प्रदीप सैनी की कवितायें




इधर प्रदीप सैनी ने अपनी कविताओं से पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. प्रदीप जिस सहजता से अपना प्रतिरोधी स्वर दर्ज करते हैं और खतरों से आपको सावधान करते चलते हैं, वह एक कवि के रूप में बड़ी संभावना का पता देता है. उनके पास एक परिपक्व भाषा है और साफ़ नजर. असुविधा पर उनकी कवितायें पहली बार. 


ख़तरा- कुछ नोट्स

ख़तरा कैसा भी हो
इतना नया कभी नहीं होता
इतिहास में कि उसका ज़िक्र मिले
पहचान कर पाना लेकिन
मुश्किल ही होता है हर बार
ख़तरा बहरूपियों कि तरह बदलता है रंगढंग
फिर बाज़ार की हज़ार ख़ामियों के बावजूद
ये बात तो है ही की यहाँ
हर चीज़ कई रंग रूपों में होती है उपलब्ध

इस वक़्त जब ज्यादा जानकार होते हुए
कम समझदार होती जा रही है दुनिया
सबसे जरूरी हो गया है
ख़तरा पहचान लेने का हुनर

यूँ तो कहीं भी मौजूद हो सकता है वह
संभावनाएं कम ही होती हैं वहां
उसके होने की जहाँ
लगाई जाती हैं अटकलें

उस पर नज़र रखने के लिए
वहां गौर से देखना चाहिए
जहाँ से खड़े होकर
बार बार दूसरी तरफ़ इशारा करता है
उसे पहचान लेने का दावा करने वाला विशेषज्ञ
उस आवाज़ में भी हो सकता है शामिल वह
उसके बारे में बड़ी इहतियात से जो
कर रही है दुनिया को आगाह

वह ख़ानाबदोश
लगातार बदलता है डेरा
फ़िलहाल खबर है की उसने अपना रूख़
सबसे पवित्र माने जाने वाले
ठिकानों की और कर लिया है

और सबसे बड़ा ख़तरा
नहीं ढूँढना होता है इधर-उधर
वह हमेशा भीतर ही छुपा होता है

कविता के ज़िक्र बिना
नहीं हो सकती ये बेतरतीब बातें पूरी
कम ख़तरनाक नहीं होती
कविता वह लिखता है जिसे
एक सुरक्षित कवि |




संवाद जरुरी है दोस्त

ऊपर के डिब्बे में
रख दिए जाने भर से
साबित तो नहीं होता
तुम ज़्यादा स्वादिष्ट या पौष्टिक हो
यूँ मत इतराओ
हमसे बात करो
सफर में संवाद जरुरी है दोस्त

हमें साथ-साथ एक हाथ
मुँह तक ले जाएगा
दाँतों के बीच
हममें फर्क करना मुश्किल होगा
मैं शायद पहले चबा लिया जाऊँ
या तुम ही निगले जाओ पहले
मत भूलो
अलग-अलग डिब्बों में होने के बावजूद
हम एक ही टिफिन कैरियर में बंद हैं ।



रियलिटी शो में पिता 

नौ साल की बेटी
आशा भौंसले सरीखी मादक आवाज को
अपनी भाव भंगिमाओ से
और सजा संवार रही है
दर्शक आह्लादित हैं
और श्रोता कोई नहीं
यह संगीत को देखने का युग है

तभी उसकी आवाज की
किसी गहरी खाई में धँस जाती है
पिता की खुशी
इतना तो जानता है पिता
सिर्फ शब्द नहीं
अर्थ गाता है गायक
और जैसे ही गहराती हैं
पिता के माथे पर लकीरें
बदल जाता है दृश्य

जब भी सतह के नीचे
नजर आने लगती है चीजें
अपने सही रंग रुप में
ठीक उसी वक्त
कैमरा खो बैठता है रुचि
अब पिता की चिंता नहीं
नाचते झूमते दर्शकों की तालियाँ हैं
कैमरे की आँख में

