कूपन में स्मृति

 की पेंटिंग यहाँ से साभार 

·         अशोक कुमार पाण्डेय

अजीब सी किताब थी वह । 2030 में छपी थी । पूरे सौ साल पुरानी! शीर्षक ही समझ से बाहर था स्मृति और प्रेम। उसके नीचे लिखा था- रचना। यह शायद लिखने वाले का नाम होगा। माँ ने बताया था कि पहले लोगों के ऐसे ही नाम होते थे। नानी ने उनका भी कुछ नाम रखा था। फिर नामों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और कोड्स अलाट कर दिये गए। उसका कोड था – सी ए जी एल 1090। लेकिन स्मृति और प्रेम!  शीर्षक ही न समझ आये तो कोई आगे पढ़े कैसे। उल्टा पलटा तो आधी पूरी लाइने और अजीब अजीब से शब्द जिन्हें कभी डिक्शनरी में भी नहीं देखा था। पंद्रह दिन से पहले मास्टर रोबो से मुलाक़ात असंभव थी। कई लोगों से पूछना चाहा लेकिन जानता था कि उसे न तो इसकी अनुमति थी न ही कोई इस पर ध्यान देने वाला था।

वह थोड़ी देर और सोना चाहता था लेकिन 7 घंटे का उसका कोटा पूरा हो चुका था और टीवी उद्घोषिका लगातार उसे उठने का निर्देश दे रही थी। अंततः उठा और कॉफ़ी मशीन के सामने जाकर कार्ड स्वाइप किया फिर ऑनलाइन ब्रेकफास्ट साईट पर जाकर बैलेंस चेक किया और दो अंडे और टोस्ट ऑर्डर कर दिया। मन तो पराठे खाने का था लेकिन इस महीने में वह दो बार पराठे खा चुका था और अगर अब ऑर्डर किया तो आख़िरी कुछ दिन बिना ब्रेकफास्ट के काम चलाना पड़ सकता था। नाश्ता आने से पहले नित्यक्रिया निपटा लेनी थी तो जम्हाई लेते हुए वाशरूम में गया और डेली कोटे की एक बाल्टी पानी निकाल कर जैसे तैसे तैयार हुआ। लौटा तो ब्रेकफ़ास्ट लाने वाला लड़का दरवाज़े पर था। किसी तरह गटका अंडा ब्रेड और गले में आई कार्ड लटकाए बस स्टॉप पर पहुँच गया। वही रोज़ की आठ बजे की बस। कार्ड दिखाने से दरवाज़ा खुल जाता और सीट पर बैठते ही सीट बेल्ट कस जाती। सामने स्क्रीन पर ईस्टर्न वर्ल्ड कॉर्पोरेशन की न्यूज़ रील चल रही थी।

पिछले 32 सालों से यह रील वह रोज़ देखता आ रहा था। पहले स्कूल और कॉलेज की बस मे फिर ऑफिस की बस में। शुरुआती पंद्रह मिनट बिलकुल नहीं बदले थे, उसके बाद हर साल नई सूचनाएँ आती जाती थीं। उन दिनों का कुछ ख़ास नहीं याद उसे। याद रखना कभी याद ही नहीं रहा और याद करने जैसा कुछ था भी नहीं। जैसा सबका जीवन वैसा ही उसका भी। चार साल की उम्र मे स्कूल गया होगा फिर आय क्यू टेस्ट के हिसाब से क्लास और विषय दिये गए होंगे। फिर हर साल प्रमोशंस कॉलेज के लिए फिर वही प्रक्रिया और फिर उसी प्रक्रिया से वर्क तथा कूपन अलाटमेंट कर दिये गए होंगे। पार्टनर ऑप्शन में उसने परमानेंट दिया था लेकिन बताया गया कि उसकी एलीजीबिलिटी परमानेंट की नहीं है, पाँच साल बाद अगर प्रमोशनल टेस्ट में उसका परफ़ार्मेंस ए श्रेणी का हुआ तभी उसे परमानेंट पार्टनर मिल पाएगी, तब तक वह अपने कूपन्स से टेम्पररी पार्टनर के लिए अप्लाई कर सकता था। पिछले दोनों बार उसका परफ़ार्मेंस ऐसा नहीं हो पाया कि परमानेंट पार्टनर मिल पाये और अब तो उसने उम्मीद भी छोड़ दी थी। परमानेंट में फ़ायदा यही होता है कि तीन साल तक आपको हर हफ़्ते कूपन नहीं बर्बाद करने होते हैं पार्टनर के लिए और दो कमरों वाला रिटायरिंग फ्लैट मिल जाता है। बच्चो के बारे में तो उसने कभी सोचा नहीं था लेकिन परमानेंट पार्टनर होने पर अगर दोनों राज़ी हों तो कंपेटिबिलिटी की जाँच कर बच्चा पैदा करने की अनुमति भी दे दी जाती थी, अगर बच्चा नहीं चाहिए और सिर्फ़ पैरेंटिंग एक्सपीरिएन्स का मन हो तो तीन महीने का एक बेबीलेस प्रिग्नेंसी पैकेज भी था लेकिन वह काफ़ी मंहगा था और उसे तो बस ए +++ वाले ही अफोर्ड कर पाते थे। टेम्पररी पार्टनर का सिस्टम सरल था। आपको शुक्रवार को अप्लाई करना होता था जिन लड़कियों के साथ आपका प्रोफाइल मैच करता था अगर उनमें से किसी एक के लिए शनिवार तक कंफ़र्मेशन आ जाता था। शनिवार शाम को वर्कप्लेस से लौटते हुए वह कपल्स स्क्वायर पर मिलती थी और फिर आप वहाँ से उसे अपने कमरे पर ला सकते थे, जाने को आप उसी इलाक़े के बार्स और प्लेज़र रूम्स मे भी जा सकते थे लेकिन उसका चार्ज़ दोनों के कार्ड से कटता था इसलिए अक्सर लोग कमरे पर ही आ जाते थे। अगले 18 घंटे आपको साथ होना होता था और उसमें दो बार सेक्स किया जा सकता था। पहले वह हर हफ़्ते अप्लाई किया करता था लेकिन पिछले दो सालों से महीने में दो बार करके वह पहाड़ देखने का ख़र्च बचा रहा था।  

