उमेश चौहान के संकलन की एक पड़ताल


कवि-अनुवादक उमेश चौहान की कविताओं की किताब 'जनतंत्र का अभिमन्यु' अभी हाल में ज्ञानपीठ प्रकाशन से आई है. आज प्रस्तुत है सरिता शर्मा द्वारा की गयी इसकी एक पड़ताल... 



प्रतिरोध की कवितायेँ 
  • ·         सरिता शर्मा 


उमेश चौहान ने मलयालम के सुप्रसिद्ध कवि अक्कित्तम की प्रतिनिधि कविताओं के हिन्दी अनुवाद किया है. इन्हेंअभय देव स्मारक भाषा समन्वय पुरस्कारतथा राजभाषा सम्मानप्रदान किया गया है. इनके कविता संकलन, ‘गाँठ में लूँ बाँध थोड़ी चाँदनी’,‘दाना चुगते मुरगेऔर जिन्हें डर नहीं लगताप्रकाशित हो चुके हैं. उनका चौथा कविता संग्रह 'जनतंत्र का अभिमन्यु' ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ है. इस संग्रह की कवितायेँ सामाजिक सरोकारों और राजनीतिक विद्रूपों को अभिव्यक्त करती हैं. इनकी विषयवस्तु राजनीतिक वंचना, किसानों की दुर्दशा, शहरीकरण, लोगों का अपनी जड़ों से दूर होना, गिरते जीवन मूल्य, समय की विसंगतियाँ, पारिवारिक संबंध, राजनीति और बाजार है.

डॉ नामवर सिंह के अनुसार उमेश चौहान की कविताओं को पढ़ते समय आज का संसार आदमियों की जगह कुत्ते, सियारों, बंदरों, सांपों, मुरगों जैसे पशु-पक्षियों से भरे एक जंगल की तरह दिखाई पड़ता है. इनकी कविताओं में मानवीय संवेदनाओं की कविताओं को शामिल किया गया है,’ अपनी कविताओं पर प्रकाश डालते हुए उमेश चौहान कहते हैं, ‘आसपास घटित होती बातों से सभी का मन प्रभावित होता है. जब इस प्रभाव का अतिरेक होता है तो मेरे मन में उन बातों के प्रति तीखी प्रतिक्रिया होती है.इस प्रतिक्रिया को अभिव्यक्त करने के प्रयास के स्वरूप ही मेरी अधिकांश कविताओं का जन्म हुआ है. ये प्रतिक्रियाएं वैयक्तिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि विभिन्न प्रकार की बातों से जुडी हुई हैं. इनमें कहीं जन्मदाता गांव का परिवेश केन्द्र में है, कहीं वर्तमान जीवन से जुडा शहरी वातावरण. 
इन कविताओं को पढते हुए दिनकर की ओजपूर्ण वीर कविताओं और प्रेम कविताओं की याद बरबस आ जाती है इस संग्रह की शीर्षक कविता जनतंत्र का अभिमन्युसबसे प्रभावशाली है जो आज के राजनीतिक हालात का सजीव चित्रण करके पाठक को सोचने के लिए विवश कर देती है.

यहाँ देख कर भी अनदेखा कर दिया जाएगा 
दुश्शासन का चीर-हरण जैसा कुकृत्य, 
यहाँ सुन कर भी अनसुना कर दिया जाएगा;
गीता का मर्मोपदेश,
यहाँ एक नहीं 
हजारों शिखंडियों की भीड़ इकट्ठी जुटेगी नित्य 

पितामहों का वध करने,
यहाँ नित्य बोलेंगे झूठ युधिष्ठिर
गुरुओं को मृत्यु के मुँह की ओर धकेलने के लिए,
यहाँ पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से ही
कोई विचार नहीं होगा धर्म-अधर्म का
इस तरह के कपट-युद्ध में
मारा ही जाएगा जनतंत्र का अभिमन्यु भरी दोपहरी. 
कवि उमेश चौहान 

