अमितोष नागपाल की नौ कविताएँ


राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक अमितोष नागपाल की ये कविताएँ अलग-अलग होते हुए भी एक कविता सीरीज सी चलती हैं. कहीं सवाल करती, कहीं उलझती और कहीं जैसे ख़ुद से ही बतियाती. एक ऐसे समय में जब एक तरफ़ कैरियर को सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा रहा है और दूसरी तरफ़ देश में प्रतिरोध के अनेक आन्दोलन उभर रहे हैं, अमितोष की कविताओं की यह सीरिज उनके साथ कलाकार या यों कहें तो बुद्धिजीवी की भूमिकाओं की ज़रूरी पड़ताल करती हैं. 

मई-68, पेरिस की तस्वीर जिसमें बैनर पर लिखा है - छात्र, शिक्षक और मज़दूर एक साथ' 



'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है भाई
शुक्रिया स्टूडेंट्स
नंबर सबका आना है
क्या सोच के हँसते हो मेरे भाई ?
ये बुरा दौर है यार मेरे
हमें कभी तुम कागज कर दो
डरना मत मेरे दोस्त
गाड़ी कैसे ठीक हो पाएगी
उस शोर में



ये आर्टिस्ट का काम नहीं है भाई 
गुस्सा आए दबा लो,
आँख भरे तो छुपा लो
आवाज़ अपनी दबा लो

किसी की बात सुनके
आक्रोश आए
सड़कों पे जुलूस देख के जोश आए 

ज़िंदा होने का अहसास हो
खून उबलने लगे
नींद गायब हो
आँख जलने लगे

तो ध्यान रखना तुम्हारी
'ये साइड' किसी के सामने ना आए

'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है...

ये बम्बई है मिमियाता हुआ
हर कोई अपने कैरियर को बचाता हुआ
तुम्हारा काम है पार्टियों में हाजिरी भरना

बंद करो आसाम की
कश्मीर की बातें करना
तुम्हारा क्या लेना इन सबसे
तुम इतने सेंटी हो गए कबसे?

'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है...

पर देश?

तुम थोड़े चला रहे हो यार
अपने आप चलता है
तुम अपनी फ़िल्म चलाओ
सही जगह पे एनर्जी लगाओ

आसाम की वजह से
तुम्हे नींद नहीं आ रही है
तो... तो... नेटफ्लिक्स पे पिक्चर देखो
या ट्रेवल कर लो
सिनेमा जाओ
और ये पंगे आज के हैं क्या?
हिस्ट्री पता है?
भूगोल?
सब सही है भाई मेरे
इतना ज़्यादा मत घबराओ

'ये आर्टिस्ट का काम नहीं है...

ज़्यादा निडर बनोगे तो
कैसे होगा नाम फिर?
सब तुम से डर जाएँगे तो
कौन देगा 'काम' फिर?

भीड़ देख कहाँ पे है
ताली का ज़ोर जहाँ पे है
वहाँ जाके तस्वीर खिंचाओ
ना ख़ुशी से दोस्ती
ना नफरतों से बैर रख
तुम देखो 'जश्न' है किस तरफ
और वहाँ शामिल हो जाओ...

देख ना अगल बगल
सब हैं मौज मस्ती में
छोड़ ना ये सब
लगी आग कौन सी बस्ती में?
देश वेश क्या है बे
लोग तो मरते ही हैं
अपने यहाँ तू देख ना
सब तो भाई खान है
तू बेकार में परेशान है...

और बता Artist
New year का क्या प्लान है?

 शुक्रिया स्टूडेंट्स

सुनो
तुम जिस भी बिरादरी के हो
जो भी तुम्हारी जात हो

ये जो सड़क पे उतरे हैं ना
इनका अहसान याद रखना

कल अगर लोकतंत्र बच गया
इस देश का

तो खिड़की से जुलूस देखने वाली
तुम्हारी नज़र की वजह से नहीं
रिमोट पर नाचती उँगलियों की वजह से नहीं
हमारी तुम्हारी फेसबुक की पोस्ट से नहीं

वो आँखें जो भरी हुई हैं
वो आँखें जो डरी हुई हैं
और वो आँखें जो
सब कुछ देखती
हुई भी मरी हुई हैं
इन तमाम आँखों को शुक्रिया कहना होगा

उन आँखों का
जो डंडे की नोक के सामने
सड़क के बीचो बीच
अपनी ज़िद के
साथ अड़ी हुई हैं...



