नीरु असीम की कवितायें


नीरु असीम पंजाबी में लिखती रही हैं. हिंदी में उनकी कवितायें कम ही आई हैं. इन कविताओं को पढ़ते हुए उनके कवि के रूप में परिपक्वता का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं. यहाँ एक भाषा है जो एक साथ इतनी तरल और इतनी सघन है कि अपने कथ्य के साथ घुली-मिली सी लगती है. 'संकरे रास्तों से गुज़रती हवा में /आक्सीजन के अलावा/ और क्या होगा' जैसी काव्य-पंक्तियाँ उनकी क्षमता का पता देती हैं. उनकी कविताओं के अर्थ उतना शब्दों के बाहर नहीं जितना शब्दों के भीतर गूंजते मंद्र संगीत में हैं. असुविधा पर उनका स्वागत और उम्मीद कि आगे भी हम यहाँ उनकी कवितायें पढेंगे.



तिरछापन 
तुम्हारा तिरछापन
छुरी से पूछे बिना ही
खुन गया है
चमड़ी की सातों परतों में

ख़ून नहीं दिखेगा

सीलन में पलते पलते
जिस्म काक्रोची हो गया है

क्लोरोफार्म में पड़े-पड़े
धुत्त घूमता है
ब्रहमाण्ड़…

आजकल किसके पास है
जिलाने और
मारने का परमिट

मैं यहाँ
जीने या मरने को
बेचैन हूँ…

और तुम्हारा तिरछापन
कम पड़ रहा है…


रोज़नामचे से…

सब कुछ तरल है
पहली
और बाद वाली बातों समेत…

हमारे अलावा
बातें भी
बतियाती रहीं हमसे…

जो कभी सुनी नहीं गयीं

कहाँ बही होंगी
पता नहीं…

अब
कोई कुछ नहीं कहता

सुनता रहता है कुछ-कुछ फिर भी…

जमता है
हृदय धमनियों में

संकरे रास्तों से गुज़रती हवा में
आक्सीजन के अलावा
और क्या होगा

क्या…?



क्या

तुम कुछ ढूँढ रहे थे…

मैनें तुम्हें
फूलों के पराग में देखा…

तुम्हीं थे उन रंगों में
जो बदलने लगते हैं
तमाम पत्तियों के
झर जाने से थोड़ा पहले…

सारे वाहनों की गतियों में
दौड़ रहे थे तुम
कि अचानक
शैय्या पे पड़ी
लाश में छिप गए…

सूँघते रहे
लाश के प्राण…

हमकती रहीं
धारणाएँ…
अधीनताएँ…

और वो हिलजुल
जो वहाँ नहीं थी
उसी के हिंड़ोले में बैठ
तुम बैंक चले गए
स्पर्म बैंक…

दिख नहीं रहे
न जाने कौन सी
स्पर्म नली में बंद हो…

मैं यहाँ
सागर किनारे
लहरों की
कशमकश में ढूँढती हूँ…

तुम जलकणों में थरथराते 
किरणों के रथ पे चढ़ने को
प्रतिबिंम्बित हो रहे हो…

आज मैं रात ढ़ले चैट-बाक्स में ढूँढूँगी
और तुम…?


इस तरह

कई बार पहले भी
हम इस तरह
मिल चुके हैं…

बातें करते हैं
तो लगता है…
जैसे ग़ुलाम की डायरी के
पन्ने पढ़ रहे हों…

कई बार पहले भी हम
विश्वसनीयता जता चुके हैं…

ठीक-ठीक आंकने के यंत्र
न तुम्हारे पास हैं
न मेरे पास

“कैसे अनजान से बतियाना है ये”
ऐसा स्पष्टतयः
न तुम कहते हो
न मैं…

पर ऐसा स्पष्टतः
तुम भी सुनते हो
मैं भी सुनती हूँ…


इंतज़ार

क्या तुम
एक और बार
आने वाले हो…

इस बार कम उत्साहित
कम उत्कंठित
अधिक जागरुक व्यग्रता के लिए…

बहुत सी शीर्ष पंक्तियाँ
कबाड़ हो चुकी हैं…

इस्तेमाल हो गईं
उन समयों में
दुहरा दुहरा
अन्यान्य बार…

इस बार वार्ता में
कम पंक्तियाँ हैं
उक्तियाँ
शायद ज़्यादा हो…

क्या आ रहे हो
जैसै तुम
आते रहे हो…
क्या आते रहोगे
देर तक…

मैं तो यहीं हूँ
देर तक…



कुछ घड़े

कुछ घड़े
अनुगूँजों से
भरे रहते हैं

थापो तो कैसे-कैसे 
मंद उग्र स्वर कहते हैं…

भाव भंगिमाएँ
आस्थाएँ प्रतिमाएँ
शाब्दिक अर्थों में
सारी ही व्यस्तताएँ…
अपने अपने
छुनछुनों में बजती हैं…

