तुम्हे प्रेम करते हुए अहर्निश
तुम्हें प्रेम करते हुए अहर्निश
गुज़र जाना चाहता हूं
सारे देश- देशान्तरों से
पार कर लेना चाहता हूं
नदियां, पहाड़ और महासागर सभी
जान लेना चाहता हूं
शब्दों के सारे आयाम
ध्वनियों की सारी आवृतियां
दृश्य के सारे चमत्कार
अदृश्य के सारे रहस्य.
तुम्हे प्रेम करते हुए अहर्निश
इस तरह चाहता हूं तुम्हारा साथ
जैसे वीणा के साथ उंगलियां प्रवीण
जैसे शब्द के साथ संदर्भ
जैसे गीत के साथ स्वर
जैसे रूदन के साथ अश्रु
जैसे गहन अंधकार के साथ उम्मीद
और जैसे हर हार के साथ मज़बूत होती ज़िद
बस महसूसते हुए तुम्हारा साथ
साझा करता तुम्हारी आंखों से स्वप्न
पैरो से मिलाता पदचाप
और साथ साथ गाता हुआ मुक्तिगान
तोड़ देना चाहता हूं सारे बन्ध
तुम्हे प्रेम करते हुए अहर्निश
ख़ुद से शुरू करना चाहता हूं
संघर्षों का सिलसिला
और जीत लेना चाहता हूं
ख़ुद को तुम्हारे लिये।
टिप्पणियाँ
jab se aapka mail aaya , tab se hi padh raha hoon .... bhai ,aaj aapke kalam ko salaam , aapki us soch ko salaam , jisne ye bhaav bahari kavita ka srujan kiya .... waah waah kah kar is kavita ko choti nahi karunga ... ye kavita saare hi tareefo se upar hai ....
abhaar
vijay
संघर्षों का सिलसिला
और जीत लेना चाहता हूं
ख़ुद को तुम्हारे लिये....
बहुत सुन्दर गीत ...
तुम्हे प्रेम करते हुए अहर्निश
ख़ुद से शुरू करना चाहता हूं
संघर्षों का सिलसिला
और जीत लेना चाहता हूं
ख़ुद को तुम्हारे लिये।
ये पंक्तियाँ बार बार खींच कर लायेंगी यहाँ
जैसे वीणा के साथ उंगलियां प्रवीण
जैसे शब्द के साथ संदर्भ
जैसे गीत के साथ स्वर
जैसे रूदन के साथ अश्रु
जैसे गहन अंधकार के साथ उम्मीद
और जैसे हर हार के साथ मज़बूत होती ज़िद
दिन भर गुनने के लिए दे दिया... शुक्रिया.
:)
ख़ुद को तुम्हारे लिये।
sirf prem karnewala hi likh sata hai yah panktiyan.
और साथ साथ गाता हुआ मुक्तिगान
तोड़ देना चाहता हूं सारे बन्ध....
तुम्हे प्रेम करते हुए...
अहर्निश....
जीत लेना चाहता हूं
ख़ुद को तुम्हारे लिये।
सीप में मोती कि तरह!!!
हाँ बाद में उच्चारित किया जा सकता है इसे आँखे बन्दकर...सोचते, महसूसते हुए बहुत कुछ !
आभार ।
ख़ुद को तुम्हारे लिये।
बस प्रेम से यही शक्ति मिलनी चाहिए...बहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के..
is title mein hi bahut kuch aa gaya aur kavita to jaise bahut kuch sochne ko majboor karti hai..........mehsoosne ko majboor karti hai........kin shabdon mein tarif karoon...........sare to aayam mohabbat ke sama gaye hain chand lafzon mein hi............lajawaab prastuti.
Shandar maja aa gaya
संघर्षों का सिलसिला
और जीत लेना चाहता हूं
ख़ुद को तुम्हारे लिये।!!!
बहुत ही सशक्त प्रेमगीत !
अद्भुत और सम्मोहक
कविता ने दिल छू लिया बधाई !
ख़ुद को तुम्हारे लिये ..
खुद को जीतने के संघर्ष में सहज जुट जाना ... किसी दूसरे को प्राप्त करने के लिए ... प्रेम की पराकाष्ठा है ..
ख़ुद से शुरू करना चाहता हूं
संघर्षों का सिलसिला
और जीत लेना चाहता हूं
ख़ुद को तुम्हारे लिये।
सचमुच दृढ़ निश्चयी कविता है।
आपकी कविता मन मस्तिस्क पर गहरे तक असर डालने वाली है.....
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'पाखी की दुनिया' में इस बार "मम्मी-पापा की लाडली"
पूरी रीति-नीति
बिना अनीति के
सब कुछ जीती।