महाभूत चन्दन राय की प्रेम कविताएँ
महाभूत एक बीहड़ कवि हैं. बहुत गहरे भटकने वाले. एक मुसलसल बेचैनी उनकी कविताओं का अविभाज्य हिस्सा नहीं बल्कि ऊर्जा स्रोत है. उन्होंने अक्सर लम्बी गद्यात्मक कवितायें लिखी हैं. आज अचानक उनकी इन प्रेम कविताओं पर नज़र पड़ी. इस विकट समय में प्रेम जैसे इस युवतर कवि के पास एक अंतराल की तरह आया है. वह अंतराल जहां रुककर किसी को साथ ले आगे बढना है. कविताओं पर कुछ ज्यादा कहने की जगह मैं पाठकों से रुककर और धीरज से पढने की अपील करूंगा.
असुविधा पर उनकी अन्य कविताएँ पाठक यहाँ पढ़ सकते हैं.
तुम जरा सा साथ दे देना
तुम जरा सा कहोगी
और मै तुम्हारे शब्दों के स्नान में
गंगा सा पवित्र हो जाऊँगा
और मै तुम्हारे शब्दों के स्नान में
गंगा सा पवित्र हो जाऊँगा
तुम
जरा सा हंसोगे
और चाँद से गिर रही इस मीठी ठंडी हंसी से
मै कुबेर धनी हो जाऊँगा
और चाँद से गिर रही इस मीठी ठंडी हंसी से
मै कुबेर धनी हो जाऊँगा
तुम्हारा
घूँघट जरा सा ढलेगा
और तुम्हारे रूप के टपकते नूर से
मै मोतियों सा धुल जाऊँगा
और तुम्हारे रूप के टपकते नूर से
मै मोतियों सा धुल जाऊँगा
तुम
जरा सा साथ दे देना..
मै सच कहता हूँ
जन्मो-जन्मो तक संवर जाऊँगा !!
मै सच कहता हूँ
जन्मो-जन्मो तक संवर जाऊँगा !!
प्रिय तुम्हारा चेहरा
ऩऱम ऩऱम मख़मल सी मुलायम ,
भीजे चाँद क़ी भीगी चाँदनी सी
सोकर उठी सुबह सी उज्जवल ,
ऩऩ्हे फूलो की हसँती क्यारी सी
साँझ के आक़ाश सी कुछ कुछ,
कुछ कच्ची माटी की पावऩ मूरत सी
निम॑ल ओस सी ताजा ,
मन्दिर की अलौकिक सजावट सी !
सोने के तारो से मढ़ी भौंहों के नीचे
खुदा की जिन्दगी भर की कमाई…
ईश्वर का रूप है
“प्रिय तुम्हारा चेहरा” !
भीजे चाँद क़ी भीगी चाँदनी सी
सोकर उठी सुबह सी उज्जवल ,
ऩऩ्हे फूलो की हसँती क्यारी सी
साँझ के आक़ाश सी कुछ कुछ,
कुछ कच्ची माटी की पावऩ मूरत सी
निम॑ल ओस सी ताजा ,
मन्दिर की अलौकिक सजावट सी !
सोने के तारो से मढ़ी भौंहों के नीचे
खुदा की जिन्दगी भर की कमाई…
ईश्वर का रूप है
“प्रिय तुम्हारा चेहरा” !
तुम्हारी चूड़ियाँ
प्रेम का वृत हैं तुम्हारी चूड़ियाँ..
मैं तुम्हारी कलाईयों में परिक्रमा करता हूँ …
तुम कांच की चूड़ियाँ पहनती हो..
तुम लाख की चूड़ियाँ पहनती हो..
तुम पीतल के कड़े पहनती हो..
तुम सोने के कंगन पहनती हो…
तुम इठलाती हो हीरे के नग लगे कंगन पहनकर
मैं तुम्हारी कलाईयों में परिक्रमा करता हूँ …
तुम कांच की चूड़ियाँ पहनती हो..
तुम लाख की चूड़ियाँ पहनती हो..
तुम पीतल के कड़े पहनती हो..
तुम सोने के कंगन पहनती हो…
तुम इठलाती हो हीरे के नग लगे कंगन पहनकर
तुम
सिर्फ सुंदर ही पहनती हो ?
तुमने कभी प्रेम का ठाठ भी पहना है…
क्या तुमने कभी पहनी है मेरे नाम की चूड़ियाँ..
तुम एक सच्ची खनक से लाजबाब कर सकती को
अपनी कलाइयों में पहने कांच का कच्चा रंग
तुम्हारी एक झूठी हिचक पर बैरंग हो जाएँगी तुम्हारी चूड़ियाँ
सुनों आवाजों की धोखाधड़ी मत करना
तुमने कभी प्रेम का ठाठ भी पहना है…
क्या तुमने कभी पहनी है मेरे नाम की चूड़ियाँ..