इसी तरह रणभूमिकविता में भी विपक्षियों के सम्मिलित रूप से रचे गये चक्रव्यूह में महत्वपूर्ण काम करने की ठानने वाले अभिमन्यू की तरह हमेशा ही वीरगति को प्राप्त होते हैं. उजाले की तलाशकविता नक्सलवाद की समस्या की ओर इशारा करती प्रतीत होती है. वे अँधेरे में हुंकार भरते हुए भूल चुके हैं अब, शत्रु मित्र का विभेद भी. महानाश के कगार परकविता में प्राकृतिक प्रकोप के प्रति सचेत किया गया है. सुनामी से हुई विनाश लीला का शिकार बच्चा दुनिया भर के पर्यावर्णीय असंतुलन के दुष्परिणामों पर नजर डालता है. जरूरी होता हैमें अपनी अलग राह बनाने वालों को बाधाओं से निपटने के लिए अपने अंदर साहस और आत्मबल भरने का आह्वाहन दिया गया है. इसमें दुश्यंत की तरह आसमान में सुराख करने की बात कही गयी है.’ ‘लुकाठीकविता में कबीर की तरह फक्कडपंथी दिखाई देती है.
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कुछ कविताओं में दलित विमर्श भी उभरा है.मैं चोर नहींमें बच्चे के कफ़न का जुगाड न कर पाने वाली अबला माँ की मजबूरी दिखाई गयी है.लाचारीका लछिमन निषिद्ध कामों की पट्टिका लगाये ही पैदा हुआ है.वे शक्ति केन्द्र नहींमें हाशिए के लोगों के धीरे-धीरे शक्ति के केन्द्र बनने की कोशिश दिखाई देती है. कचरामें कूड़ा बीनने वाले की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया गया है. वे मरे नहीं थेमें मजदूरों और भूमिहीन आदिवासियों के मृतप्राय अस्तित्व को दर्शाया गया है. संकल्पकविता के मछुआरे उस निर्भीकता के प्रतीक हैं जो पैदा होती है, विकल परिवार का पेट पालने के लिए. 
पारिवारिक संवेदनावाली कवितायेँ अत्यंत सुकोमल भावों को छूती हैं. बेटी से बहू बन जाने की प्रक्रिया से गुजरती लड़कीको अनेक झंझावातों से गुजरना पड़ता है और नए परिवार की परम्पराओं के साथ तालमेल मिलाना पड़ता है. रोको उसेमें माँ द्वारा बेटे को नशे की लत से बाहर निकलवाने की गुहार लगायी गयी है. पिताजीकविता पिता के जाने गुजर जाने के बाद भी घर में उनकी निरंतर उपस्थिति का अहसास जगाती है.मेरा बेटामें पिता- पुत्र के नीम शहद रिश्ते की झलक मिलती है. गांव और शहर के रिश्ते को परिभाषित करती हुई कविताओं में कवि के मान में गांव के प्रति कसक महसूस की जा सकती है. गांवमें गांवों के लगातार विपन्न होते जाने की व्यथा है क्योंकि उनकी मजबूरी थी शहरियों की मिलों के लिए जमीनें देना, बिजली के लिए जंगल और पहाड देना.वनों का नाश होने और भूमंडलीकरण के चलते लूटे- पिटे गांव की स्थिति पर शिकारगाहों में तब्दील गांवकविता में ध्यान दिलाया गया है जो अहो ग्राम्य जीवन भी क्या हैसे एकदम विपरीत है. सर कटे गांव, ये लुटे गांव, जातीय तौर पर बंटे गांव, छाती नुचवाये ठगे गांव, भू-सत्व लुटाए ,बिके गांव.खुद को इलीट मानने वालों की मानसिकता पर देशी कुत्तेकविता में व्यंग्य किया है. अवधी कविताओं जमीन हमरी लै लेउऔर उनका हाल न पूछौ भैयामें भी गांवों की सौंधी खुशबू आती है.
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इस काव्य संकलन की प्रकृति प्रेम की कवितायेँ सुरम्य स्थानों और अलग अलग मौसमों के मन पर पड़ने वाले काव्यात्मक प्रभावों को दर्शाती हैं.जहाँ एक तरफ बित्ता भर धूप’, ‘पत्ता भर छाँव’, ‘खुला आकाशऔर इन्द्रधनुषप्रकृति के सौंदर्य को समेटती हैं वहीँ नैनीतालकविता में पिछले कुछ वर्षों के दौरान सैलानियों के आवागमन के कारण आए शहर के देवदारु गुल्मों की जगह कंक्रीट के भवन खड़े कर दिए जाने पर निराशा व्यक्त की गयी है. पेड़ों के काटने की दुष्प्रवृति पर पेड़ का भवितव्यऔर वृक्षऔर कवि ओ एन वी कुरुप्प भी नहीं बहायेंगे आंसूमें चिंता व्यक्त की गयी है. भूमि की आसन्न मृत्यु के प्रति चौंकाए जाने पर भी निश्चेत रहने की ही ठाने भू- पुत्रो डूब मरो, लिप्सा के इस चुल्लू भर पानी में.इस संकलन में प्रेम कवितायेँ अपनी विविधता से चौंकाती हैं. इनमें सहज दाम्पत्य की सच्चा प्रेम’, ‘प्रेम यात्रा’, ‘नारियल की देह’, ‘रति योग’, ‘प्रेमासक्ति’, ‘यादों का सावनऔर पवित्र सचजैसी कविताओं के साथ- साथ प्रेम की मादकताशीर्षक से कुछ मुक्तक शामिल हैं जिनमें प्रेमासक्ति को मदिरापान की संज्ञा दी गयी है. 

