अश्वेत जगत से स्त्री कविता



Faith Ringgold की पेंटिंग फॉर द विमेंस हाउस यहाँ से साभार   


लूसिल क्लिफ़्टन और वार्सन शायर अश्वेत कवयित्रियों की दो पीढ़ियों की प्रतिनिधित्व करती हैं। 

1936 में न्यूयॉर्क में जन्मी लूसिल अपनी स्त्रीवादी और एफ्रो-अमरीकी विरासत व परम्पराओं की थीम पर लिखी कविताओं के लिए जानी जाती हैं। अपने यहाँ नौसिखिये आलोचकों के हत्थे चढ़ी स्त्री-कविताओं की तरह उनकी कविताओं मे भी आलोचकों ने लगातार चलते लंबे वाक्यों और विराम-चिह्नों के अनुपस्थित रहने को लेकर लिखा। लूसिल की कविताएं सर उठाती स्त्री की कविताएं हैं, ताकत और आत्म-सम्मान और स्त्री होने के दर्द की कविताएं हैं। उनकी कविता माहवारी की प्रशंसा में कविता बताती है कि कविता में कैसे कहा जाता है किसी बात को। न खून बहता दिखाने की ज़रूरत पड़ती है, न काँपती टाँगे, न कविता की पंक्तियों में नैपकिन लहराने की ज़रूरत पड़ती है।  उनके तीन संग्रह तीन बार पुलिट्ज़र पुरस्कार के लिए आखिरी सूची में पहुँचे । यह देखना सबसे मज़ेदार है की अश्वेत कवयित्रियों ने स्वीकृत होने के लिए स्त्रीवाद से बचाकर चलाने की बजाए उसे अपनी ताकत बनाया। 

वार्सन शायर सोमाली कवयित्री हैं जो केन्या में जन्मी और लंदन में पली-बढ़ी। 

1988 में जन्मी वार्सन अश्वेत कवयित्रियों की एकदम आधुनिक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनके यहाँ माइग्रेशन की पीड़ा और दर्द अपने सघनतम रूप में देखा जा सकता है। साथ ही अश्वेत स्त्री-कविता का सेट किया टोन- स्त्रीवाद भी। वार्सन की एक कविता होम शरणार्थी की पीड़ा का यथार्थ और आत्मा को हिला देने वाला बयान करती है। शरणार्थी, जो स्त्री भी है। यह दोहरी-तिहरी मार है जिससे कवि वजूद घायल होता है। होम के साथ आज दुनिया में बड़ी संख्या में रिफ़्यूजी और माइग्रेंट अस्मिताएँ खुद को जोड़ पाती हैं। 2017 में रिफ़्यूजी बैन (ईरान,लीबिया, उत्तरी कोरिया,सोमालिया,सीरिया,वेनेजुएला और यमन के शरणार्थियों ,प्रवासियों,वीज़ा-धारकों पर अमरीका में प्रवेश को रोकने के लिए लगा प्रतिबंध) को लेकर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के खिलाफ़ प्रदर्शन में वार्सन की इस कविता की पंक्तियों को अपने प्लेकार्ड्स पर लिखकर विरोध दर्ज किया। विस्थापन की त्रासदी और स्त्री-अस्मिता की तलाश की विभिन्न आवाज़ें वार्सन के यहाँ हैं। यह जरूरी है कि हिन्दी कविता पढ़ने-लिखने वाले बाक़ी दीन-दुनिया में होने वाले नए फेमिनिस्ट डिपारचर्स को भी जानें। स्त्रीवाद स्त्री-कविता की ताकत है यह समझने के लिए भी और अश्वेत-स्त्री-आंदोलन से अपना बहनापा जोड़ने वाले दलित-स्त्रीवाद और दलित स्त्री-कविता को भी बहुत कुछ नया मिल सकता है ऐसी मुझे उम्मीद है।             

                                                                                                            अनुवाद एवं प्रस्तुति : सुजाता


 लूसिल क्लिफ्टन

माहवारी की प्रशंसा में कविता

अगर  कोई नदी हो
इससे भी ज़्यादा खूबसूरत
रक्ताभ किनारों की तरह
चाँद के                   अगर

