असुविधा विशेष - लाल्टू की ताज़ा कविताएँ
लाल्टू हमारे समय के महत्त्वपूर्ण और प्रतिबद्ध कवि हैं. आज "असुविधा विशेष" में उनकी कुछ ताज़ा कविताएँ.
तरक्की
कितनी तरक्की कर ली।
इतनी कि लिखना चाह कर भी रुकता है मन।
लैंग्वेज़ इनपुट ठीक है, यूनिकोड कैरेक्टर्स हैं, प्यार पर्दे पर बरसने को
है, पर
क्या करें उन ज़ालिमों का जो खुद को ज़ुल्मों के तड़पाए मानकर तांडव
नाच रहे हैं;
मन कहता है लिखो प्यार और फ़ोन आता है कि चलो इकट्ठे होना है जंग के
खिलाफ आवाज़ उठानी है
क्या करें
कितनी बार कितनी विरोध सभाओं में जाएँ कि जंगखोर धरती की आह सुन
लें
कहना है खुद से कि हुई है तरक्की
प्यार को रोक नहीं सकी है नफ़रत की आग
वो रहता अपनी जंगें लड़ें
हम अपनी जंगें लड़ेंगे
हुई है तरक्की
उनकी अपनी और हमारी अपनी
सड़क पर होंगे तो गीत गाएँगे
घर दफ्तर में लैंग्वेज़ इनपुट ठीक है, यूनिकोड कैरेक्टर्स हैं, प्यार पर्दे पर बरसता
रहेगा।
कावेरी तुम कहाँ
(अब मान लो कि उन तीन सौ में मैं हूँ
ऐमस्टर्डम से मेलबोर्न की उड़ान पर
बस छः घंटे और कि पहुँच कर आराम करूँ और कल पर्चा पढ़ने की तैयारी
करूँ)
परिचारिका अभी अभी एक और जिन और टॉनिक दे गई है
चुस्कियों में फिल्म देखते आँख लग गई और
फिर
कैसा झटका
क्रमशः शोर में तब्दील होते गुंजन के साथ यह धुँआ कैसा
उफ्! कावेरी
तुम कहाँ हो
तुम जगी हो या सोई हो
तुम जानती हो क्या कि मैं तेजी से गिरता जा रहा हूँ
धरती खींच रही है मुझे
बस दो पल हैं कि मैं कह सकूँ कि
मैंने जितना चाहा उससे कम ही तुम्हें प्यार कर पाया
कि मैं रो नहीं रहा पर मेरी आँखों से लगातार आँसू बह रहे हैं
मैंने कोई जंग नहीं लड़ी
किसकी जंग है जो मुझे छीन ले गई तुमसे
मेरे सामने की सीट पर कोई बच्चा रो रहा है
उसकी माँ के चेहरे पर बहता खून बहुत सुंदर लग रहा है
एक आदमी गिर पड़ा है मेरे सामने
किसी को गालियाँ निकाल रहा है
उसके लिए दया का एक पल मेरे पास बचा है
कावेरी तुम कहाँ हो।
पूरा कुछ कैसे बनाऊँ
विषय अधूरा समझ
अधूरी
जगत अधूरा सोच
अधूरी
दृष्य अधूरा दृष्टि
अधूरी
जिनसे
मिलता हूँ वे अधूरे
पूरा-पूरा
सोचने को तड़पता मन
नाव
लेकर समुद्र में गए हैं
मछुआरे
आधी
सी बहती हवा में आ-आकर
सुनाती हैं लहरें
गीत अधूरे
फिसलती
रहती हाथों से
शाम
अधूरी।
उन कमरों को देख आओ
रोके
जाने से कोई रुक जाए यह
ज़रूरी नहीं
जीते
जी नहीं तो मर कर बढ़ आते हैं
जिनको
लक्ष्य तक पहुँचना है
जब
लक्ष्य ही जीवन
तो
जीना क्या और क्या मरना
उन कमरों को देख आओ
जिनमें
तुम्हें रहना है
जो
रोकते हैं उनसे भी दुआ-सलाम
कर आओ
वह
भी जानते हैं कि तुम रुकोगे
नहीं
उड़ते हुए
उड़ते
हुए नीचे लहरों से कहो कि
तुम्हें
आगे जाना ही है
तुम
बढ़ोगे तो तुम्हारे पीछे आने
वाले बढ़ेंगे
इसलिए
आगे बढ़ते हुए अपनी उँगलियाँ
पीछे रखो
कि
कोई उन्हें छू सके।
कभी बन गया हूँ वह मैं
मैं
धरती की परिक्रमा कर
चुका था
जब
उसे आखिरी बार बरामदे से झुककर
मुझे
विदा कहते देखा था
उसके
मरने पर थोड़ा ज़रूर पर बहुत
ज्यादा रोया न था
अजीब
लगता था
धरती
के इस पार वह मर चुका था
जिसके
निःसृत अणुओं से
माँ
के पेट में कभी मैं जन्मा था
उसके
मरने पर मैं कुछ तो बदला था
तभी
से मुड़-मुड़
कर सोचता रहा हूँ चालीस साल
असके
कंधों पर मैं
और
अँधेरी सड़कों पर चलता वह
अंजाने
ही कभी बन गया हूँ वह मैं
मेरे
कंधों पर कोई और है
अँधेरी
सड़कें भी हैं
मैं
चलता चला हूँ।
तकलीफ
मैं
ऐसे किसी भी खुदा को मानने को
तैयार हूँ
जो
एक रोते बच्चे को हँसा दे
वे
कैसे लोग होते हैं
जिन्हें
बच्चों की किलकारियाँ शोर
लगती हैं
ए सी की मशीनी धड़धड़ में सोते हैं
खर्राटे मारते
और
बच्चे के उल्लास से परेशान
होते हैं
दुनिया के हर बच्चे से कहता
हूँ कि हमारी मत मानो
आ
आ कर दाढ़ी खींचो हमारी
और
अपनी राहों पर चल पड़ो।
कुत्तों के पिल्लों और सूअर
के बच्चों से भी
तकरीबन
यही कहना है
तकलीफ यह कि मुझे उनकी भाषा
नहीं आती।
उत्तर-आधुनिक हिंसा
मैं
हिंसा
तुम
हिंसा
वह
हिंसा
हिंसा ही है
अहिंसा।
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