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कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं (कहानी)

यह  कहानी  पाखी  के ताज़ा अंक में आई है. अब यहाँ ऑनलाइन पाठकों के लिए ------------------------------------------ कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं [1] ·      कूलर में पानी ख़त्म हो गया था. गर्म हवा के साथ एक गुम्साइन सी गंध कमरे में भरती जा रही थी. मिताक्षरा ने करवट बदली और उठकर बालकनी तक जाने को हुई कि अचानक कूलर बंद कर दिया और बिस्तर पर पड़ गयी. पूरा बिस्तर जैसे पसीने से भीगा था. हर तरफ एक चिपचिप और वही गुम्साइन गंध. मन ही मन उसने सोचा “ कल रूम फ्रेशनर ले आऊंगी. ” फिर मोबाइल टटोला तो जैसे अपने आप ही से बोली “ अभी तो पाँच ही बजे हैं. ” और आँखें मींचकर सर तकिये में घुसा दिया. थोड़ी देर तक यों ही पड़े रहने पर भी जब नींद की कोई आहट सुनाई नहीं दी तो वह सपने देखने की कोशिश करने लगी. यह बहुत पुराना नुस्खा था उसका...बचपन का. समय बीता , शहर बदले , सपने भी बदल गए लेकिन यह नुस्खा नहीं बदला. कमरे को बिलकुल अँधेरा कर वह आँखें बंद कर लेती और सपने देखने लगती. सपने जो उसके सबसे क़रीब थे. वह उन सपनों में खो जाती. फिर वे धीमे धीमे धुँधले पड़ने लगते और वह नींद में डूब जाती. ये सपने नींद में कभी नहीं आते. नीं

एक भावुक सा राग-शोक - कुमार अंबुज

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उत्तराखंड मे विरोध सरकार का था। हक़ है सरकार का विरोध करने का विपक्ष को। पर मारा गया उस निरीह घोड़े को जिसे मनुष्यों ने सभ्यता के आरंभ मे ही गुलाम बनाया और उसकी सारी त्वरा उसकी चपलता उसका सौंदर्य मनुष्यों की सेवा मे लग गई। मनुष्यों की लड़ाई मे वह शहीद हुआ। मनुष्यों की ईर्ष्या मे उसे जहर दिये गए। और आज एक और बार मनुष्यों की लड़ाई मे वह घायल हुआ। उसका घायल होना जैसे हमारे समय की एक व्यंजना बन कर सामने आ गया है। वरिष्ठ कवि कुमार अंबुज ने इस घटना से व्यथित हो यह लेख सा लिखा था अपनी फेसबुक वाल पर....उनसे पूछे बिना कॉपी कर असुविधा के लिए ले लिया है...  एक भावुक सा राग-शोक 0000 वह इतना सुंदर है कि उससे केवल मोह या प्रेम हो सकता है। वह स्वप्न के, कल्पना के किसी भी अश्व से भी अधिक अश्व है। उसके बल, आयुष्य और सौंदर्य की बेहतरी के लिए कोई भी सहज कामना कर सकता है। इसकी तो रंचमात्र आशंका ही नहीं की जा सकती कि कोई उस पर प्रहार करे। उसके जीवन को हानि पहुँचा दे। उसके प्राकृतिक श्रेष्ठ अश्व होने के गौरव, उन्नत मस्तक और उसकी अतुल्य गरिमा को चोट पहुँचाने का ख्याल भी कोई कर सकता है, यह भी कल्प