कोई नदी हो
इससे ज़्यादा वफ़ादार
हर महीने लौटने वाली
अपने डेल्टा की ओर      अगर हो

कोई एक नदी
बहादुर इससे ज़्यादा
उमड़ती और उमड़ती आती आवेग में
दर्द में                             अगर हो


एक नदी
पुरातन
इस हव्वा की बेटी
केन और एबल की माँ
से ज़्यादा                            अगर हो इसमें

इस ब्रह्मांड में ऐसी नदी            अगर
कोई पानी होशक्तिशाली
इस जंगली पानी से ज़्यादा
तो प्रार्थना करना
 कि बहता रहे यूं ही जीव-जगत में
सुंदर और वफ़ादार और सनातन
और मादा और बहादुर


 जश्न नहीं मनाओगे मेरे साथ

जश्न नहीं मनाओगे उसका
जो मैं बन गई हूँ
जीवन ही एक तरह का? कोई आदर्श नहीं था मेरे पास। 
बेबीलोन में जन्मी 
स्त्री, वह भी अश्वेत 
क्या देख सकती थी अपने सिवा, कुछ भी होने के लिए
और मैंने किया 
यहाँ तारों की रोशनी और मिट्टी के बीच 
बने इस पुल पर 
मेरा एक हाथ थामे रहा ज़ोर से 
मेरे ही दूसरे हाथ को ; आओ जश्न मनाओ 
मेरे साथ कि हर दिन 
की गई कोशिश मुझे मारने की 
और असफल हुई।

वार्सन शायर

घर


कोई नहीं छोड़ता अपना घर
जब तक कि घरशार्क का जबड़ा न हो जाए
आप बस सरहद की तरफ भागें
जब देखें भागते हुए पूरे शहर को

आपके पड़ोसी आपसे भी तेज़ भागते हुए
खून से भरती हुई उनकी साँस गले में
पुरानी टिन फैक्ट्री के पीछे दिए गए जिसके चुंबन ने मदहोश कर दिया था
वह लड़का
अपनी देह से भी विशाल बंदूक थामे हुए
सिर्फ़ तभी आप छोड़ते हैं घर
जब घर ही आपको रहने नहीं देता

कोई नहीं छोड़ता घर जबतक कि घर करता रहे आपका पीछा
पैरों तले जलती आग
तपता लहू उदर में
यह वो काम नहीं जिसे आप कभी करने का सोचें
जब तक कि आपकी गर्दन पर छुरा न तान दिया जाए
तब भी आप फुसफुसाते रहें राष्ट्रगान
नष्ट करते हुए अपना पासपोर्ट किसी एयरपोर्ट के टॉयलेट में
सुबकते हुए, साफ़ कर देता है टॉयलेट पेपर का हर टुकड़ा
अब वापस नहीं जा सकेंगे आप

यह बात समझिए,
कि कोई अपने बच्चों को नाव में नहीं रखता
जब तक कि पानी ज़मीन से ज़्यादा सुरक्षित न लगने लगे
कोई अपनी हथेलियाँ नहीं जलाता
ट्रेन के नीचे
बोगियों के पीछे
कोई नहीं काटता दिन और रात एक ट्रक के पेट में
अखबार चबाता
जब तक कि मीलों चलते जाना
मानी रखता हो महज़ यात्रा से ज़्यादा 
कोई नहीं चाहता कुटना-पिटना
तरस पाना

कोई नहीं चुनता शरणार्थी -शिविर
या अनावृत्त तलाशियाँ जिसके बाद
आपकी देह छोड़ दी जाए दुखते रहने के लिए
या जेल
बेहतर है एक कारागृह
एक जलते हुए शहर से ज़्यादा
या एक रात में
एक कारापाल
बेहतर है उन ट्रक-भर आदमियों से ज़्यादा
जो दिखते हैं पिता समान
कोई इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता
कोई नहीं पचा सकता इसे
इतनी मोटी चमड़ी कोई नहीं होता

वापस जाओ काले
शरणार्थियों
गंदे प्रवासियों
आश्रय टोहते
सोख लेने वाले हमारे देश को
कितना अजीब सा गँधाते हैं इन निग्गर्स के हाथ
जंगली
अपना देश बर्बाद किया पहले
अब हमारा करने आए हैं
पीठ पर से फिसल जाते हैं ये शब्द और द्वेष-पूर्ण नज़रें
शायद इसलिए कि एक घूँसा हल्का है
एक अंग ही भंग कर दिए जाने से