जब भी मुँह खोलो
गूँज उठती हैं…

अनुगूँजें शोषित करने को
मैं घड़े टांगती हूँ

कुछ घड़े
उल्टे टंगे
अनुगूँजों से भरे रहते हैं…



इस तरह

धीरे-धीरे बात बनी है
धीरे-धीरे दिन से रात…

मौसम गहन गंभीर हुआ है
धीरे-धीरे उठ कर
बादल बरस पड़ा है…

पिता ने
फिर सिगरेट सुलगाई…
ऐश-ट्रे में
राख भरी है
धीरे-धीरे…

अंगुलिमाल की माला में
मनकों सी पुरी है
इक इक अंगुलि
धीरे-धीरे…

साधु ने प्रवचन किया है…
चोरी से है
सेंध लगाई
धीरे-धीरे…

धीरे-धीरे फिर
इक मां के
गर्भ में मैंने…
जन्म लेने को
समय बिताया
धीरे-धीरे…
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हमने परिचय माँगा तो नीरू ने जो जवाब भेजा वह ज्यों का त्यों यहाँ संलग्न है 

बठिंड़ा, पंजाब मेरा जन्म स्थान है और तिथि 24 जून 1967 । मां श्रीमती सावित्री देवी और पिता स्वः श्री सत्य प्रकाश गर्ग।

पढ़ाई लिखाई एक यंत्रवत अनुभव था। समय का एक हिस्सा इससे चुकता किया। कविता माता पिता से मिली। सौभाग्य रहा होगा। जीवन माता पिता का ऋण है, जिसे मैं चाह कर भी नहीं चुका सकती, ऐसा अब तीव्रता से महसूस होता है।

पति, दो बेटे और मैं परिवार हैं।

पंजाबी में कविता की दो किताबें हैं। ‘भूरियां कीडियां’ और ‘सिफ़र’।

लिखना ज़रूरी है, ख़ुराक है, फिर भी भुखमरी के दिन रहते हैं। जिये गये में क्या था, देखने के लिए कविता यंत्र है। बस। देखना खोलता है, तोड़ता है। मुझे ज़रूरी है लिखना। ड्रग है लाईफ सेवर।

जीना देखने से अलग होता है क्या…!

पता नहीं…। कविताएँ न होतीं तो यह सवाल इस ख़्याल के साथ मेरे पास न होता।

यही परिचय स्वीकार करें।





टिप्पणियाँ

Rajendra kumar ने कहा…
बहत ही भावपूर्ण कवितायेँ,आभार.
Gurpreet ने कहा…
नीरु पंजाबी की अपनी ही तरह की एक ऐसी शायरा है जिस की कविता में अनेक परते हैं ...
अजेय ने कहा…
प्रेम से भरे कवि की कविताएं . यह मौलिकता इधर कम देखी जा रही है हिन्दी कविता में . कहीं है भी तो लफ्फाज़ी ने दँक दिया है उसे .
यह प्रेम का नैसर्गिक पाठ था . वक्तव्य भी ईमानदार है . आभार इस प्रस्तुति के लिए .
Dinesh pareek ने कहा…
वहा बड़ी सुन्दर और मन मोहक कविता की सरंचना की है आपने ........आभार

आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
आनंद ने कहा…
कैसे आपका शुक्रिया अदा करूँ अशोक भाई इतनी सुंदर कवितायें पढवाने के लिये ... बहुत तरलता है अभी हृदय में बस बहा जा रहा हूँ |
"हमारे अलावा
बातें भी
बतियाती रहीं हमसे…
जो कभी सुनी नहीं गयीं
कहाँ बही होंगी
पता नहीं…
अब
कोई कुछ नहीं कहता"......
नीरू असीम की कुछ कविताओं को मैंने पहले भी पढ़ा है | उन्हें असुविधा पर पढ़ना और अच्छा लगा |
Onkar ने कहा…
बहुत अलग-सी कविताएँ
अच्छी कविताएँ हैं. कवयित्री को बधाई और आपको धन्यवाद.
Pratibha Katiyar ने कहा…
sundar kavitayen aur parichay bhi...
आपकी यह प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
धन्यवाद
आपकी यह प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
धन्यवाद
avanti singh ने कहा…
रचना बहुत ही बेहतरीन है ,परिचय रोचक और सार्थक लगा ,आप का प्रयास सराहनीय है
Unknown ने कहा…
Behad khoobsoorat kavitayein hain, mehsoosne ki baatein karti huin, aaj ki behad ulajhi hui zindagi mein
Neeru Aseem jee ki kavitaon me sacche mayono mein stree man abhivyakat hota hai. Aseem peeda, aseem samvedna, aseem arth.saghan bimb.Sabhi kavitain bahut acchee lagee.baar baae padunga... hardik badhai. Ashok jee Abhaar.
अनिल जनविजय ने कहा…
अद्भुत्त, शानदार। मेरी शुभकामनाएँ।
अनिल जनविजय ने कहा…
अद्भुत्त, शानदार। मेरी शुभकामनाएँ।

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