पहाड़ के बारे में उसे माँ ने बताया था। बचपन में माँ हर हफ़्ते चिल्ड्रेन रिटायरिंग रूम आया करती थी। कॉलेज में था तो यूथ रिटायरिंग रूम के नियमों के हिसाब से महीने में बस एक बार मुलाक़ात होती थी। अक्सर वह उसे नानी और पहाड़ों के बारे में बताती। इसी वजह से कम्पलेन भी हुई थी और फिर मिलने पर रोक लगा दी गई। पिछले महीने जब उसे माँ से मिलने को कहा गया तो वह अस्पताल में थी। वह पैंसठ साल की हो चुकी थी और अब उसे रिटायर करके डेथ इंजेक्शन दिया जाना था। आख़िरी इच्छा में उसने बेटे से मिलने के लिए कहा था तो आधे घंटे की मुलाक़ात इस शर्त पर मंज़ूर की गई थी कि वह उससे नानी या पहाड़ के बारे में कोई बात नहीं करेगी। माँ ने कुछ बोला ही नहीं था। अस्पताल के उस कमरे की बालकनी से उसने बाहर देखा जहाँ बादलों ने डेरा बना लिया था और उसे बुलाकर दिखाया। उसकी आँखों में एक चमक थी जो वह भूल चुका था। थोड़ी देर तक बादलों को देखने के बाद उसने कहा कि बारिश होगी। माँ की आँखों की चमक थोड़ी और दमकी और फिर वहाँ एक उदास बादल आकर बैठ गया। ज़रा सी बारिश हुई और माँ ने अचानक डॉक्टर से कहा, आय एम रेडी। डॉक्टर इंजेक्शन तैयार करने लगा तो माँ ने अपने बैग से भगवान की एक फ्रेम की हुई तस्वीर निकाली और उसे देते हुए कहा, मैने परमिशन ले ली है। तुम इसे अपने पास रखना।“ आमतौर पर भगवान की तस्वीर रखने की अनुमति सिर्फ़ महिलाओं को थी। जब भगवान की तस्वीरें रखने पर पाबंदी लगाई गई तो औरतों ने टेम्पररी या परमानेंट रिलेशन में जाने से मना कर दिया था, जबर्दस्ती भेजा गया तो वे कपल्स स्क्वायर पर ही सारे कपड़े उतार कर बैठ गईं और तमाम सख्तियों के बावजूद तब तक नहीं उठीं जब तक एक तस्वीर रखने की अनुमति नहीं दी गई। यह बात उसके जन्म से पहले की थी। माँ ने बताया था कि नानी उस समय सबसे आगे बैठीं थीं। उसी प्रदर्शन के बाद नानी को “नॉट सूटेबल फॉर जॉब” घोषित कर डेथ इंजेक्शन दे दिया गया और माओं का बच्चों से मिलना सीमित करा दिया गया। मैने माँ की ओर देखा तो उन्होने आँखों में ही कहा कि यह उन्हीं की तस्वीर है। मैंने तस्वीर ले ली और फिर डॉक्टर ने इंजेक्शन दे दिया। मरने से ठीक पहले माँ की दर्दभरी आवाज़ गूँजी- पहाड़।  

न्यूज़ रील पर पहाड़ दिखाये जा रहे थे। पीछे एक सपाट आवाज़ – ये दुनिया के इकलौते पहाड़ हैं जिन पर बर्फ़ बची हुई है। कल्पना कीजिये वहाँ आपको गर्मियों के दिनों में भी ईस्टर्न एसी के बिना ठंड लगती है। हर साल पचास सबसे योग्य लोगों को कॉर्पोरेशन भेजता है पहाड़ पर। आपकी मेहनत और बचत आपको भी ले जा सकती है एक दिन धरती के इस अज़ूबे पर। देखिये अपने खुशगवार साथियों को' पर्दे पर कुछ चेहरे नमूदार हुए। पथरीले चेहरे जैसे रोज़ देखता है वह। फिर उन चेहरों पर एक अजीब सा कशमकश का भाव उभरा जो धीरे धीरे आश्चर्य में बदलता गया। फिर अचानक एक उम्रसरा आदमी ने अपनी ही उम्र की एक महिला को देखा। दोनों के चेहरे विकृत होने लगे। फिर हो हो की आवाज़ में वे हँसने लगे। कुछ और लोग भी। फिर सारे हँसने लगे। भयावह सी आवाज़ और दृश्य बदल गया। उसे लगा जैसे उसने उनमें से किसी एक को रोते हुए देखा था। क्या हुआ होगा उसका? वर्क कांट्रेक्ट ख़त्म या फिर केवल कड़ी चेतावनी या सायको ट्रीटमेंट या फिर नॉट सूटेबल फॉर जॉब! अपने भीतर उसने एक लहर सी उठती महसूस की। लगा जैसे एक मितली सी पेट के बहुत भीतर से उठती गर्दन तक चली जा रही है। वह उठकर बस के वाटर प्लांट तक गया और कार्ड स्वाइप कर एक गिलास पानी निकाला। पीते हुए अचानक उसे लगा जैसे पहाड़ उसके गले के भीतर उतर रहा है। मोबाइल निकालकर उसने सेविंग चेक की। अभी कम से कम दो साल और लगने थे पहाड़ यात्रा संभव होने में। बस में एक मीठी सी आवाज़ गूँजी - वर्क स्टेशन टू पहुँचने में हमें दो मिनट और लगेंगे। वहाँ उतरने वाले यात्री गेट पर आ जाएँ। लाइन में रहें और संकल्प लें – मेहनत, अनुशासन और नियमों के प्रति प्रतिबद्धता। आपका दिन उत्पादक हो। धन्यवाद।


