मौसम निरंकुश तानाशाह है हमारे लिए - रुपाली सिन्हा
जाड़े का मौसम हमारे वांग्मय में सुखमय मौसम की तरह आता है. जीवेत शरदः शतम्! सुविधासंपन्न लोगों के लिए आनंद का अवसर. उत्तर प्रदेश के सचिव कहते हैं कि 'ठण्ड से कोई नहीं मरता'. सच भी है कि जिन्हें सरकारें मनुष्य मानती हैं वह वर्ग ठण्ड से मर ही नहीं सकता. मरते वे हैं जिन्हें वह मनुष्य मानती ही नहीं. जिन्हें बोझ समझा जाता है. जो अवांछित हैं. आख़िर देश भर से विस्थापित हो महानगरों में दो रोटी कमाने आये लोग हों या मुजफ्फरपुर के राहत शिविरों में रह रहे लोग, इन्हें जनता की परिभाषा में कब शामिल करती हैं सरकारें. फिर उनके मरने की फ़िक्र भी क्यों हो किसी को? लेकिन कवि की फ़िक्र की परिधि सरकारों की परिधियों सी तो नहीं हो सकती... रुपाली सिन्हा की यह कविता उन परिधियों का विस्तार करती है. उस दुनिया को देखने और उसका किस्सा कहने की कोशिश जो हर मुख्यधारा से विस्थापित है. और यह कहते हुए पाश से बेहतर कौन सा कन्धा हो सकता था सिर टिकाने को? मुजफ्फरपुर के राहत शिविर से दक्कन हेराल्ड में छपा एक फोटो मौसम की मार ----------------------- पाश! मौसम की मार सबसे खतरनाक होती है