तुम एक सच्ची खनक से लाजबाब कर सकती को
अपनी कलाइयों में पहने कांच का कच्चा रंग
तुम्हारी एक झूठी हिचक पर बैरंग हो जाएँगी तुम्हारी चूड़ियाँ
सुनों आवाजों की धोखाधड़ी मत करना
एक नाजुक भ्रम है तुम्हारी चूड़ियाँ…
इन्हे किसी की अमानत की तरह पहना करो !!
इन्हे किसी की अमानत की तरह पहना करो !!
मुझे तुमसे प्रेम है
बहुत आसान है प्रिय..
गर तुम समझना चाहती हो
मेरे सीधे-साधे सरल शब्द प्रभावशाली है..
"मुझे तुमसे प्रेम है"
मैं अपनी देह में तुम्हारा नाम
लिख-लिख कर तुम्हारी निशानदेही करता हूँ !
गर तुम समझना चाहती हो
मेरे सीधे-साधे सरल शब्द प्रभावशाली है..
"मुझे तुमसे प्रेम है"
मैं अपनी देह में तुम्हारा नाम
लिख-लिख कर तुम्हारी निशानदेही करता हूँ !
और
बहुत मुश्किल लगभग असम्भव
गर तुम समझना ही नहीं चाहती
मेरा कहा कोई भी शब्द अपने प्रेम के प्रदर्शन में
अपने समर्पण की अभ्यर्थना में निरर्थक ही रहेगा
"मुझे तुमसे प्रेम है" !!
गर तुम समझना ही नहीं चाहती
मेरा कहा कोई भी शब्द अपने प्रेम के प्रदर्शन में
अपने समर्पण की अभ्यर्थना में निरर्थक ही रहेगा
"मुझे तुमसे प्रेम है" !!
कुह
रिश्ते दुनिया की भीड़ में भी नहीं खोते
गर तुम्हे समझ आता है तो समझ लेना
अन्यथा समझ लेना हमारे बीच
कभी कोई रिश्ता था ही नहीं
गर तुम्हे समझ आता है तो समझ लेना
अन्यथा समझ लेना हमारे बीच
कभी कोई रिश्ता था ही नहीं
बहुत
आसान है प्रिय
गर तुम समझना चाहती हो
और बहुत मुश्किल लगभग असम्भव
गर तुम समझना ही नहीं चाहती
"मुझे तुमसे प्रेम है … !!
गर तुम समझना चाहती हो
और बहुत मुश्किल लगभग असम्भव
गर तुम समझना ही नहीं चाहती
"मुझे तुमसे प्रेम है … !!
दिसंबर की सर्दियों सी तुम
तुम अपनी आँखों से...
खर्च करती हो जितनी मुहब्बत,
उनसे रजाइयाँ बनाकर
मैं कई सर्दियाँ बिता सकता था !!
तुम भाप बना कर उड़ा देती हो...
अपने होंठों से जितनी गर्मियां
मैं उससे चाय पकाया करता
इस कमर तोड़ महंगाई में !
खर्च करती हो जितनी मुहब्बत,
उनसे रजाइयाँ बनाकर
मैं कई सर्दियाँ बिता सकता था !!
तुम भाप बना कर उड़ा देती हो...
अपने होंठों से जितनी गर्मियां
मैं उससे चाय पकाया करता
इस कमर तोड़ महंगाई में !
इन कंपकपाती सर्दियों में
यूँ हुस्न खर्चना ठीक नहीं
बिस्तर पर यूँ तो अलाव बहुत है
बस थोड़ी सी शक्कर और जुटा लें
यूँ हुस्न खर्चना ठीक नहीं
बिस्तर पर यूँ तो अलाव बहुत है
बस थोड़ी सी शक्कर और जुटा लें
दिसंबर
की सर्दियों सी तुम !!
अतएव तुम
अतएव मैं..
अतएव तुम,
अतएव तुम,
अतएव
लालसा..
अतएव प्रेम
अतएव प्रेम
अतएव
देह
अतएव काम
अतएव काम
अतएव
स्पर्श..
अतएव आलिंगन
अतएव आलिंगन
अतएव
हर्ष
अतएव शोक
अतएव शोक
अतएव
मोह
अतएव विरक्ति
अतएव विरक्ति
अतएव
निर्वाण
अतएव विमुक्ति
अतएव विमुक्ति
तथापि
जीवन…
दोष-पूर्ण,
दुविधा-क्रान्त मुक्ति-प्रसंग !
दोष-पूर्ण,
दुविधा-क्रान्त मुक्ति-प्रसंग !
दुःख में भी संभावनाओं से भरी तुम..…
अतएव मेरा जीवन-श्रृंगार !!!
अतएव मेरा जीवन-श्रृंगार !!!
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