Karen Darling की पेंटिंग यहाँ से साभार 

  


बस स्टैंड से नब्बे क़दम चलना होता था. पिछले आठ बरसों से वह रोज़ गिनता था. कई बार जानबूझकर छोटे क़दम लेता लेकिन संख्या हर बार नब्बे की ही आती. फिर वही विशालकाय दरवाज़ा. दरवाज़े पर अपना आई कार्ड लगाओ तो एक आदमी भर की जगह खुलती. फिर पच्चीस क़दम पर स्कैनर. गुज़रते हुए पन्द्रह सेकंड की बीप. फिर पन्द्रह क़दम पर लिफ्ट. एक सौ बीसवीं मंज़िल तक जाने में कुल बीस सेकण्ड. फिर छब्बीस क़दम पर अल्ट्रा स्कैनर. नब्बे परसेंट से कम मेडिकली फिट बताया तो काम के घंटे बढ़ा दिए जाते हैं. फिर चालीस क़दम सीधे चलकर आठ क़दम बाएं मुड़ने पर डेढ़ बाई डेढ़ का क्यूबिकल जहाँ ठीक नौ बजे पहुँच जाता है वह. अगले छः घंटे वहाँ से बाहर नहीं निकला जा सकता. बारह बजे चाय का ब्रेक होता है फिर तीन बजे आधे घंटे का  लंच ब्रेक जिसमें खाना खा कर अड़तालीस क़दम चलकर गेट पर आना होता है और एक और बार अल्ट्रा स्कैनर से गुज़र कर फिर अपने क्यूबिकल में. आठ बजे ग्रेट हॉर्न बजता है और फिर ठीक नौ बजे वर्कर्स रिटायरिंग हास्टल के सामने बस छोड़ देती है. आठवीं मंज़िल के अपने बारह बाई दस के कमरे में लौटकर वह टीवी ऑन कर देता जिस पर दो ही ऑप्शन थे. या तो ईस्टर्न कॉरपोरेशन के चैनल पर न्यूज़ रील्स देखे या फिर एक सौ पचीस दूसरे चैनलों पर अलग अलग तरीक़े के पोर्न. इन चैनल्स पर भी न्यूज़ रील का टिकर चलता रहता था. उसे मसाज़ पोर्न पसंद था. मसाज़ रूम बेहद सुंदर हुआ करते थे. हल्का संगीत बजता रहता. दीवारों पर सुन्दर लड़कियों के नग्न फ़ोटो. थाली में रखे पानी पर दिए जलते रहते. फिर एक मर्द और एक औरत कमरे में आते. औरत सारे कपड़े उतार कर लेट जाती और मर्द शॉर्ट्स तथा टी शर्ट पहनकर उसकी मसाज करने लगता. पहले पैरों की, फिर पीठ की. जब गर्दन तक पहुँचता तो औरत सिसकारियाँ भरने लगती और पलट जाती. फिर वह स्तनों की मसाज करता और स्त्री उसके शॉर्ट्स उतार देती. फिर धीरे धीरे मसाज की जगह चूमना-चाटना शुरू हो जाता. पहले इसे देखते हुए वह मास्टरबेट कर लेता था लेकिन इधर कुछ महीनों से उसकी नज़र कॉर्पोरेशन के टिकर्स पर टिक जाती और उत्तेजना ख़त्म हो जाती.


आज उसने जाने क्या सोचकर न्यूज़ रील लगाई। बचपन से अब तक उसने यह रील देखी हज़ारों बार थी लेकिन गौर से एक बार भी नहीं सुना। आज सुनना शुरू किया। एक युवा स्त्री की आवाज़ थी पीछे से और सामने तेज़ी से बदलते दृश्य – “ईस्टर्न कॉर्पोरेशन की स्थापना इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में हुई थी। उस भयावह समय में एक रौशन दिमाग ने देखा था यह सपना कि लोकतन्त्र जैसी भयानक और मनुष्यविरोधी व्यवस्था को ख़त्म कर एक नई दुनिया बनेगी जिसमें आदमी मेहनत करेगा और सुखी रहेगा। बेकार के नारों को ख़त्म कर उसने एक नया नारा सोचा था -  मेहनत, अनुशासन और नियमों के प्रति प्रतिबद्धता। जिसने दुनिया को मशीनों से भर देने का सपना देखा और पूरा किया। 2040 में विश्वयुद्ध के बाद जब दुनिया छः हिस्सों में बंटी तो यह पूरबी इलाक़ा हमारे हिस्से आया। बीसियों देशों में बंटे इस हिस्से को हमने एक किया। सबको काम दिया कि वे अपने लिए हवा, पानी और भोजन ख़रीद सकें। हमने दुनिया को युद्धों से मुक्ति दिलाई बेकार के कंपटीशन से मुक्ति दिलाई घृणित चुनावों के जरिये चुने जाने वाले भ्रष्ट नेताओं से मुक्ति दिलाई धर्म और जाति के झगड़ों से मुक्ति दिलाई विचारों से मुक्ति दिलाई मनुष्य को बहकाने वाली कविताओं और नारों से मुक्ति दिलाई। सबसे बड़ी बात यह कि हमने उन्हें इतिहास से मुक्ति दिलाई स्मृति से मुक्ति दिलाई और प्रेम जैसे बचकाने भावों से भी। तो आपका फर्ज़ बनता है कि अपने इस महान मुक्तिदाता....” वह यहीं पर अटक गया। स्मृति...प्रेम...यही तो वे शब्द थे जिनके मानी वह ढूँढ रहा था। अचानक उसने बिस्तर के नीचे रखी वह किताब निकाली। थोड़ी देर तक कवर देखता रहा। पहाड़। बर्फ़ से लदे हुए। लम्बे लम्बे पेड़। एक औरत जो पहाड़ों की ओर चलती जा रही थी। उसकी पीठ दिख रही थी। लंबी चोटी। पाँवों में साधारण सी चप्पल। जैसे लौट रही हो कहीं और लौटने की बेहद जल्दी हो उसे। कवर पलटा तो पहले पन्ने पर लिखा था – आने वाली पीढ़ियों के लिए। दो तीन पन्ने पलटे तो बोल्ड शीर्षक में लिखा था – वह जो नष्ट हो रहा है


