एक जनगीत
(इप्टा के एक कार्यक्रम मे जब हमने गीतो के पुराने हो जाने की शिकायत की तो उत्तर मिला कि नये गीत लिखे कहाँ जा रहे हैं । हमने इसे चुनौती की तरह लिया और नये गीत लिखने का वादा किया। जो लिखा अब आपके भी सामने है …और यह कापी लेफ़्ट है जो चाहे उपयोग करे। सूचना देंगे तो उत्साह बढेगा। धुन बना देंगे तो हम भी गा सकेगें )
दुनिया बदली सत्ता बदली
बदले गांव जवार
पर गरीब का हाल न बदला
आई गई सरकार
तो भैया
सोचो फिर एक बार
मिटेगा कैसे अत्याचार
कैसी तरक्की किसकी तरक्की
कौन हुआ खुशहाल
सौ में चालीस अब भी भूखे
और साठ बेकार
फैक्ट्रियो में ताले लग गये
देते जान किसान
कारों के पेट्रोल की खातिर
खाली हो गई थाल
तो भैया
सोचो फिर एक बार
रहेगा कब तक ऐसा हाल
मिटेगा कैसे अत्याचार
टीवी सस्ती सस्ता फ़्रिज है
सस्ती हो गई कार
रंग बिरंगे सामानों से
अटा पड़ा बाजार
फिर रोटी क्यूं मंहगी इतनी
फिर क्यूं मंहगी दाल
उनकी किस्मत में एसी है
अपना हाल बेहाल
तो भैया
सोचो फिर एक बार
चलेगा कब तक ये व्यापार
मिटेगा कैसे अत्याचार
लाखों के पैकेज के पीछे
जीवन बना मशीन
रूपये पैसे की दरिया में
डूबे ख्वाब हसीन
जिसको देखो भाग रहा है
सिर पर रखे पांव
चेहरे पर तो मुस्काने हैं
दिल में गहरे घाव
तो भैया
सोचो फिर एक बार
भरेगा कैसे दिल का घाव
मिटेगा कैसे अत्याचार
धर्म जाति की गहरी खाई
गहराती ही जाये
बिजली पानी छीन के हमसे
रामसेतु बनवायें
जनता की इन सरकारों से
अब तो राम बचाये
क्यूं ना इनकी कब्र खोदकर
अपना राज बनायें
तो भैया
सोचो फिर एक बार
बनेगा कैसे अपना राज
मिटेगा कैसे अत्याचार
टिप्पणियाँ
गहराती ही जाये
बिजली पानी छीन के हमसे
रामसेतु बनवायें
जनता की इन सरकारों से
अब तो राम बचाये
क्यूं ना इनकी कब्र खोदकर
अपना राज बनायें
बढ़िया है अशोक भाई बढ़िया है ............|
इन्तेजार है कि वो कब्र कब खुदेगी और कब हमारा राज होगा |
गहराती ही जाये
बिजली पानी छीन के हमसे
रामसेतु बनवायें
जनता की इन सरकारों से
अब तो राम बचाये
क्यूं ना इनकी कब्र खोदकर
अपना राज बनायें
बढ़िया है अशोक भाई बढ़िया है ............|
इन्तेजार है कि वो कब्र कब खुदेगी और कब हमारा राज होगा |
kavita vakai jordar hai
aise hi likhte rahiye
smriti shukla
bahut behatar rachna .. aapko badhai ho ..
padhkar man kahi kis gaon me chala gaya ..
kisi chauraahe par thahar gaya..
wah ji wah
vijay kumar satpati(mail par praapt)
अपना राज बनायें......
आज के हालातों का सटीक चित्रण..
सिर पर रखे पांव
चेहरे पर तो मुस्काने हैं
दिल में गहरे घाव
Bahut hi sundar Jangeet.
bahut achchha likha hai.
कौन हुआ खुशहाल
सौ में चालीस अब भी भूखे
और साठ बेकार
फैक्ट्रियो में ताले लग गये
देते जान किसान
कारों के पेट्रोल की खातिर
खाली हो गई थाल
tarj to ban gyi hai per usee behtar aapke shabd hain.
सस्ती हो गई कार
रंग बिरंगे सामानों से
अटा पड़ा बाजार
फिर रोटी क्यूं मंहगी इतनी
फिर क्यूं मंहगी दाल
उनकी किस्मत में एसी है
अपना हाल बेहाल
यही हालात हैं
एक साथ, इतने थोड़े शब्दों में
सहजता और सरलता से भीगे
दस्तक देते हुए
अंतरात्मा को
कुछ बदलने को..
kash ye atyachar mi jaye aur apne bachpan ki duniya jahaa sb saman ho lout aaye
Fazal ali