प्रदीप कुमार सिंह की कविताएं


प्रदीप कुमार सिंह के पास काव्य परम्परा का ज्ञान है इसलिए वे बरते गए विषयों और कथ्य को मौजूद परिस्थितियों के मुताबिक पुनर्नवा करते हैं और यही उनका कौशल है कि सटीक व्यंजना के लिए उन्हें अति विस्तार में नहीं जाना पड़ता। वे चुने हुए शब्द और सधे वाक्य लिखते है सरल और सपाट जैसे की सामने का जीवन-सत्य का साक्षात करवा रहे हों। इसी जीवन-सत्य का सीधा प्रसारण उनकी कविता का वैशिष्ट्य है।

प्रदीप का कवि गाँव, शहर, महानगर, देश और विश्व पर हो रहे आघातों-प्रत्याघातों और कारनामों पर नज़र बनाये हुए है और उनके परिणामों को भी अत्यंत संवेदी नज़रिये से प्रस्तुत कर रहा है। युद्ध की वास्तविक परिणति, स्त्री सरीखी नदियों का दुःख, सपने देखने की मनुष्योचित प्रवृत्ति का अपराध बन जाना, बुज़ुर्गों की अर्थहीन होते जाने की विडम्बना और किसानों की आत्महत्या -यह सब मिलकर कवि को उत्तरदायी चेतना से लैस करते हैं और वह इन्हें अपनी कविता में प्रतिरोधी काव्यात्मकता से अभिव्यक्त करता है।

प्रदीप कुमार सिंह की काव्यात्मक सम्भावना सराहने योग्य है।
  • कुमार अनुपम


कुमार अनुपम की पेंटिंग : एजेज़ 
युद्ध

युद्ध से नहीं बचायी जा सकती है दुनिया
युद्ध से बचाया जा सकता है हथियार
युद्ध से बचाया जा सकता है अधर्म
युद्ध से बचाया जा सकता है अन्धापन
युद्ध से से बचाया जा सकता है असत्य
युद्ध से बचायी जा सकती है नफरत
युद्ध से बचायी जा सकती है  बर्बरता
युद्ध से बचाया जा सकता है केवल युद्ध।

          जुर्म

उसने देखा था पछिलहरा एक सपना
सपने में देखा था
हँसते हुए बच्चों को 
खिलखिलाती हुई औरतों को
गाते हुए मजदूरों को
झूमते किसानों को 
उसकी हत्या कर दी गई अलसुबह
सपने देखने के जुर्म में।

          गाँठ

सदियों से गठियायी हुई औरतें
अब खोल रही हैं 
एक-एक गांठ
खुलती हुई एक-एक गांठ के साथ
उघार हो रहे हैं सभ्य
उघड रही है सभ्यता

       वर्णमाला

परिवार की वर्णमाला में 
घर के बूढ़े 
अः
ण होते हैं 
जिनके माने कुछ नहीं होते हैं।

    भागी हुई लडकियाँ

ब्याह दी गईं लड़कियों को
भूल जाते हैं 
उनके खुद के माँ बाप भी
पर भागी हुई लडकियाँ 
याद रहती है पूरे जवार को 
व्याह  दी गयी लडकियाँ 
मर खप जाती हैं एक दिन
पर भागी हुई लडकियाँ 
जिंदा रहती हैं 
पीढ़ी दर पीढ़ी।

        बाजार

लड़की साबुन और तेल बेच रही है
लडकी टी वी और फ्रिज बेच रही है
लडकी टायर और ट्यूब बेंच रही है
लडकी नींद और सपने बेंच रही है
लडकी कॉन्डोम और वियाग्रा बेंच रही है
बाजार लड़की की मुस्कान और देह बेच रहा है
बाजार लड़की बेच रहा है ।

    दुख

नदियाँ समुद्र से मिलने नहीं
वरन दूसरी नदियों को सुनाने जाती हैं
अपना दुख 
पुरुष कहाँ सुनते हैं 
स्त्रियों के दुख

         सड़क

बहुत पहले शहर से 
काली नागिन की तरह 
एक सड़क आयी थी
हमारे गांव तक
घुस गयी थी
हमारे खेत-खलिहान  में
तभी से हमारा गाँव 
नीला पड़ गया है।

    सभ्य तरीका

हम किसी को भूखों नहीं मरने देंगे
हम उन्हें भूखों हँसायेंगे 
वो भूखा पेट पकड़कर हँसेंगे 
हम उन्हें और गुदगुदायेगें 
वो और जोर-जोर से हँसेंगे
वो हँसते हँसते मर जायेंगे 
किसी को भूखों मारना असभ्य तरीका है
हम उन्हें सभ्य तरीके से मारेंगे।

            ताकधिन 

जब खत्म हो गई 
मुट्ठी भर चाउर अउर पीसान की 
आखिरी उम्मीद भी 
मर गया वह एक दिन 
ताकधिन ताकधिन
जब न बचा सका वह 
बिस्सा भर जमीन अउर बिगहा भर जमीन 
मर गया एक दिन
बूढ़ा किसान था 
मरना था ही एक न एक दिन
मर गया एक दिन 
ताकधिन ताकधिन 
आप क्यों दुखी और परेशान हैं 
आप नारें लगायें 
जय जवान जय किसान 
रात- दिन रात-दिन 
ताकधिन ताकधिन ।
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प्रदीप कुमार सिंह 

जन्म:1 जुलाई 1982
शिक्षा: एम ए, डीफिल (हिन्दी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
संप्रति: राजकीय महाविद्यालय कप्तानगंज बस्ती में प्रवक्ता(हिन्दी)पद पर कार्यरत।
प्रकाशन : एक कविता संग्रह 'अभिधा है स्त्री' कथा प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित।परिकथा ,वाक्,संवदिया आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।
संपर्क : ग्राम +पोस्ट- कोटखास
जिला-गोण्डा (उत्तरप्रदेश)

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
इन कविताओं में इस कवि के प्रति आशाएँ संलग्न देखी जा सकती हैं।
अपर्णा मनोज ने कहा…
अनुस्वार जीवन के सख़्त चौराहे हैं
मुठभेड़ के बीच ऐसे खाली स्थान हैं वे
जो प्रस्थान और राह को हर काल में बचाये रखे हुए
एक अवधि के पके बालों का अर्थ
पूरा करते हैं
अनुभवी अनुस्वार।
हमारे अधूरे सिर पर सघन छाया जैसे।

प्रदीप जी की कविताएँ अच्छी लगीं।
Anita ने कहा…
दिल को छूती हुईं..बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करतीं कविताएँ..आभार !
केवल राम ने कहा…
एक से बढ़कर एक... गम्भीर एवं अर्थपूर्ण.....!!!
Unknown ने कहा…
अच्छी कविताएँ प्रदीप...अपने समय की खुली शिनाख्त सी हैं ये कवितायें..
प्रभात ने कहा…
अच्छा लगा प्रदीप जी की बेहतरीन एक से बढ़कर एक रचनाएँ पढ़कर! कम शब्दों में और सटीक!!
बहुत प्रभावी और दिल में उतरती हुयी रचनाएं ...
HindIndia ने कहा…
बहुत ही सटीक ....... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। Nice article ... Thanks for sharing this !! :):)

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