एक गाँव नहीं है वह
स्मृतियों की भरी पूरी बस्ती है 
जो दरवाज़ा जला दिया तुमने
उसमें किसी के सपने बरहना हो गए हैं
तुम्हारे फ़ौज़ी बूटों ने ज़िना किया है
किसी की उम्मीदों के साथ

वह जो बंजर हो गया
टुकड़ा नहीं था ज़मीन का
एक मर्द की बीस बरस की मेहनत थी
उस काट दिये गए दरख़्त के नीचे
बीस बरस से रहता था पहला चुंबन किसी स्त्री का

एक दिन बच्चे पूछेंगे तुमसे
अपने खेल के मैदानों का पता
एक दिन चिड़ियाँ तुमसे मांगेंगी
अपने आशियाने का हिसाब

तब क्या कहोगे तुम
जब तुम्हारी बाहों में नग्न पड़ी स्त्री कहेगी प्रेम
और तुम्हारी स्मृति से खो चुका होगा यह शब्द।

दसियों बार पढ़ा उसने इसे। पिछले 36 सालों में ऐसा कुछ नहीं पढ़ा था उसने। न स्कूल में न कॉलेज में न किसी न्यूज़ रील में न विज्ञापन में। समझ कुछ नहीं आ रहा था लेकिन कुछ था जो बांध रहा था। घर, खेल के मैदान, पेड़, सपने, चुंबन इन सबका जो मतलब उसे पता था यहाँ सब उससे एकदम अलग था। घबरा कर किताब रख दी उसने फिर से बिस्तर के नीचे। घड़ी देखी तो सवा बारह बज चुके थे। मोबाइल उठाया और टेंपररी पार्टनर के लिए अप्लाई कर दिया। फिर नींद की गोली ली और लाइट्स बुझा दीं।

ठीक 3 बजे उसके मोबाइल पर मैसेज चमका। लंच पैक खोलते खोलते उसने देखा – टेम्पररी पार्टनर रिक्वेस्ट अप्रूव्ड़। पार्टनर कोड एन क्यू एफ आर 64। ईस्टर्न कॉर्पोरेशन के सर्च इंजन पर यह नंबर डाला तो एक प्रोफाइल खुली। अकाउंट्स असिस्टेंट। उम्र 34 साल। गोरा रंग। बाल काले। फिगर 38 34 38। प्रिफरेंस मिशनरी पोजीशन। आई क्यू लेवल ए+। प्रोफाइल तस्वीर शनिवार को ही ओपन होती थी। फिर स्कैनिंग के लिए गेट तक जाकर लौट आया। एक बार फिर मन हुआ प्रोफाइल देखने का। लेकिन अब सर्च इंजन डिसेबल हो चुका था अगले पाँच घंटों के लिए। उसने सिस्टम खोला और टूर पैकेजेज़ फाइनल करने लगा। उसका काम था आए हुए टूर प्रस्तावों की जाँच करके उसमें अपने सुझाव जोड़ कर फाइनेंसियल असेसमेंट के लिए आगे भेजना। ये प्रस्ताव अक्सर ए++ और उसके ऊपर के लोगों के होते। दो तरह के टूरिंग प्रपोज़ल आते थे, नेचुरल और ईस्टर्न हैवेंस के। नेचुरल में नदी, वेजीटेबल फ़ॉर्म, पहाड़ वगैरह के होते। ईस्टर्न हैवेन की सबसे ज़्यादा पसंद की जाने वाली जगह थी रूरल हैवेन। यह पहाड़ की तलहटी में बसा एक गाँव था जिसमें कोई रहता नहीं था। दो-तीन कमरों के मकान जिनमें छत, आँगन और किचन गार्डेन थे। इन गार्डेन्स में कुछ परमानेंट प्लांट्स थे जिनमें हरी सब्जियाँ लटकी रहती थीं जिन्हें तोड़ने या छूने की अनुमति नहीं थी। आँगन में एक जानवर बंधा रहता था जिसके थनों को निचोड़ने पर सफ़ेद रंग का द्रव निकलता था। टूरिस्ट्स को सख़्त हिदायत थी कि इसके लिए दस्ताने पहनें और द्रव को हाथ न लगाएँ। एक मंदिर था जिसमें शाम को संगीत बजता था। इनमें भी किसी को भीतर जाने की अनुमति नहीं थी। गाँव के किनारे एक पहाड़ी नदी थी. लेकिन हर साल एकाध ऐसे केसेज आते थे जब टूरिस्ट हरी सब्जियाँ तोड़ने या सफ़ेद द्रव पीने या नदी और मंदिर में जाने की कोशिश करते। ऐसे टूरिस्ट को हमेशा के लिए बैन कर दिया जाता और ए कैटेगरी में डाल दिया जाता। इसके अलावा सेक्स हैवेन था जहाँ एक बड़े से मंदिरनुमा भवन की दीवारों पर सेक्स करते हुए मर्द-औरतों की मूर्तियाँ बनी हुईं थीं और सीत्कार की तेज़ आवाज़ें आती रहतीं । बीच में एक बड़ा सा हाल था जिसमें पार्टनर के साथ जाने वाले सेक्स कर सकते थे और अकेले जाने वाले या तो मास्टरबेट या फिर तुरंत एक्स्ट्रा पेमेंट करके कोई टेम्पररी पार्टनर हासिल कर सकते थे। एक पीपल्स हैवेन था जहाँ आपको हर वक़्त बहुत से लोगों के बीच होने की अनुभूति होती और आपके हर सवाल का प्रीरिकॉर्डेड जवाब दिया जाता। सवालों की सूची पहले ही उपलब्ध करा दी जाती। उसके सामने पीपल्स हैवेन का ही एक प्रस्ताव था। ए ++ वाला 34 साल का एक पुरुष तीन महीने बाद वहाँ जाना चाहता था दो दिन के लिए। उसने सजेशन में सवाल जोड़ा- “प्रेम और स्मृति क्या है” और आगे बढ़ा दिया।   