 नंबर सबका आना है

वो गिनने आए हैं
वो गिनेंगें
पूरा हिसाब लेंगे
हर गर्दन
की माप लेंगे

वो शताब्दी का सबसे बड़ा जादूगर है
उसकी तिकड़म से बच नहीं पाओगे

अभी तुम में किसी एक को मंच पे बुलाया है
इसलिए तुम्हें लगता है
खेल दिखाया है

पर उसकी नज़र में सब के सब हैं
ये वो तय करेगा कि किस खेल में तुम्हें दर्शक होना है
और किस में तुम्हें मंच पे लाना है

लेकिन गिनती में सब शामिल हैं
नंबर सबका आना है

चिल्लाओगे तो चिल्लाने वालों में
कविता लिखोगे तो लिखने वालों में
सड़क पे उतरोगे
तो दुश्मन कहलाओगे

साथ दोगे तो
साथ वालों में
और नहीं दोगे तो
तो किसी और फेहरिस्त में गिने जाओगे

लड़ोगे तो लड़ने वालों में और
डरोगे तो डरे हुओं में
और इनमें से कुछ नहीं करोगे
"तो मरे हुओं में "

छुपने की अब जगह नहीं है
कि बैठे रहो रजाई में

तय बस इतना कर सकते हो
कि कैसे खुद को गिनवाना है
क्यूंकि गिनती में सब शामिल हैं
नंबर सबका आना है!


 क्या सोच के हँसते हो मेरे भाई ?

लाठियों और बंदूकों के दर्दनाक
हमलों के वीडियो के नीचे
फेसबुक के ये जो हँसते हुए निशान हैं
यह मेरे दौर की पहचान हैं!

क्या सोच के हँसते हो मेरे भाई ?
कि ये जो पिटने वाला इनसान है
तुम्हारे घर का नहीं है?

बस यह सोच के कैसे खुश हो जाते हो?
इसमें मज़ाक कैसे ढूँढ़ लेते हो?
देश के इस नज़ारे पे गर्व कैसे कर लेते हो?

रोते बिलखते चेहरे
मार खाते हुए
पुलिस वाले उन पर चिल्लाते हुए

तुम्हारी उँगली जब दबाती है वो हँसता हुआ चेहरा
तब क्या सचमुच तुम्हें हँसी आती है?

वो जिन तस्वीरों को देखते हुए हाथ काँपते हैं
गला भर आता है
आँख डूब जाती है

बताओ ना ये कौन से धर्म का कैसा नशा है
तुम्हारी आँख कैसे मुस्कुराती है?


ये बुरा दौर है यार मेरे

ये बुरा दौर है यार मेरे
इन नम आँखों से सवाल ना कर
चीख या तो चुप रह बस
तू गलत सही की बात ना कर
मत सोच के घाटा मेरा है
मत सोच मुनाफा तेरा है

अँधेरा है अँधेरा है

यह कुछ जुगनू जो ज़िंदा हैं
मत पूछ तू उनकी जात रे
नोच दिए ये जाएँगे
तो बचेगी केवल रात रे
उस रात में बस हत्यारे हैं
हम सबका वहाँ बसेरा है

अँधेरा है अँधेरा है





हमें कभी तुम कागज कर दो

हमें कभी तुम कागज कर दो
हमें कभी तुम नंबर कर दो

सारे नंबर बाहर कर दो
सारे कागज़ अंदर कर दो

कुछ पत्ते इतिहास के ले लो
कुछ पत्तों पे ईश्वर लिख दो

ताश की गड्डी दिन भर फेंटो
जीवन हमरा जोकर कर दो

जिस घर में भी चैन दिखे
उस घर जाके दहशत भर दो

माला जपना छूट न जाए
दुनिया ईश्वर ईश्वर कर दो

बच्चे कहीं कुछ भूल न जाएँ
सबके दिल में नफरत भर दो

बँटे रहे थे 'काम' से पहले
अब तुम खेला 'नाम' से कर दो

धरम गुरु तुम धरम बचाना
दुनिया चाहे खाली कर दो!





