खोजो तो जरा आजकल कबीर किधर है - अविनाश की तुकबन्दियाँ
अविनाश हिंदी के बहुधंधी युवा पत्रकार हैं और हम सब उन्हें इसी रूप में जानते हैं. कविता की दुनिया में उनका हस्तक्षेप नया नहीं है लेकिन उस ओर उनकी सक्रियता पिछले दिनों स्थगित रही है. इधर अचानक वह अपने विशेष अंदाज़ और छंद के साथ फेसबुक पर नज़र आए. तीखी और चुभती हुई ग़ज़ल के आसपास की लय जिसे वह 'तुकबन्दियाँ' कहते हैं. इनकी सबसे बड़ी खूबी यह कि एक ओर ये सहज सम्प्रेषणीय हैं तो दूसरी ओर लोकप्रियता के लिए की जाने वाली तमाम हरक़तों से मुक्त. हिंदी की मुख्यधारा की प्रतिबद्ध कविता के साथ इन्हें मैं जोड़कर इसलिए देखता हूँ कि इनमें समझौते और बाज़ार प्रिय होने की कमज़र्फ कोशिशें नहीं दीखतीं. अपने मूल चरित्र में ये पूरी तरह राजनीतिक हैं और इसीलिए ज़रूरी भी. हमारे आग्रह पर अविनाश ने इन्हें असुविधा के लिए भेजा, हम आभारी हैं.
इजराइली कलाकार मोशेल कैसेल की पेंटिंग हलेलुजाह |
1
इंसाफ और अमन पे 'साहेब' की नजर है
कई रोज से चमन पे 'साहेब' की नजर है
कई रोज से चमन पे 'साहेब' की नजर है
इस
मुल्क को हर बार कोई लूट गया है
इस
बार तो कफन पे 'साहेब' की नजर है
चोरी
छिपे तिजोरी भरते चले गये
अब
आखिरी गबन पे 'साहेब' की नजर है
जो
भी मिला उसी की इज्जत उतार ली
सहमे
हुए बदन पे 'साहेब' की नजर है
मुमकिन
हो कोई जंग तो अब छेड़ दो लोगो
इस मादरे वतन पे 'साहेब' की नजर है
2
खोजो तो जरा आजकल कबीर किधर है
रैदास का मकान जिधर है क्या उधर है
रैदास का मकान जिधर है क्या उधर है
इस दौरे सियासत पे कोई क्यों नहीं लिखता
क्या इसलिए कि शायरों को मौत का डर है
क्या इसलिए कि शायरों को मौत का डर है
दिल्ली के दरख्तों पे परिंदे नहीं रहते
कई साल से बहेलियों का खूब कहर है
कई साल से बहेलियों का खूब कहर है
जिस हादसे ने छीन ली जांबाज सी लड़की
उस हादसे से आज भी सदमे में शहर है
उस हादसे से आज भी सदमे में शहर है
कहने को एक नदी है जो बेनूर पड़ी है
बरसों से इस नदी के पानी में जहर है
बरसों से इस नदी के पानी में जहर है
ऐसा भी नहीं है कि ये कमज़र्फ शहर है
ग़ालिब का घर यहां है यहीं दाग़ का घर है
ग़ालिब का घर यहां है यहीं दाग़ का घर है
3
आज कुछ राज़ भजा लेते हैं
सामने फूल सजा लेते हैं
सामने फूल सजा लेते हैं
उनके आने से जरा सा पहले
आईना देख लजा लेते हैं
आईना देख लजा लेते हैं
दिल धड़कता है कभी तो यूं ही
हम भी संतूर बजा लेते हैं
हम भी संतूर बजा लेते हैं
उनकी हर बात हमारी ही है
वे भी हर बार रजा लेते हैं
वे भी हर बार रजा लेते हैं
उनके जाने के बाद हम हर पल
उनकी यादों का मजा लेते हैं
उनकी यादों का मजा लेते हैं
[भजा लेना = छुट्टे (खुदरा) करा लेना]
4
उसके दिल में जो आता है कह देता है
अपनी हर मासूम अदा को शह देता है
अपनी हर मासूम अदा को शह देता है
सारे कठिन सवाल हमें ही हल करने हैं
कोई और वकील दलील-जिरह देता है
कोई और वकील दलील-जिरह देता है
हमने जिसको चाहा हमको मिल न पाया
प्यार-व्यार तो हमको सिर्फ विरह देता है
प्यार-व्यार तो हमको सिर्फ विरह देता है
भीड़ भाड़ में भी कोई मिल ही जाता है
दिल में जगह हुई तो जरा जगह देता है
दिल में जगह हुई तो जरा जगह देता है
सरे शाम उससे मिल कर कुछ कर्जा मांगा
शाम का भूला अक्सर कर्ज सुबह देता है
शाम का भूला अक्सर कर्ज सुबह देता है
5
परसों खफा था मुझसे, कल संग आ गया है
कुछ इस तरह से जिंदगी में रंग आ गया है
कुछ इस तरह से जिंदगी में रंग आ गया है
दिन दोपहर गुजारी करके शराबनोशी
और शाम जब ढली तो तरंग आ गया है
और शाम जब ढली तो तरंग आ गया है
कमबख्त ये मोहब्बत भी है अजीब शै ही
तरतीब में जीने का कुछ ढंग आ गया है
तरतीब में जीने का कुछ ढंग आ गया है
दिल्ली से हमने उसको चिट्ठी न तार भेजा
फिर दोस्ती के लोहे में जंग आ गया है
फिर दोस्ती के लोहे में जंग आ गया है
फुर्सत से ख्वाब बुनने को बेकरार है दिल
दफ्तर-दुकान जाकर ये तंग आ गया है