बस कपल्स स्क्वायर पर रुकी तो उसने मोबाइल पर पार्टनर लोकेशन देखा। वह बार के पास खड़ी थी। उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ। इसके पहले वह बार की तरफ कभी नहीं गया था। अक्सर पार्टनर्स बस स्टैंड पर ही मिल जाती थीं। बाईं तरफ चालीस क़दम चलकर फिर साठ क़दम चलने पर बार का दरवाज़ा था। वह बाहर बने बेंच पर बैठी थी। उसे देखकर मुसकुराई और हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली, “अगर आपको एतराज़ न हो तो थोड़ी देर बार में बैठें?” वह हिचकिचाया तो उसे आश्वस्त करते हुए बोली, “मेरे पास एक्स्ट्रा क्रेडिट्स हैं। आपको शेयर नहीं करना पड़ेगा। असल में मुझे रिलेशन वाले दिन ड्रिंक किए बिना मज़ा नहीं आता। चलिये न प्लीज़।” वह चुपचाप उसके पीछे चल दिया। अंदर  नीले रंग की हल्की रौशनी थी। गोल मेज़ों के इर्द गिर्द कुर्सियाँ लगी हुईं थीं। उनमें से एक खाली कुर्सी पर उसने उसे बैठने का इशारा किया और ख़ुद काउंटर की तरफ़ चली गई। कार्ड स्वाइप कर दो ग्लासों में ड्रिंक ले आई और सामने कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “रेड ईस्टर्न रम ले आई हूँ। सौ साल पहले इसे ओल्ड मांक कहते थे और लोग जाड़ों मे इसे बहुत पसंद करते थे। अब जाड़े तो बस पंद्रह दिन के लिए आते हैं तो इसकी तासीर ठंडी करके टेस्ट वही रखा गया है।“ फिर उसमें बर्फ़ के दो टुकड़े डालते हुए बोली, मुझे पता है कि आप ड्रिंक नहीं करते लेकिन आज मेरे साथ पीजिए। शराब, बात और सेक्स का कंबिनेशन ग़ज़ब होता है।” उसने ग्लास उठाई और तेज़ी से गटक गया। वह हंसने लगी, “आराम से पीजिए भई। अगले अठारह घंटे हम साथ हैं।”  फिर वह दूसरी ग्लास ले आई।

थोड़ी देर बाद उसने पूछा, आप मनोरंजन के लिए क्या करते हैं?
टीवी देखता हूँ।
बस टीवी!
हाँ
कौन सा पोर्न पसंद है?
मसाज़ कभी कभी स्टेप मॉम
कभी मसाज़ कराई आपने?
नहीं
अरे! कभी बड़ी उम्र की पार्टनर के लिए अप्लाई किया?
नहीं
घूमने भी नहीं गए न आप कहीं?
नहीं
आज का क्या प्लान है?
कुछ नहीं
अगर आप कहें तो मैं प्लान बनाऊँ?
बना लीजिये।
ओके। तीन ड्रिंक्स के बाद हम वाक करेंगे और अगले स्टैंड से बस लेंगे फिर स्काई वाच के लिए जाएँगे कार्ड मैं स्वाइप करा लूँगी। फिर घर जाएँगे। आय विल गिव यू ए मसाज़। ओके?
ओके।
आपने एक बार में दो से अधिक शब्द पिछली बार कब कहे थे? वह हँसते हुए बोली।

