बोलेरो क्लास - असहज वक्त की जीवंत कहानियाँ
इस बार से हम समीक्षा का एक नया कालम शुरू कर रहे हैं. कोशिश होगी कि एक सोमवार को असुविधा पर कविताएँ हों तो दूसरे पर समीक्षा, यानि अब योजना इसे कविता और समीक्षा के ब्लॉग में बदलने की है. तो आप मित्रों से गुजारिश भी कि अगर आप किसी किताब की समीक्षा कर रहे हों तो उसे हमें उपलब्ध कराइए, किसी ने आपकी किताब की समीक्षा की हो तो भी बेहिचक भेजिए. प्रिंट और ब्लॉग को मैंने हमेशा दो अलग माध्यम माना है तो प्रकाशित/अप्रकाशित पर बहुत जोर कभी नहीं रहा. मेरी कोशिश किसी शुचिता या विशिष्टता को बनाए रखने या स्थापित करने की जगह एक नए पाठक वर्ग को हिन्दी की नई-पुरानी ज़रूरी किताबों से परिचित कराने की है. इस क्रम में महत्वपूर्ण रचनाकारों के कृतित्व पर आलोचनात्मक आलेखों का भी स्वागत है. इस कड़ी में सबसे पहले जाने-माने युवा कथाकार प्रभात रंजन के प्रतिलिपि बुक्स से प्रकाशित कहानी संकलन की संज्ञा उपाध्याय द्वारा की गयी समीक्षा. अब यह किताब आप प्रतिलिपि बुक्स की विशेष योजना के तहत उनसे सीधे मंगा कर पचास प्रतिशत की छूट प्राप्त सकते हैं. यह समीक्षा कथन में प्रकाशित हुई थी और अब उनकी स्वीकृति से यहाँ भी
प्रभात रंजन |
उनका पहला कहानी संग्रह ‘जानकी पुल’ बहुत चर्चित रहा। पिछले दिनों उनका दूसरा कहानी संग्रह ‘बोलेरो क्लास’ प्रकाशित हुआ है, जिसमें उनकी आठ कहानियाँ संकलित हैं। इन कहानियों में से दो कहानियाँµ‘ब्रेकिंग न्यूज उर्फ इंदल सत्याग्रही का आत्मदाह’ और ‘दूसरा जीवन’ पाठक ‘कथन’ में पढ़ चुके हैं।
प्रभात रंजन अपनी कहानियों में बदले हुए समय को एक महत्त्वपूर्ण परिघटना के रूप में रेखांकित करते हैंµ‘‘पैसे का युग है। जिसके पास जितना पैसा है उसी की ठाठ है। कोई नहीं पूछता पैसा कहाँ से आ रहा है।’’ समय में आये परिवर्तन की ओर संकेत करने वाले इस तरह के वाक्य प्रत्येक कहानी में मौजूद हैं। कहानीकार के अनुसार यह परिवर्तन नकारात्मक है और अनैतिकता पर आधारित व्यवस्था के प्रसार की ओर संकेत करता है। इस अनैतिकता में जनता के बजाय कारपोरेट मालिकों के हित में नीतियाँ बनाने और लागू करने वाली जनतांत्रिक सरकारें (‘फाव की जमीन’, ‘ब्रेकिंग न्यूज’); दूसरों के रचनात्मक श्रम को निहायत बेशर्मी से चुरा लेने वाले निजी चैनल (‘इंटरनेट, सोनाली और सुबिमल मास्टर की कहानी’); गाँव के सीधे-सादे वैद द्वारा स्वयं सँजोये गये ज्ञान का चोरी-छिपे बहुराष्ट्रीय कंपनियों से सौदा कर डालने वाले और भेद खुलने पर उसकी हत्या कर देने वाले तस्कर (‘अथ कथा ढेलमरवा गोसाईं’); अपराध और आतंक के बल पर राजनीति में घुसकर अपने स्वार्थ के लिए जोड़-तोड़ करने वाले नेता (‘ब्रेकिंग न्यूज’, ‘बोलेरो क्लास’) और अपने चैनल की कमाई बढ़ाने के लिए एक व्यक्ति को जिंदा जला डालने वाले पत्रकार (‘ब्रेकिंग न्यूज’) आदि सब शामिल हैं।
इस माहौल में पिछड़ जाने वाले, मारे जाने वाले, हताशा में डूब जाने वाले, सजा पाने वाले, पागल या अपराधी करार दिये जाने वाले साधारण लोग अकेले छूट रहे हैं। लेकिन प्रभात रंजन की कहानियों के ये साधारण लोग निपट सरल और भोले लोग नहीं हैं। समय के बदलाव का प्रभाव इन पर भी हुआ है। तुरंत प्रसिद्धि, धन, पद या सत्ता पाने की महत्त्वाकांक्षा इनमें भी पैदा हुई है।
यथार्थ की यह संश्लिष्टता प्रभात रंजन की कहानियों में व्यक्त होती है। इसके लिए वे एक खास तरीका अपनाते हैं। कहानी में प्रस्तुत घटना के विविध पक्षों को उभारने के लिए वे उसके विषय में स्थानीय परिवेश में फैली विभिन्न कहानियों से एक वातावरण निर्मित करते हैं। ‘इंटरनेट, सोनाली और सुबिमल मास्टर की कहानी’, ‘फाव की जमीन’, ‘अथ कथा ढेलमरवा गोसाईं’, और ‘ब्रेकिंग न्यूज उर्फ इंदर सत्याग्रही का आत्मदाह’ कहानियों में कहानी के केंद्रीय कथ्य से जुडे़ विभिन्न दृष्टिकोण उभारने के लिए उन्होंने इस तरीके का इस्तेमाल किया है।