प्रस्तुति को देख निर्णायकगण
कम उम्र में बेटी के
इस प्रर्दशन पर हतप्रभ हैं
पढ़ रहे हैं तारीफ में क़सीदे
इस सब के बाद
दृश्य में लौट आता है
तालियाँ बजाने में
शामिल हुआ पिता ।
  

मचान पर बंदर और हुसैन की सरस्वती

उन्हें नापसंद है
हमारी आस्था का ढंग
हमारी स्मृतियों का रंग

वे इतिहास को सम्पादित कर रहे हैं

उन्हें एतराज़ है
हमारे सपनों की गंध पर
पहनावे की पसंद पर 

वे सभी मसलों पर फतवे जारी कर रहे हैं

वे तय कर रहे हैं पाठयक्रम
हमें पढ़ा रहे हैं पाठ

हमें अपनी तरह सभ्य बनाने पर उतारू हैं वे

एक इमारत की तरह
हमारे समूचे वर्तमान को ध्वस्त कर
उसके अवशेषों पर वे
भविष्य की नींव रखना चाहते हैं

अपनी पूँछ में आग लगा
ख़ाक कर देने को आतुर हैं वे
हमारी आज़ादी का लहराता परचम

जिस मचान से की जानी थी
उन पर निगरानी
इस वक़्त उस मचान के
ठीक ऊपर हैं वे

पर बंदर क्या जाने
मचान में नहीं होता
टहनियों का लचीलापन
कि मोड़ लें जिधर चाहें

वे गिरेगें मचान से
उछलकूद करते करते
मुंह के बल
और बहुत दिनों के बाद हँसेगी
हुसैन की सरस्वती |




नदी का पर्व

उसे निहारता है वो
उतारता है अपने भीतर
फिर उतर जाता है नदी में

वो मेरी सुबह खूबसूरत बना रहा है
जो नहा रहा है नदी में

आज नहीं है कोई पर्व
या किसी स्नान का महात्म्य
और इस नदी का भी तो
नहीं है कोई नाम

उसके लिए नदी नहीं है कोई नाव
बैठ जिसमें वो चाहता हो करना वैतरणी पार

वो तरोताज़ा कर रहा है ख़ुद को
एक ऐसी लड़ाई के लिए
जो रोज़ लड़ी जा रही है
और कहीं दर्ज नहीं होती

ख़ुद को और नदी को
दे रहा है भरोसा
कि बचा है अभी उनका बहाव
ख़ुशी में दौड़ पड़ी है नदी
दोगुने जोश में
पाकर उसके पसीने से
अपने हिस्से का खारापन ।



टिप्पणियाँ

अरुण अवध ने कहा…
इस वक़्त जब ज्यादा जानकार होते हुए
कम समझदार होती जा रही है दुनिया
सबसे जरूरी हो गया है
ख़तरा पहचान लेने का हुनर.........