वह सोच में पड़ गया। अक्सर तो बोलने के मौके ही नहीं थे। हाँ, नहीं, ओके, थैंक्स बस यही कहना होता था। ऑफिस में संदेश मोबाइल या ईस्टर्न नेट से आते थे और उनके जवाब में येस या ओके लिखना होता था। ऑफिस जाते-आते गुडमॉर्निंग/ गुडनाइट या फिर लंच/डिनर की डेलीवरी के समय थैंक्स। रिलेशन के लिए आई पार्टनर्स भी ज़्यादा बात नहीं करती थीं। घर आकर खाना ऑर्डर करते फिर पोर्न देखते और फिर कोई एक शुरू करता तो बात के लिये कोई स्कोप होता नहीं था। फिर उसे अचानक अपना पहला रिलेशन याद आया। कॉलेज के आख़िरी साल में एक महीने सेक्स एजुकेशन के होते जिसके आख़िरी दिन पहला रिलेशन बनाना होता था। वह इक्कीस साल का था और वह भी इसी उम्र की। झिझकते हुए दोनों रूम में घुसे तो उसने पूछा “आर यू इन हरी? मुझे थोड़ा सा डर लग रहा है। बातें करें थोड़ी देर?” उसने हाँ” ही कहा था। वह देर तक बोलती रही थी – “ममा ने लास्ट मीटिंग में कहा था कि सब बहुत अजीब हो गया है। पहले लोग खुद चुनते थे पार्टनर और लंबे रिलेशन में रहते थे। बच्चे होते थे। घर। अभी सब कुछ कॉर्प तय करता है। ये कहते हैं कि यह सब हमारे बेस्ट के लिए है, लेकिन मान लो हम अपना बेस्ट न चाहें तो? अब ये क्या बात हुई कि सब बेस्ट हो! पूरे महीने मैं एक दूसरे लड़के को देखती रही। जब टीचर चूमना सिखा रहे थे तो मैं सोचती कि वह चूम रहा है मुझे। लेकिन जब पार्टनर डिसाइड हो रहे थे तो मुझसे पूछा भी नहीं गया। तुम बताओ तुमने भी तो देखा होगा किसी को?” तब भी उसके समझ नहीं आया था कि क्या बोले वह। वह तो लगातार पहली पीरियड में आने वाली इंस्ट्रकटर को देखता रहा था। मझोला क़द। थोड़ी भरी देह। उसके सीनों पर निगाह टिक जाती। लड़की की प्रश्नवाचक निगाहें उसकी तरफ़ टिकी थीं, वह बोला, नहीं। मैने ऐसे किसी पर ध्यान नहीं दिया। वह हँसते हुए बोली, मैं समझ गई थी जब तुम्हें मोस्ट डिसिप्लिंड ट्रेनी” घोषित किया गया था। असल में तुम मशीन हो। एक पुर्ज़ा। वे सेट कर देंगे तुम्हें कहीं और तुम उम्र भर वैसे ही घिसते रहोगे। वह तब भी चुप रहा था। फिर वही बोली थी, लाइट्स स्विच ऑफ कर दो। मैं उसी लड़के की कल्पना करूँगी और तुम्हारे साथ होऊंगी। कितना भयानक होगा न कि कभी कोई तुम्हारी कल्पना नहीं करेगा किसी और के साथ तो छोड़ो, तुम्हारे साथ होते हुए भी।” और फिर उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट आई थी जिससे डर के उसने लाइट्स ऑफ कर दी थीं।

वह उसके पीछे चलता जा रहा था। कोई सोलह साल बाद स्काई वाचिंग के लिए जा रहा था वह। कॉलेज के दिनों में दिखाया गया था उन्हें आसमान। चाँद, तारे और उस मद्धम रौशनी की उसे हल्की सी याद थी। वह भी चुप थी। बड़े से गेट के पास लगी मशीन में कार्ड स्वाइप किया तो एक आदमी के घुसने भर की जगह बन गई। वह उसके पीछे पीछे अंदर गया। दो सौ क़दम चलने के बाद एक बड़ा सा मैदान था जिसमें कई लोग ऊपर की ओर मुंह किए खड़े थे। हल्की रौशनी जैसे मास्टर रोबो के कमरे में होती है। वह अचानक पलटी, “मुझे पकड़ो और ऊपर देखो।” उसने पीछे से उसके स्तन पकड़ लिए तो वह हँसने लगी, “बूब्स नहीं बेवकूफ़ कमर से थामो” और फिर उसके हाथ पकड़ कर अपनी कमर पर रख लिए। कितनी नर्म त्वचा। उसका मन हुआ कि उसकी पीठ चूम ले। तभी उसने कहा, ऊपर देखो मेरे साथ। उसने गर्दन उठाई। उफ़। क्या था यह। पूरा चाँद जैसे...उसने बहुत याद किया लेकिन कुछ ऐसा याद नहीं आया जिससे तुलना कर सके। और तारे ढेरों। अपने भीतर कुछ मचलता सा महसूस किया उसने। अचानक वह हँसी याद आई उसे जो पहाड़ को देखकर उस आदमी के चेहरे पर आई थी। उसे लगा उसका चेहरा वैसा ही होता जा रहा है। फिर सीने मे कुछ उमगता हुआ सा। जैसे आँखों में कुछ गीला गीला सा उभर रहा था। अचानक उसने सर पीछे घुमाया, मुस्कुराई और उसके गाल चूम लिए। वह अब भी ऊपर देख रहा था। वह भी ऊपर देखने लगी। आधे घंटे बीतने वाले थे शायद। वह पलटी और उसने अपने होठ उसके होठों पर रख दिये तो उसके हाथ कमर पर और कस गए। फिर बहुत धीमे से उसके कानों तक अपने होठ ले जाकर उसने कहा, बाहर निकलने से पहले अपने आसूँ पोछ लो। जल्दी।