दफ्तर-दुकान जाकर ये तंग आ गया है
6
दुविधा के दो टुकड़े करने वाले चले गये
चरणदास के पैरों के सब छाले चले गये
चरणदास के पैरों के सब छाले चले गये
चतुर चोर को सच्चाई का नमक चटाया था
चिंता चित्त हुई तो घर के ताले चले गये
चिंता चित्त हुई तो घर के ताले चले गये
लालच की परिणति का किस्सा कहते रहते थे
जिसने सुना उसी के दिल से काले चले गये
जिसने सुना उसी के दिल से काले चले गये
अपनी भाषा से हिंदी तक सड़क बनायी थी
उन सड़कों पर शब्दों के रस डाले चले गये
उन सड़कों पर शब्दों के रस डाले चले गये
विजयदान देथा ही थे जो एक अकेले थे
उनको पढ़कर मन के सारे जाले चले गये
उनको पढ़कर मन के सारे जाले चले गये
7
उनको जलती हुई बस्ती में कुछ सुकून मिला
और अन्याय की ताबीज में कानून मिला
और अन्याय की ताबीज में कानून मिला
हम शराफत से गले मिलने को बेचैन रहे
उनको बदमाशियों के भेड़ में कुछ ऊन मिला
उनको बदमाशियों के भेड़ में कुछ ऊन मिला
सबने खामोश अदालत को जो बयान दिया
हस्बे मामूल कि पीने को वहां खून मिला
हस्बे मामूल कि पीने को वहां खून मिला
एक गुजरात जो इस मुल्क को डराता है
सर्द सर्दी के दिसंबर में गर्म जून मिला
सर्द सर्दी के दिसंबर में गर्म जून मिला
एक बच्ची का गला रेत के वो भाग गये
पुलिस आयी तो उसे मर चुका हारून मिला
पुलिस आयी तो उसे मर चुका हारून मिला
8
एक कातिल है जो लीडर की तरह चलता है
अपने
चोले को समय देख कर बदलता है
लोग इतिहास की गलियों में अब नहीं जाते
यही मिजाज मुसीबत के वक्त खलता है
उसको मालूम है लोगों की फितरतें सो वह
अपनी चालाक अदाओं से सबको छलता है
वो मुतमइन है कि जागीर सब उसी की है
इसी यकीन से वो मुल्क में टहलता है
वो आ गया तो कहर-कोहराम कर देगा
जब भी ये सोचता हूं दिल मेरा दहलता है
लोग इतिहास की गलियों में अब नहीं जाते
यही मिजाज मुसीबत के वक्त खलता है
उसको मालूम है लोगों की फितरतें सो वह
अपनी चालाक अदाओं से सबको छलता है
वो मुतमइन है कि जागीर सब उसी की है
इसी यकीन से वो मुल्क में टहलता है
वो आ गया तो कहर-कोहराम कर देगा
जब भी ये सोचता हूं दिल मेरा दहलता है
9
सब
हैं अपना घर भी है मन खाली खाली रहता है
कभी
गांव की नदी कभी आमों के बीच ठहरता है
वो
इस्कूल कि जिसमें बचपन की सखियों का संग रहा
अब
यादों के चेहरे पर पानी भी नहीं टपकता है
मिट्टी
महंगी, लकड़ी
महंगा, आग, धुआं सब महंगा है
ज़हर
भरी बोतल शराब की जान गंवाना सस्ता है
शहर
शहर में शहर शहर है बिजली और सिनेमा है
अपना
गांव अभी भी लेकिन अंधेरे में रहता है
हम
दिल की गुलज़ार गली में पूरी उम्र गुज़ार चुके
प्यार
का मौसम फिर आएगा बच्चा बच्चा कहता है
एक
पुरानी चिट्ठी खोली उखड़ रही थी स्याही सब
नीलकंठ
काली कोयल की कूक गुलाब महकता है
सुबह
दोपहर शाम सेठ के आगे पीछे करते हैं
बेशर्मी
से भरा हुआ श्रम बन कर घाव टभकता है
सब
कुछ किस्मत का लेखा कह कर हम भाग निकलते हैं
लेकिन
रोयां-रोयां बोले सब बाज़ार में बिकता है
वो
परसों ही बोल रही थी भूल गये ना तुम हमको
मेरी
चुप्पी मेरा तन्हा वक्त मुझे झुठलाता है
10
सर
से पानी सरक रहा है आंखों भर अंधेरा
उम्मीदों
की सांस बची है होगा कभी सबेरा
दुर्दिन
में है देश शहर सहमे सहमे हैं
रोज़
रोज़ कई वारदात कोई न कोई बखेड़ा
पूरी
रात अगोर रहे थे खाली पगडंडी
सुबह
हुई पर अब भी है सन्नाटे का घेरा
सबके
चेहरे पर खामोशी की मोटी चादर
अब
भी पूरी बस्ती पर है गुंडों का पहरा
भूख
बड़े सह लेंगे, बच्चे
रोएंगे रोटी रोटी
प्यास
लगी तो मांगेंगे पानी कतरा कतरा
अब
तो चार क़दम भर थामें हाथ पड़ोसी का
जले
हुए इस गांव में साथी क्या तेरा क्या मेरा
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अविनाश इन दिनों दिल्ली में हैं, मोहल्ला डाट काम चलाते हैं और आजकल फिल्मियाये हुए हैं. संपर्क इनसे कहीं भी किया जा सकता है.
टिप्पणियाँ
कई साल से बहेलियों का खूब कहर है..
यह तुकबंदी नही साहेब दिल-बंदी है....