ये पब्लिक है, सब जानती है!
युवा कवि अमित श्रीवास्तव अपनी धारदार राजनीतिक कविताओं के लिए जाने जाते हैं. उन्हें आप असुविधा पर पहले भी पढ़ चुके हैं. इस पार पढ़िए उनका राजनीतिक व्यंग्य...उतना ही तीखा...उतना ही धारदार एंट्री पोल "बताया उन्हें कि एक ऐसी पार्टी आने वाली है जो कहती है कि भ्रस्टाचार मिटाएगी, काला धन हटाएगी ऐसे हो सकता है गरीबी भी भगा दे| `वो तो ठीक’ बाई बोली `पर क्या हमारा कारड बनवाएगी... बताओ भला... ये जो कटिया फांस रक्खी है पोल से उसे तो नहीं हटाएगी...कल्लन लड़ेगा इलिक्शन...हमारी बिरादरी का भी है...वो बनवाएगा कारड कहता है...वही पाएगा हमारा वोट...हमारे को क्या कि वो तल्लैया के उस पार जंगल को...कच्ची खेंचता है...|’" अजीब घालमेल है| बाई द पीपुल, फॉर द पीपुल, ऑफ द पीपुल वाली सरकार के साथ तटस्थ ब्यूरोक्रेसी| तटस्थता कैसे उचाटता में बदलती है, उसपर फिर कभी| अभी तो उस जनता के बारे में जिससे, जिसकी और जिसके लिए ये सरकार है| एक महाशय( ये महा `शय’ हैं या लघु ये तो आने वाला चुनाव साबित करेगा लेकिन तब तक...) जो जन सरोकारों से लबरेज, जन आन्दोलनों में लिप्त थे अब अचानक जिससे,