डरना मत मेरे दोस्त

डरना मत मेरे दोस्त
वे कहेंगे चारों तरफ डर है

डर ही आज की ताज़ा खबर है
तुम उनकी बात का यक़ीन करना मत
तुम डरना मत

जो नहीं डरे वो उनके किस्से सुनाएँगे
उनके साथ क्या हुआ बता के डराएँगे

न कहने की हिम्मत न जुटा पाओ
तो ज़ोर से हामी भरना मत

तुम डरना मत
तुम्हारे निडर होने की खबर होगी
तुम्हारी हर चीज़ पे नज़र होगी

लेकिन नज़र बचा के तुम गुजरना मत
तुम डरना मत

वो तुम्हारे घर का पता जानते हैं
तुम्हारी शकल पहचानते हैं
पर जब वोह पूछें की तुम "वही हो न "
तो मुकरना मत
तुम डरना मत मेरे दोस्त
तुम डरना मत




 गाड़ी कैसे ठीक हो पाएगी

किसी एक की गलती पे बात करो
तो कोई आके दूसरे की क्यों गिनाने लगता है?

अरे भाई 'एक' की गलती की तरफ इशारा करने वाला
किसी 'दूसरे' का समर्थक हो ऐसा ज़रूरी नहीं है

जनता के लोग
बिना बात ही ब्रांड अम्बैस्डर बने हुए हैं

मतलब ये ऐसी बात है की आप किसी से कहो
की भाई आपकी ये गाडी खराब है,
आपको ठग लिया किसी ने
तो वो आप पे चिल्लाने लगे

अबे सुन मेरा टीवी ज़्यादा खराब था आयी समझ में?
और उस से ज़्यादा मेरा फ्रिज खराब था
और पंखा नहीं खराब था? तब क्यों नहीं बोला बे?
हाँ बड़ा आया मेरी गाडी के बारे में बोलने वाला? सबसे ज़्यादा मेरा कंप्यूटर खराब था...

हाँ भाई पर चिल्ला क्यों रहा है
और गाड़ी कैसे ठीक हो पाएगी?





उस शोर में

एक नगाड़ा बजा तेरे नाम का राजा
उस शोर में
सबका शोर गायब

मंच से
बस तेरे चिल्लाने की आवाज़

कल रात से ये ये बंद
जी हज़ूर!
कल सुबह से ये शुरू
जी हज़ूर!

पर जिन्होंने तेरी पिक्चर का टिकट लिया था
उन्हें भी तेरी पिक्चर पसंद नहीं आयी
तो सुनना चाहिए ना राजा

लोग चिल्ला रहे हैं,
आपके कानों तक पहुँचना चाह रहे हैं
और आप हैं की और ज़ोर से नगाड़ा ही बजा रहे हैं

नगाड़े वाला भी थक गया ओ राजा
नगाड़ा बज बज के फट गया राजा

ज़िद छोड़
मंच से नीचे आजा !
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संपर्क 
ई-मेल : amitoshwrites@gmail.com

टिप्पणियाँ

Manoj ने कहा…
अमितोष नागपाल की ये कविताएँ एकदम समकालीन होकर लिखी गई हैं, इसके बावजूद इनमें कविताई भी खूब है। इन कविताओं में हमारे समय की मुश्किलों का बयान है। यहाँ सादगी ही शिल्प है, सवाल ही कविता हैं। देश में इस समय जो कुछ भी घट रहा है यह सवाल वहीं से जन्मे हैं। ये जितने मासूम हैं उतने ही तीखे भी हैं क्योंकि इनके मूल में पीडा भरी बेचैनी और प्रतिरोध की आदिम आकांक्षा आकार लेती दिखाई देती है।
Onkar ने कहा…
शानदार कविताएँ
Manoj dwivedi ने कहा…
भाई अच्छी कवितायेँ है ,यदि आपके द्वारा स्वयं लिखी गई है तो आप उम्दा कवि जानो अपने आपको।
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