संकलन की लगभग सभी कवितायेँ बेहद पठनीय और प्रवाहमय हैं और इनमें पाठकों को बाँधे रखने की क्षमता है. कवि ने आम आदमी और किसानों की पीड़ा को बखूबी उजागर किया है. कविता के नए रस सिद्धांतमें वह कहते हैं-ऐसे ही बेढंगे रस भरे हैं आज उन कविताओं में भी. भृष्टाचार, शोषण, बेईमानी व विस्थापन के शिकार देश के करोड़ों हताश युवाओं के कुंठित व उद्वेलित मस्तिष्कों की नसों के बढते तनाव की बेचैनी से.इन कविताओं में जीवन के अनुभवों को शब्दों में सहजता से ढाल लिया गया है और सरल,प्रवाहमय और धारदार शैली का इस्तेमाल किया गया है.उनकी कवितायेँ विमर्शों के दायरों को तोड़ देती हैं और जीवन के अधिक निकट हैं जिनमें कभी कभी लोक जीवन के दर्शन भी होते हैं.
सरिता शर्मा 

एक काव्य संकलन 'सूनेपन से संघर्ष' तथा एक आत्मकथात्मक उपन्यास 'जीने के लिए' प्रकाशित. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षाएं, कविताएँ तथा कहानियाँ प्रकाशित. रस्किन बांड की दो किताबों सहित कई अनुवाद. आजकल राज्य सभा सचिवालय में सहायक निदेशक हैं. 

e-mail - sarita12aug@hotmail.com

टिप्पणियाँ

Mahesh Chandra Punetha ने कहा…
संग्रह की कविताओं से परिचय कराती हुयी समीक्षा.... पढ़ने को प्रेरित करती है.....धन्यवाद आप दोनों का.
अरुण अवध ने कहा…
साथी उमेश चौहान की कविताओं परखता हुआ सरिता शर्मा का अच्छा लेख ! उन्हें बधाई !
vandana gupta ने कहा…
उमेश चौहान जी की कविताओं पर सरिता जी की समीक्षा लाजवाब है…………दोनो को बधाई
babanpandey ने कहा…
सुंदर समीक्षा
.. मेरे भी ब्लॉग पर पधारे
अपर्णा मनोज ने कहा…
उमेश की कविताओं की पड़ताल करते हुए अच्छी समीक्षा. यथार्थ से उपजी यह कविताएँ कवि के अनुभवों और उनकी संवेदनशीलता की परिचायक हैं.उमेश और सरिता दोनों को शुभकामनाएँ..
बेनामी ने कहा…
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