अमितोष नागपाल की नौ कविताएँ
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक अमितोष नागपाल की ये कविताएँ अलग-अलग होते हुए भी एक कविता सीरीज सी चलती हैं. कहीं सवाल करती, कहीं उलझती और कहीं जैसे ख़ुद से ही बतियाती. एक ऐसे समय में जब एक तरफ़ कैरियर को सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा रहा है और दूसरी तरफ़ देश में प्रतिरोध के अनेक आन्दोलन उभर रहे हैं, अमितोष की कविताओं की यह सीरिज उनके साथ कलाकार या यों कहें तो बुद्धिजीवी की भूमिकाओं की ज़रूरी पड़ताल करती हैं. मई-68, पेरिस की तस्वीर जिसमें बैनर पर लिखा है - छात्र, शिक्षक और मज़दूर एक साथ' ' ये आर्टिस्ट का काम नहीं है भाई शुक्रिया स्टूडेंट्स नंबर सबका आना है क्या सोच के हँसते हो मेरे भाई ? ये बुरा दौर है यार मेरे हमें कभी तुम कागज कर दो डरना मत मेरे दोस्त गाड़ी कैसे ठीक हो पाएगी उस शोर में ये आर्टिस्ट का काम नहीं है भाई गुस्सा आए दबा लो , आँख भरे तो छुपा लो आवाज़ अपनी दबा लो किसी की बात सुनके आक्रोश आए सड़कों पे जुलूस देख के जोश आए ज़िंदा होने का अहसास हो खून उबलने लगे नींद गायब हो आँख जलने लगे तो ध्यान रखना