वे घर लौटे तो साढ़े ग्यारह बज चुके थे। एक अजीब सी थकान तारी थी उस पर जबकि मन एकदम हल्का। वह जूते उतारकर बिस्तर पर एक तरफ़ पसर गई। घुटनों से ज़रा ऊपर नीली स्कर्ट  और ऑफ व्हाइट टीशर्ट बिलकुल वैसी ही जैसी सारी सहकर्मी औरतें पहनतीं हैं। कंधों तक बाल थे ज़रा भूरे और आँखें हल्की नीली। ऐसा कुछ भी नहीं था जो उसे बाक़ी लड़कियों से अलग कर सके लेकिन इस पल वह सबसे अलग लग रही थी। उसने हल्की अंगड़ाई ली तो उसका मन हुआ उसे बाहों में भर ले और गर्दन पर चूम ले। वह कर सकता था लेकिन जाने क्या था जो उसे रोक रहा था। इस उम्र तक पचासों पार्टनर्स के साथ उसे कभी कोई संकोच नहीं हुआ था। लेकिन आज एक अजीब सी शर्म थी। उसने बैठने का इशारा किया तो वह बिस्तर पर दूसरी तरफ़ बैठ गया। थोड़ी देर तक एक चुप्पी रही फिर अचानक उसने पूछा, तुमने किसी को प्रेम किया है?” प्रेम! वह चौंका- “तुम जानती हो प्रेम क्या होता है?” वह हँसी – “चलो तुमने 7 शब्द तो बोले एक साथ। हाँ मैं जानती हूँ प्रेम क्या होता है। उन्होने पहले बहुत कोशिश की कि मर्दों की तरह औरतों को भी प्रेम का अर्थ भुला दें। लेकिन फिर औरतें पागल होने लगीं। हिंसक हो गईं। उनके रोने की शिक़ायतें इतनी आ गईं कि उन्हें माफ़ करना पड़ा। वे अब भी कोशिश करते हैं कि वे जिनसे प्रेम करती हैं कभी उनकी पार्टनर न बन सकें। लेकिन औरतों ने उन अठारह घंटों में भी प्रेम तलाश लिया। जैसे मैं इस वक़्त प्रेम करती हूँ तुमसे। तुम्हारी नादानियों से, तुम्हारे रूखेपन से, तुम्हारी उदासी से, तुम्हारे स्पर्श से। यह मेरी स्मृति में रहेगा।“ स्मृति! वह फिर चौंका, “स्मृति क्या होती है। प्लीज़ बताओ मुझे।” वह पहले हँसी फिर ज़रा उदास होकर उसे पास आने का इशारा किया। वह क़रीब आया तो उसने अपनी बाहें फैला कर सीने से लगा लिया और टी शर्ट की दो और बटन्स खोल दीं। उसे एक घबराहट सी हुई एक घुटन सी। फिर उसके भीतर एक ख़ुशबू सी भरने लगी। नींद के पहले की मदहोशी जैसी। टी शर्ट ज़रा ऊपर कर उसने उसकी नाभि हथेली से ढँक ली। उसने आँखें बंद कर लीं और धीमे से कहा, “यह स्पर्श यह ख़ुशबू यह झिझक ... यही प्रेम है चाँद। यह जो नाम दिया है मैने तुम्हें अभी, चाँद, यही प्रेम है। तुम भी एक नाम दो मुझे।“ उसने कहा – “रचना!...और स्मृति!” “अगली बार जब कोई स्त्री तुम्हारे साथ होगी तुम इन पलों को याद करोगे। फिर से जीना चाहोगे। जब तुम सोचोगे प्रेम के बारे में तुम्हारे जेहन में एक नाम गूंजेगा- रचना। यह स्मृति है जो तड़पाएगी भी तुम्हें और सुख भी देगी।” उसने आँखें मूँद लीं और उसे सीने से और कस लिया। 

उसे बहुत ज़ोर की प्यास लगी थी। अपने कंधों से उसका सर हौले से हटा कमर पर लदा पैर परे कर पानी लेने के लिए बढ़ा ही था कि उसने पूछा, “तुमने कहाँ सुने ये शब्द?” उसने उसकी तरफ़ पीठ किए किए कहा, “सुने नहीं, पढ़े। एक किताब में। वह चौंकी, “किताब! वह कहाँ मिली तुम्हें।” पानी का गिलास टेबल पर रखते उसने गद्दा ज़रा सा उठाया और वह किताब निकालकर उसके हाथ में दे दी, “माँ ने जो तस्वीर दी थी भगवान की वह गिर गई एक दिन मुझसे। उसके फ्रेम के अंदर थी यह किताब।” उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसने किताबों के बारे में बस सुना था। जल्दी जल्दी पलटने लगी। अब उस कमरे में जैसे वह थी और किताब थी। कपड़े पहनना भी जैसे भूल गई वह। पढ़ते पढ़ते कभी रोने लगती तो कभी चेहरे पर एक स्मित खेल जाती। दो घंटे बीत गए। उसने किताब ख़त्म कर सर ऊपर उठाया तो वह शांति से सामने कुर्सी पर बैठा था। वह उठी और उससे लिपट गई। हिचकियों की आवाज़ के बीच उसके आँसुओं से कमरा भर गया। वह खड़ा हुआ और उसे उठाकर सीने से लगा लिया। वह उसके सीने को चूमने लगी। जाने कब गिर गए दोनों बिस्तर पर और जब प्रवेश किया उसने उसकी देह में तो एक धीमी सी आवाज़ कमरे में गूँज गई – मुझे माफ़ कर देना चाँद।

उस रात उसने सपना देखा. वही पहाड़ी गाँव. एक बहुत पुराना संगीत भरा हुआ था माहौल में. हवा में रंग. लाल पीले नीले हरे गुलाबी. माँ आँगन में बैठी कुछ गा रही थी. नानी गाय का दूध निकालती गा रही थी कुछ. सड़कों पर बेशुमार बच्चे. रंग फेंकते हुए शोर मचाते हुए. उन्हीं के बीच दिखी रचना. गुलाबी कपड़ों में. वह बढ़ा उसकी ओर तो वह भागी. भागते भागते मंदिर के पीछे पहुँच गई. वहाँ थक कर रुकी तो उसने भर लिया बाहों में. चूम लिये उसके होंठ और लाल रंग लगाया तो बालों के बीच की सूनी रेखा जगर मगर करने लगी. वह शर्माई सी नदी की ओर भागी. दोनों धीरे धीरे उतरे नदी में. एक पत्थर तलाशा और बैठ गए पानी में पैर डालकर. वह गा रही थी कुछ बहुत धीमी आवाज़ में और मुस्कुरा रही थी. तभी झुकी वह और अपने बाल लहरों में भींग जाने दिए. वह हँसा और उसने बालों का जूड़ा बनाते हुए अचानक चूम लिया उसे. दोनों वैसे ही बंध गए आलिंगन में. तभी माँ के कराहने की आवाज़ पूरे गाँव की छतों पर उतर आई. दोनों ने देखा पलटकर. एक कसैली काली हवा बढ़ती चली आ रही थी. कस कर पकड़ लिया उसने उसका हाथ और देखते ही देखते उस हवा ने लील लिये सारे दृश्य. गाँव नदी पहाड़ और उन्हें भी.

