behad sambhavnasheel lekhak ke tour pr samney aaya hai AAditya. dheron shubkamnayen
sanjeevni lauta do... ने कहा…
Drishyatmak lekhan shailee hai aapki ..bhadeshi bhasha me kahani or bhi meethi ban gai hai..aisa laga jaise kisi MNC k daftar me he baithe hon ...likhte rahiye
sanjeevni lauta do... ने कहा…
Drishyatmak lekhan shailee hai aapki ..bhadeshi bhasha me samvaad ki aatmeeyta bhut he bhut he meethi lagi... cafeteria k ladke se sahanubhuti hai mujhe ..aisa lagta hai kisi MNC me he baithe hain ..Likhte rahiye
Unknown ने कहा…
itna kuch tha is kathan mei.. but sabse pehle toh ye kahungi ki ye bohot realistic tha. jo reaction tha...wo galat tha ya sai tha ya practical tha..ye kehna na toh theek hai na hi iski zarurat hai. ek capitalistic environment mei ek marxist kaise apni ideology aur zarurat ke beech fasa hua hai...contradictions, conflicts ko samjhne aur samhalne ki koshish kar raha tha..aur phir ek din, unmei se ek haavi ho gaya.
Simi Chauhan ने कहा…
Aditya ji...mein soch bhi nahi sakti thi ki aap BPO ki jindagi ko itni sahejta se likhenge. Mujhe bhaut khushi hai ki mein bhi un khuskismat logo mein se hoo jinke saath aapne kaam kiya. Dhanyawad aapka aur aise hee hume mauka de aapko aur jaan ne ka aapki kahaniyo se!
Adi ने कहा…
bahut achhe se aapne apni feelings ko likha hai. laga nahi jaise koi kahani ho.. laga jaise mere saamne baith ke aapne batayi ho baat.. usi table pe cafeteria mein.. do gulab jamun ke saath :)
Unknown ने कहा…
bahut hi badiya likha hai Dubey ji,
is kahani ne 2 minute me aap se hume roobaroo kara diya.
Call center ki zindagi ka maja humne bhi liya hai.
or kya kahain har admi ki wahan aap se milti zulti kahani hai..
Very good God bless....
बेनामी ने कहा…
kahani padhkar laga ki sab kuch jaise mere hi saath hua ho..bhasha par pakad aur kahani zabardast hai.. pehli kahani k liye bohot bohot badhaiyan...aapse aise dilchasp kahaniyon ki aage bhi ummed karte hain..
Mohammed Nadeem ने कहा…
kahani padhkar laga ki sab kuch jaise mere hi saath hua ho..bhasha par pakad aur kahani zabardast hai.. pehli kahani k liye bohot bohot badhaiyan...aapse aise dilchasp kahaniyon ki aage bhi ummed karte hain..

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