मैं चाहता हूँ
मैं चाहता हूं
एक दिन आओ तुम इस तरह कि जैसे
यूं ही आ जाती है ओस की बूंद
किसी उदास पीले पत्ते पर
और थिरकती रहती है देर तक
मैं चाहता हूं
एक दिन आओ तुम
जैसे यूं ही किसी सुबह की पहली अंगड़ाइ के साथ
होठों पर आ जाता है
वर्षों पहले सुना कोई सादा सा गीत
और देर तक चिपका रहता है
पहले चुम्बन के स्वाद सा
मैं चाहता हूं
एक दिन यूं ही पुकारो तुम मेरा नाम
जैसे शब्दों से खेलते-खेलते
कोई बच्चा रच देता है पहली कविता
और फिर गुनगुनाता रहता है बेखयाली में
मैं चाहता हूं
यूं ही किसी दिन ढूंढते हुए कुछ और
तुम ढूंढ लो मेरे कोई पुराना सा ख़त
और उदास होने से पहले देर तक मुस्कराती रहो
मै चाहता हूँ
यूँ ही कभी आ बैठो तुम
उस पुराने रेस्तरां की पुरानी वाली सीट पर
और सिर्फ एक काफी मंगाकर
दोनों हाथों से पियो बारी बारी
मैं चाहता हूँ
इस तेजी से भागती समय की गाड़ी के लिए
कुछ मासूम से कस्बाई स्टेशन
एक दिन आओ तुम इस तरह कि जैसे
यूं ही आ जाती है ओस की बूंद
किसी उदास पीले पत्ते पर
और थिरकती रहती है देर तक
मैं चाहता हूं
एक दिन आओ तुम
जैसे यूं ही किसी सुबह की पहली अंगड़ाइ के साथ
होठों पर आ जाता है
वर्षों पहले सुना कोई सादा सा गीत
और देर तक चिपका रहता है
पहले चुम्बन के स्वाद सा
मैं चाहता हूं
एक दिन यूं ही पुकारो तुम मेरा नाम
जैसे शब्दों से खेलते-खेलते
कोई बच्चा रच देता है पहली कविता
और फिर गुनगुनाता रहता है बेखयाली में
मैं चाहता हूं
यूं ही किसी दिन ढूंढते हुए कुछ और
तुम ढूंढ लो मेरे कोई पुराना सा ख़त
और उदास होने से पहले देर तक मुस्कराती रहो
मै चाहता हूँ
यूँ ही कभी आ बैठो तुम
उस पुराने रेस्तरां की पुरानी वाली सीट पर
और सिर्फ एक काफी मंगाकर
दोनों हाथों से पियो बारी बारी
मैं चाहता हूँ
इस तेजी से भागती समय की गाड़ी के लिए
कुछ मासूम से कस्बाई स्टेशन
टिप्पणियाँ
yogesh swapn
badhiya likha hai
एक दिन आओ तुम इस तरह कि जैसे
यूं ही आ जाती है ओस की बूंद
किसी उदास पीले पत्ते पर
और थिरकती रहती है देर तक
बहुत भावभरी अभिव्यक्ति।
असीम नाथ त्रिपाठी
जैसे शब्दों से खेलते-खेलते
कोई बच्चा रच देता है पहली कविता
'दिल को भा गयी ये पंक्तियाँ वाह "
regards
pad kar maza aa gaya .
badhai ..
vijay
Please visit my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/ for some new poems .
aapki chah ka har rup aakarshit karta hai.......badhaai ho
मैने बहुत कम प्रेम कविताये लिखी हैं ,यह उन्मे से एक है…साक्षात्कार मे आयी थी। आप सबने पसन्द की तो विश्वास बढा।
kya badhiya kavita hai.padhkar maza aa gaya.
kya prem kavita hai, main chahata hoon aur bhi prem kavitayen apako likhani chahiye.
varshon pahale suna koi sada geet. bilakul usi ki tarah ka jise ham yaad kar rahe hain. bilakul sade wala visheshan bahut prabhavi hai.
sadagi hi hame apani aur khinchati hai jaise is kavita ki sadagi.phir usapar bhi kya yaad kiya hai apane ki pahale chumban ka swad.
bhai pahale chumban ka swad aaj bhi hame bhitar tak lahuluhan kar deta hai. aur us lahu ka lal rang hame jivan me ek sachchi rah dikhata chalata hai.
bahut badhai mere bhai.
aur likho...........likhate raho...
धन्यवाद यार मै तुम्हारी टिप्पणी का इन्तज़ार कर रहा था…डर भी रहा था। पर तुमने तो ना केवल हिम्मत बढा दी बल्कि वो दिन याद दिला दिये जब हम गले तक प्यार मे डूबे थे।
प्रस्तुत कविता में इन्द्रिय-बोध इतना प्रखर, और भाषिक संरचना इतनी सरल-तरल बन पडे हैं कि वे कविता की अंतर्वस्तु को पाठक के अंतस में गहरे धँसाकर कविता को न सिर्फ़ संप्रेषणीय बनाने में सक्षम है,अपितु प्रेम के भाव-जगत की सृष्टि में काफी हद तक सफल भी हुआ है।- सुशील कुमार,दुमका(झारखंड) से।
जैसे शब्दों से खेलते-खेलते
कोई बच्चा रच देता है पहली कविता
और फिर गुनगुनाता रहता है बेखयाली में
मैं चाहता हूं
dil ko chu gayin panktiyan aapki. Aabhar aur Swagat.
ऐसी कविता पढ़ने को अक्सर आयेंगे भागकर आपके ब्लॉग पर ...
एक दिन आओ तुम इस तरह कि जैसे
यूं ही आ जाती है ओस की बूंद
किसी उदास पीले पत्ते पर
और थिरकती रहती है देर तक