बहुत शानदार कवितायेँ हैं प्रदीप सैनी की ! स्वर में कमल की ताज़गी है ! आभार अशोक जी !
Unknown ने कहा…
कमाल की रचनाएँ है व्यंग की ऐसी धार और विचार की सपष्टता बहुत कम देखने को मिलती है कविताओं से परिचित करवाने के लिए शुक्रिया अशोक जी
पंकज मिश्र ने कहा…
मैं दिल से प्रदीप को बधाई देना चाहता हूँ ......पहली कविता तो पूरी तरह से राजनीतिक कविता है , कितने आंदोलन कितने भाषणों के बाद भी जनता को हम असल खतरा समझा पा
ने में विफल रहते है , और कितनी आसानी से जनता और बुद्ध्हिजीवियों दोनों को समृद्ध करती साथ ही आइना दिखाती .....
अनिरुद्ध उमट ने कहा…
"jyada jaankaar hote hue kum samajhdaar hoti ja rahi h duniya"
is ek pankti se m kavi ka swabhav choo rahaa hu....bahut door tk jimmewari ka kaam pradeepji ne swikaar kiya h....apni unki hi ye line unhe atikraman ka avsar or chunouti degi. bahut shukriya...naye mitr ko padhane ke liy.."Asuvidha"..
अजेय ने कहा…
पहली कविता के लिए आभार प्रदीप, मैं भी अब खतरा सूँघने लगा हूँ ;) सुरक्षा खोज रहा हूँ इन दिनों .
हुत अच्छी कवितायें ....बधाई आपको
Meenakshi ने कहा…
pradeep ji....bahut bahut badhai....bahut hi badhiya aur ek alag hi tewar aur flavour liye hue hain aapki kavitaayen...meenakshi jijivisha
Anup sethi ने कहा…
बहुत दिन बाद 'असुविधा' से सामना हुआ. इसकी तो छटा ही बदली हुई है. वाह. प्रदीप सैनी की कविताएं यहां पढ़ कर मजा आया. सटीक, सधी हुई, पैनी, बेधक. हिमाचल इस समय उर्वर प्रदेश बना हुआ है.
अपर्णा मनोज ने कहा…
प्रदीप अच्छी हैं रचनाएँ. असुविधा का आभार..
Mahesh Chandra Punetha ने कहा…
in kavitaon main chaudayi bhi hai or gaharayi bhi...bahut sare mukhon se bolati hain.....apane samay ki sahi paratal kar us par sarthak hastakshep karati hain...vyanjanayen kamal ki hain. behatreen kavitayen hain.
Aharnishsagar ने कहा…
इस वक़्त जब ज्यादा जानकार होते हुए
कम समझदार होती जा रही है दुनिया
सबसे जरूरी हो गया है
ख़तरा पहचान लेने का हुनर

बहुत अच्छी लगी कवितायेँ . शुक्रिया आपको
और प्रदीप को शुभकामनाएं
neera ने कहा…
प्रदीप की कविताओं ने आज के मूल्यों और मानसिकता को बखूबी शब्दों में उतारा है कुछः पंक्तियाँ साथ रह जाती हैं

सबसे बड़ा ख़तरा नहीं ढूँढना होता है इधर-उधर वह हमेशा भीतर ही छुपा होता है
हम एक ही टिफिन कैरियर में बंद हैं ।

श्रोता कोई नहीं यह संगीत को देखने का युग है

उन्हें नापसंद है हमारी आस्था का ढंग हमारी स्मृतियों का रंग
वे इतिहास को सम्पादित कर रहे हैं
उन्हें एतराज़ है हमारे सपनों की गंध पर पहनावे की पसंद पर ..


प्रदीप को बधाई और असुविधा का धन्यवाद...


love verma ने कहा…
अच्छी रचने है ....
Manoj Joshi ने कहा…
Thanks for posting Pradeep ji's thought provoking poems especilly for "reality show mey pitaa". Regards MANOJ JOSHI
Manoj Joshi ने कहा…
Thanks for posting Pradeep ji's thought provoking poems especilly for "reality show mey pitaa". Regards MANOJ JOSHI
देश-काल परिस्थितियों को बेधती हुई, समय-दृश्य को बेहद सजगता से आकलित करती दृष्टि-बोध की कविताएँ ...
देश-काल परिस्थितियों को बेधती हुई, समय-दृश्य को बेहद सजगता से आकलित करती दृष्टि-बोध की कविताएँ ...
Tripurari Kumar Sharma ने कहा…
असुविधा पर प्रदीप की कवितायेँ पढ़कर मजा आया । यह कवि अपने को पढ़वाता है । कविताएँ सीधे मन को छूती हैं ।
बेनामी ने कहा…
बहुत बेहतरीन कविताएं हैं।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अलविदा मेराज फैज़ाबादी! - कुलदीप अंजुम

पाब्लो नेरुदा की छह कविताएं (अनुवाद- संदीप कुमार )

मृगतृष्णा की पाँच कविताएँ