आजकल
आजकल
कहाँ कर पाता हूँ
कुछ भी ठीक से
जुलूस में होता हूँ
तो किसी पुराने दोस्त सी
पीठ पर धौल जमा
निकल जाती है कविता
कविता लिखते समय
किसी झगडालू पडोसी सी
चीखती हैं
अख़बार की कतरने
डूबता हूँ अख़बार में
तो किसी मुंहलगी बहन सी
छेडने लगती है कहानी
कहानियों के बीच से
अपना ही कोई पात्र
खींच ले जाता जुलूस में
आजकल
कहाँ कर पाता हूँ
कुछ भी ठीक से…
कहाँ कर पाता हूँ
कुछ भी ठीक से
जुलूस में होता हूँ
तो किसी पुराने दोस्त सी
पीठ पर धौल जमा
निकल जाती है कविता
कविता लिखते समय
किसी झगडालू पडोसी सी
चीखती हैं
अख़बार की कतरने
डूबता हूँ अख़बार में
तो किसी मुंहलगी बहन सी
छेडने लगती है कहानी
कहानियों के बीच से
अपना ही कोई पात्र
खींच ले जाता जुलूस में
आजकल
कहाँ कर पाता हूँ
कुछ भी ठीक से…
टिप्पणियाँ
यह लत का प्रकोप है
जो नेट की जल रही ज्योत है
यह सब ठीक से न सही
पर बाकी सब तो ठीक है
टिप्पणियां मिल रही हैं बदस्तूर
पसंद क्लिका दी है हजूर
इतना तो हो रहा है ठीक से
waah aapne to saari vidhao ka istemaal kar diya hai ji , aur kya behtar kiya hai ji ..
dil se badhai ho
vijay kumar sapatti
टिप्पणी ले लिये धन्यवाद।
लेकिन रचना का उद्देश्य सिर्फ़ टिप्पणी या चर्चा बटोरना तो नहीं हो सकता ना भाई!
कुमार मुकुल
Bahot achhi lagi aapki rachna..
आजकल
कहाँ कर पाता हूँ
कुछ भी ठीक से
तो किसी मुंहलगी बहन सी
छेडने लगती है कहानी
कहानियों के बीच से
अपना ही कोई पात्र
खींच ले जाता जुलूस में
आजकल
कहाँ कर पाता हूँ
कुछ भी ठीक से…''
यही वे पंक्तियां हैं जो रचना के भाषिक-पाठ को जीवन और समाज के वृहत्तर यथार्थ से जोड़ती हैं और जो यह संकेत भी देती हैं कि कविता सिर्फ़ शब्दों का प्रचलित कौतुक और बाज़ीगरी ही नहीं है. धूमिल के शब्दों में :यह आदमी के जीवन की पूरी खुराक़ मांगती है.
मई दिवस के आयोजन की रिपोर्ट भी मिली थी.
धन्यवाद !
kya khoob likha hai . hum sab bus aise hi hote jaa rahe hai ... machini maanav bane hue hai .. aapne man ke bheetari dwandh ko acche se darshaya hai
meri badhai sweekar karen..
vijay
"
सम्कालीन कविता के शिल्प में बहुत अच्छी पंक्तियँ हैं भाई
मैने बहुत पहले अपनी एक कविता मे ऐसा ही बिम्ब लिया था"गरम तवे पर छन्न सी बून्द सी उड जाती है कविता" ऐसा ही कुछ... बधाई.भैया पत्रिकाओं में भी कविता भेजो.अभी नेट के कवि ऐसे ही समझे जाते हैं
शरद कोकास
ek nivedan
aaj ke yuwa ki dagmgati soch pr ager kuch likhe to plz send me
fazalsathiya@gmail.com
एकदम अनूठी कविता, सर।
सही मायने में तारीफ़ भी नहीं कर पा रहा मैं तो।
आपकी रचनाओं को देर से जाना...शुक्र है जान गया..
तो किसी पुराने दोस्त सी
पीठ पर धौल जमा
निकल जाती है कविता
chhoti si kavita hai par prabhavi.
bahut gahare yatharth bodh ke sath in panktiyon me manaviy rishton se khatm hoti sanvedansheelata ko ek roopak ke roop me umda pakada hai.ab dekho pahala hissa aur antim hissa to kavita ka prarambh aur ant ke liye hai lekin kavita ki taqat ko dekho. jis hisse ko maine upar code kiya hai usase yah hissa kaishe dvndv paida karata hai aur kavita ko vyapak aur mahatvpurn banata hai.
कहानियों के बीच से
अपना ही कोई पात्र
खींच ले जाता जुलूस में
ab ham dekhen ki kavita ki taqat kaise badhati hai.
uday prkashji ne mahatvpurn tippani ki hai.
ashok bhai bahut bahut badhai.