रजनीश साहिल की ताज़ा कविताएँ
पेशे से पत्रकार और फितरत से कलाकार रजनीश भाई ने ये कविताएँ पढने के लिए भेजी थीं. हमारे अनुरोध को मानते हुए उन्होंने इन्हें असुविधा पर लगाने की अनुमति दी. इन्हें पढ़ते हुए आप एक तरफ इन बदले और मुश्किल हालात में एक युवा एक्टिविस्ट की तड़प से रु ब रु होंगे तो दूसरी तरफ कैरियरिस्ट वरिष्ठों की अवसरवादिता से भी...स्वागत रजनीश का असुविधा पर. सोशल मीडिया : अहा-अहो! बड़े पत्रकार ने कुछ लिखा अहा-अहा! अहो-अहो! बड़े संपादक ने कुछ लिखा अहा-अहा! अहो-अहो! नामी-पुरस्कृत कवि-लेखक ने कुछ लिखा अहा-अहा! अहो-अहो! बड़े विचारक ने कुछ लिखा अहा-अहा! अहो-अहो! बड़े अभिनेता ने कुछ लिखा अहा-अहा! अहो-अहो! बड़े-बड़े ने कुछ लिखा अहा-अहा! अहो-अहो! हे श्रेष्ठिजन! आप गरियाते हैं इसे-उसे नाहक ही कोसते हैं लल्लो-चप्पो को नाहक ही बताते हैं स्तुतियों को दोयम दर्जे का नाहक ही बने फिरते हैं तनी रीढ़ वाले नाहक ही बैठे हैं भ्रम पाले स्वतंत्र समझ का नाहक ही ढोते हैं मस्तिष्क का बोझा नाहक ही वे लिखते हैं ‘गू’ दीवारें लीप देते हैं करते हुए आप अहा-अहा! अहो-अहो! -- अपदस्थ कि