रविकांत की कवितायें
अपने पहले कविता संकलन 'यात्रा' से पहचान बना चुके युवा कवि रविकांत की कवितायें इस दुष्काल में एक संवेदनशील युवा का हस्तक्षेप हैं. जिन्होंने उनकी लम्बी कविता 'इन कविताओं का कवि एक सपने में मारा गया' पढ़ी है, वे पुराने आदर्शों के विखंडन के इस काल में रविकांत की संवेदना के स्रोतों की सटीक पहचान कर सकते हैं. आज यहाँ उनकी कुछ कवितायें...
इतिहास
इस झील को ऐसे पहले नहीं देखा था !
तैरती नौकाएं
शिकारे
हॉउस बोटें
बतखें
सैलानी
कैमरे
और, ज्यादा से ज्यादा
झील के एक ओर निकला जाता
पानी में पनपता घास-जाल ....
खुला मौसम
नीला आसमान
ठंडी हवा....
लेकिन...
क्या कुछ डुबा दिया गया इस झील में !!
इतिहास कुछ इतना ही बताता है-
एक साथ मारे गए
विरोधियों के बालों की पोटली
का वज़न - सात मन,
उनके
धर्म-ग्रन्थ
पाण्डुलिपि
और
चिन्ह...
आज इस झील को देख कर
याद आ रहे हैं
अलग-अलग शहरों के
कुंएं, पोखर, तालाब, बावड़ी
पेड़, चौक, गली, मैदान
कितनी ही रेलें....
लाखों के रेले....
अनंत किस्से
दर्द के समंदर
घृणा के बगूले...
पूर्वजों का संघर्ष व कशमकश
और
मुहब्बत को लेकर
हमारा अनिर्णय....
सारी कायनात को
बाँहों में ले कर बैठा हूँ
मन उदास है.
अनफ्रेंड
जल्द ही मैंने फेसबुक पर रहने की तमीज़ सीख ली
जल्द ही मैंने जान लिया की ये निठल्लों का देश नहीं
ठीक पृथ्वी के आकार का एक घर है नया
हम यहाँ रहें बेलौस
घर के संस्कारों को त्यागे बिना.
जल्द ही मैंने जाना कि इस पर
रिश्ते जुड़ते तो हैं नए
पर
ये अपने सबसे करीबी रिश्तों में भी
ला दे सकता है खटास
आप जान भी नहीं पाते कि
आपका
गाहे-ब-गाहे किया गया
अपनी दोस्तों के स्टेटस
या फोटो पर
एक-दो लाइक
किसी को कितना नागवार गुज़रता है.
मैं तो सच में
ये सब तब ही जान पाया
जब मेरी सच्ची दोस्त ने
एक दिन मुझे कर दिया - अनफ्रेंड.
इस अनफ्रेंड किये जाने की चुभन
आप वास्तव में नहीं समझ सकते.
समझ सकता है सिर्फ वो
जो हुआ हो कभी
किसी अपने से
- अनफ्रेंड
अंशुल त्रिपाठी के लिए
हम दो दोस्त अपने अस्तित्व को साझा करते थे
हमारे पास एकदूसरे को पुरस्कृत करने की संजीवनियाँ थीं
हम एकदूसरे के विषय थे
हम कितनी ही देर एक-दूसरे की तारीफ और निंदा कर सकते थे
हमारे पास बात-चीत की एक सामान्य दुनिया थी जिसे हम किसी कोने में छिपा कर
रखते थे
और मौका मिलते ही उस कोने में सरक जाते थे
मै अन्य दोस्तों के बीच उसका मजाक उडाता था तो दोस्त उस पर सम्मान के साथ
हँसते थे
वह जानता था की हंसने वाले दरअसल ख़ुशी के आंसू के साथ जल रहे हैं
मै उसके पास दौड़-दौड़ के जाता था
वह मेरे पास कम आता था
मै जानता था कि बेदखली के मेरे इस समय में वह मेरा सिंहासन है
मुझे पाते ही वह मेरे सब गुणों पर रौशनी डाल देगा
वह मुझे देखते ही समझ जाता कि अब उसे नैराश्य के कूंए से निकलना ही होगा
हम एक-दूसरे पर खीझते थे गजब , सिर्फ तब
जब हम एक-दूसरे से मिले बिना रह लेते थे
हम जानते थे कि हमारे रास्ते अलग हैं
स्वभाव अलग हैं
लाभ-लोभ भी अलग किसिम के हैं
पर इतना भी बहुत था कि हम एक-दूसरे को समझते हैं
और उठा लेते हैं एक-दूसरे को वहां से जहाँ से हम उड़ना चाहते हैं...
हमारे बीच बहोत कुछ टूटा-मुरझाया
हमें सँभालने वाले कुछ दोस्त इधर-उधर हो गए
साझे लाभ नहीं रहे
हमारे बीच के आकाश में धुंएँ की शक्ल में न जाने क्या-क्या भर गया
मुक्त ह्रदय पर पड़ने थे सो बंधन पड़ गए
समय कभी टूटा, कभी चिटका, कभी सील गया, कभी शुष्क हो गया निरा
पर हमारा विश्वास परस्पर....
क्या कहूँ
रबड़ सा नहीं कह सकता
फौलाद सा कहना अपने दोस्त का एक बार फिर से मजाक उड़ाना ठहरेगा
हमारे बारे में बस यूँ समझिये कि
हमने साथ-साथ कभी
कोई फिल्म नहीं देखी
खेल नहीं खेला
हम सिर्फ बातें करते थे
घूमते थे साथ कि बात करेंगे
घर के सौदे लाते थे साथ कि बात करेंगे
पढ़ते थे थोडा सा
ज़रा सी गज़लें सुन लेते थे
एक-दूसरे कि जिम्मेदारियां मिल के निपटा देते थे
ताकि हमें मिले मोहलत
हम कुछ बहुत ज़रूरी बातें करना चाहते थे
हमारी बातें आज भी ख़त्म नहीं हुई हैं
हम कुछ सबसे ज़रूरी बातें करने से तो रह ही गए हैं.
हम एक-दूसरे से मिलना चाहते हैं
अभी इसी वक्त.
6 अगस्त 12 , 25:45 HR
समय
आस पास थे तुम तो चर्चा तुम्हारी थी
मेरे ख्यालों में तुम थे
आस पास थीं परेशानियाँ तो जूझता था उन्हीं से
वही संगी साथिने थीं
शहर था पहले इलाहबाद तो घूमता था उसी की गलियों में
अपना शहर छूटा तो दूसरे शहर की सडकों पे आ गया
जब जो काम आता है सामने उसे ही करता हूँ
ख़ाली समय में क्या करता हूँ ?
इस सवाल से बचता हूँ.
टिप्पणियाँ
और
मुहब्बत को लेकर
हमारा अनिर्णय....
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हम सिर्फ बातें करते थे
घूमते थे साथ कि बात करेंगे
घर के सौदे लाते थे साथ कि बात करेंगे
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कविताओं का हर शब्द ईमानदार है और शायद यही खींचता है पाठक को अपनी तरफ |
रविकांत जी को बधाई और आगे की यात्रा के लिये शुभकमनाएं |
बधाई ...