संज्ञा उपाध्याय |
‘अथ कथा ढेलमरवा गोसाईं’ कहानी भारतीय समाज में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तनों को बहुआयामिता के साथ सामने लाती है। नेपाल की सीमा पर बसे छोटे-से अनजान गाँव जितवारपुर तक भी परिवर्तन की बयार पहुँची है। बड़े जमींदारों के किस्से ही अब शेष रह गये हैं। वे अपने पढ़-लिखकर दिल्ली-बंगलौर जा बसे बच्चों के साथ रहने चले गये हैं। उधर तथाकथित निचली कही जाने वाली जातियों का सामाजिक और आर्थिक स्तर बढ़ा है। जमींदार लक्ष्मेश्वर सिंह हरिजन रामचरणदास उर्फ बंडा भगत को अपने बराबर कुर्सी पर बैठने के लिए कहने लगे हैं। लेकिन यह दृष्टिकोण में सामाजिक समानता का भाव आ जाने वाला बदलाव नहीं, बल्कि स्वार्थ आधारित बदलाव है। कम पढ़े-लिखे बेरोजगार बेटे को किसी काम से लगा देने का स्वार्थ। बंडा भगत अब डी.एम. का खास अर्दली है, इसलिए लक्ष्मेश्वर सिंह उसके आगे गिड़गिड़ा भी सकते हैं। वह उनके बेटे साजन को सरकारी बैंक से रोजगार के लिए लोन दिला सकता है। लोन से ली गयी साजन की गाड़ियाँ दौड़ने लगती हैं। रात में सीमा पार तस्करी के लिए।
किसी भी तरीके से जल्द से जल्दी धनी बनने की पूँजी की अनैतिक व्यवस्था कैसे मनुष्य गढ़ रही है, साजन इसका उदाहरण है। उसके लिए अनीति, अनाचार, अपराध ही व्यक्तिगत विकास का एकमात्र रास्ता हैं। स्थानीय स्तर पर काम कर रहे तस्कर सिंडिकेट से तो उसका संबंध है ही, अब उसका गठबंधन उस बहुराष्ट्रीय कंपनी से भी है, जिसे वह आयुर्वेद संबंधी स्थानीय ज्ञान चोरी-छिपे बेच रहा है।
यहाँ कहानीकार की सूक्ष्म दृष्टि इस नये परिवर्तन को उद्घाटित करती है कि भूमंडलीय स्तर पर हो रहे अनैतिक कार्य- व्यापार की जड़ें किस तरह दूरदराज के ग्रामीण अंचलों में धँस रही हैं। साजन का शातिरपन तब और भी उभरकर आता है, जब बंडा भगत की हत्या करके वह स्थानीय लोगों की पुरानी स्मृति में कैद ढेलमरवा गोसाईं की कथा को जीवित कर बंडा भगत को ही ढेलमरवा गोसाईं सिद्ध कर देता है। निहित स्वार्थों के लिए किये गये अनाचार को छिपाने या वैध ठहराने के लिए किस तरह साधारण जनता के जातीय तथा धार्मिक विश्वासों को नयी रंगत दी जाती है, वैश्विक स्तर पर भी इसके उदाहरण लंबे अरसे से दिखायी दे रहे हैं।
इन कहानियों में परिस्थितियों से जूझने वाले सभी केंद्रीय चरित्र एकाकी हैं। उनके आसपास के अधिकतर लोग उनका उपहास करने वाले, उन्हें न समझने वाले, उनके विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले, उनका इस्तेमाल करने वाले, उनसे लाभ उठाने वाले या उन्हें धोखा देने वाले हैं। यह एकाकीपन मनुष्य को नितांत आत्मकेंद्रित बना देने वाले वर्तमान दौर की ओर संकेत करता है।
एक कथा की कई-कई अंतकर्थाएँ सुनाते हुए प्रभात रंजन प्रत्येक प्रसंग को पटकथा लेखक की-सी कुशलता के साथ बारीक से बारीक डीटेल से भर देते हैं। उनके यहाँ छोटे-से छोटे चरित्र का बाकायदा एक नाम है और एक पहचान है। हर गली, गाँव, मुहल्ले, कस्बे, शहर का नाम है और पहचान है। मानो वे एक पत्रकार की भाँति सारे तथ्य इकट्ठे करते हैं और एक कहानीकार की तरह प्रस्तुत कर देते हैं।
इन कहानियों को कहने की शैली किस्सागोई की है। लेकिन कहीं-कहीं किस्से में से किस्सा निकालने के चलते भटकाव आ जाता है और कहानी बेवजह जटिल बन जाती है। संग्रह की पहली ही कहानी ‘इंटरनेट, सोनाली और सुबिमल मास्टर की कहानी’ इसका उदाहरण है। पर लेखक के ही शब्दों में ‘‘वक्त ही ऐसा आन पड़ा है कि कुछ भी सरल सहज नहीं रह गया है।’’ ऐसे जटिल और असहज वक्त का ही जीवंत दस्तावेजीकरण ये कहानियाँ करती हैं।
संकलन - बोलेरो क्लास (कहानी संग्रह): प्रभात रंजन; प्रकाशक: प्रतिलिपि बुक्स, 182, जगराज मार्ग, बापू नगर, जयपुर-302015; पृष्ठ 128; मूल्य: 150 रुपये। ( 50% छूट पर यहाँ से प्राप्त करें )
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