वह अचकचा कर उठा तो चारों तरफ़ जैसे सफ़ेदी फैली हुई थी। बार-बार आँखें मलकर इधर उधर  देखा। एक मझोले आकार का कमरा था जिसकी नंगी सफ़ेद दीवारों के बीच एक सिंगल बेड पर वह लेटा हुआ था। रचना कहीं नहीं थी। उसने उठने की कोशिश की तो लगा देह की सारी ताक़त निचुड़ गई है। बगल में एक स्टूल पर पानी की बोतल रखी हुई थी। उसने किसी तरह बोतल उठाई और आधी बोतल गटक गया। आशंकाएं गहरे भरने लगीं।  मन हुआ ज़ोर से चीख़े। लेकिन ताक़त कहाँ थी। एक बार ज़ोर लगाया उसने और तभी दरवाज़ा खुला। दो लोग भीतर आ रहे थे। सफ़ेद लिबास में एक डॉक्टर और नीली वर्दी में एक पुलिस अधिकारी। पुलिस अधिकारी ने मुसकुराते हुए कहा, कैसे हो मिस्टर चाँद? इसे कैसे पता चला यह नाम! वह पूछना ही चाहता था कि पुलिस वाला स्टूल पर बैठ गया – “चौंको मत। एक्जीक्यूशन से पहले तुम्हें सब बताया जाएगा।“ एक्जीक्यूशन! उसके मुंह से अचानक निकला, “ अभी तो मैं बस 36 साल का हूँ लेकिन।“ उसने महसूस किया आवाज़ बाहर निकली ही नहीं। अब तक पुलिसवाला जम चुका था, “मुझे आदेश हुआ है कि यह सब तुम्हें बताया जाये। जो किताब तुम्हें मिली थी वह तुम्हारी नानी की माँ की थीं। वह कवि थी। जब ईस्टर्न कॉर्पोरेशन ने युद्ध के बाद इस इलाक़े पर कब्जा किया तो कुछ लोग इसके खिलाफ़ लोगों को एकजुट करने लगे। वे पर्चे छापते थे, प्रचार करते थे और आंदोलन भी। वही हमारे भवन तोड़ देना। मज़दूरों को भड़काना वगैरह। तुम्हारी नानी की माँ उनमें शामिल हो गई। वह जो खाली गाँव है तुम्हारी नानी का ही गाँव था। उसी मंदिर में छुपे थे सब। कॉर्प ने ज़हरीली गैस से सबको मरवा डाला। लेकिन उसके पहले वह शायद यह किताब किसी तरह तुम्हारी नानी को दे गई थी। अपनी नानी का क़िस्सा तुम जानते ही हो। लगता है इस किताब को बचाने के लिए ही उसने मूर्तियाँ रखने का वह आंदोलन किया। अब तो हमें डर है कि इन औरतों ने मूर्तियों और तसवीरों में जाने क्या क्या छुपा रखा हो। तुम्हारी माँ उन स्मृतियों को मिटा नहीं सकी। हमने पूरी व्यवस्था की कि उसको कोई बेटी नहीं बल्कि बेटा हो। तुम्हें बचपन से ऐसे पाला गया था कि इन बुरे विचारों का तुम पर कोई प्रभाव न पड़े और सोलह सालों तक तुम हमारे सबसे अनुशासित वर्कर रहे। लेकिन इस किताब ने तुम्हें बर्बाद कर दिया। शक़ तो हमें तभी हो गया था जब तुमने ईस्टर्न सर्च पर स्मृति और प्रेम सर्च करने की कोशिश की। फिर जब टूरिस्ट सजेशन में तुमने यह शामिल किया तो हमारा शक़ पुख्ता हो गया। तुम्हारी पुरखिनों के ख़ून में ही शायद ये विचार भरे हुए हैं। तुम्हारे साथ ये नष्ट हो जाएँगे।”

उसने फिर पूछने की कोशिश की, “रचना”

“वह हमारी इंटेलीजेंस एजेंट है। उसे तुम्हारा सच पता लगाने के लिए भेजा गया था। उसने सच का पता लगा भी लिया। लेकिन तुम्हारी किताब ने उसका दिमाग भी खराब कर दिया। कल रात तुम्हें बेहोशी का इंजेक्शन देने के बाद से ही वह ग़ायब है और किताब भी। बस इससे ज़्यादा बताने की इजाज़त नहीं हमें।“ उसने डॉक्टर की ओर इशारा किया। डॉक्टर आगे बढ़ा और उसके बेजान बाजू में सीरिंज का सारा द्रव खाली कर दिया।

उसकी डूबती आँखों में एक पहाड़ उभर रहा था। बर्फ से ढंका पहाड़ जिस पर चाँद की रौशनी पड़ रही थी। औरतों की एक क़तार थी उस ओर जाते हुए...नानी की माँ....नानी....माँ....रचना....   
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हंस के जून-2018 अंक से साभार 







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