या शब्द ज़्यादा नाज़ुक हैं
आपकी जांघों के बीच चौदह मर्दों से
या अपमान निगलना ज़्यादा आसान है
मलबे से
हड्डी से
आपकी कमसिन देह के टुकड़े टुकड़े होने से
मैं जाना चाहती हूँ घर 
लेकिन घर है शार्क का जबड़ा
घर बंदूक की नली है
और कोई भी नहीं छोड़ता घर
जब तक कि घर दौड़ा न ले जाए आपको तट तक
जब तक कि वह आपसे न कहे
और तेज़ चलाओ पाँव
छोड़ो कपड़ा-लत्ता यहीं
रेंग कर पार कर लो रेगिस्तान
लांघ जाओ समुद्र
डूबो
बचो
भूख बनो
याचना करो
भूलो आत्मसम्मान
तुम्हारा ज़िंदा रहना ज़रूरी है ज़्यादा

कोई अपना घर तब तक नहीं छोड़ता जब तक कि घर मीठी आवाज़ में कहे तुम्हारे कान में – जाओ
भाग जाओ मुझसे दूर अभी
मुझे नहीं पता मैं क्या हो गई हूँ
लेकिन जानती हूँ
कि कहीं भी होना
यहाँ होने से है ज़्यादा सुरक्षित



मकान

i

माँ कहती है हर औरत के अंदर होता है एक बंद कमरा ; वासनाओं की रसोई एक
एक शयनकक्ष दुख का,एक गुसलखाना उदासीनता का
अक्सर आते हैं पुरुष- चाभी लिए अपने साथ
और कभी पुरुष आते हैं हथौड़ा साथ लिए

ii

निनसूजूगलागावायो,सूजीफ़्सो आ लगा हेला *                                                     
मैंने कहा रुको, मैंने कहा नहीं और उसने नहीं सुना


iii
उसके पास कोई योजना है शायद, शायद वह उसे वापस लाएगी अपने तक
सिर्फ उसी के लिए जो जागेगा घंटों बाद बर्फ भरे बाथटब में
सूखता मुँह लिए, नीचे की ओर देखता अपनी नई, साफ़ करतूत को


iv
मैं देखती हूँ अपनी देह की ओर कहती हूँ ओह यह पुरानी चीज़ ?
ना, मैं बस आ गई हूँ इसमें

v
क्या आप इसे खाएँगी? मैंने माँ से पूछा, पिता की ओर इशारा करते हुए जो खाने के कमरे की मेज़ पर पड़े थे,मुँह में ठूसे हुए एक लाल सेब 


vi
जितनी बड़ी है मेरी देह, उतने की बंद कमरे हैं उसमें, बहुत से आदमी आते हैं चाभी लिए। अनवर ने नहीं की कोई कोशिश, मैं अब भी सोचती हूँ वह कोशिश करता तो क्या खोल पाता मेरे भीतर। बेसिल आया और दरवाजे पर रहा तीन साल संकोच में। नीली आँखों वाला जॉनी अपने बैग में औज़ार लिए आया दूसरी औरतों पर इस्तेमाल किए थे जो उसने: एक हेयरपिन,ब्लीच की एक बोतल, एक स्विचब्लेड और वैसलीन का एक जार। यूसुफ़ चिल्लाता रहा ख़ुदा का नाम की-होल से और कोई जवाब नहीं आया। कुछ ने याचना की, कुछ खिड़की की तलाश में देह पर करते रहे आरोहण, कुछ ने कहा वे बस रास्ते में ही हैं और कभी नहीं आए।   


Vii

गुड़िया, दिखाओ हमें तुम्हें कहाँ कहाँ छुआ गया,उन्होने कहा
मैंने कहा मैं गुड़िया सी नहीं दिखती,मैं  दिखती हूँ एक मकान जैसी
उन्होने कहा दिखाओ हमें मकान

इस तरह : दो अंगुलियाँ जैम की बोतल में
इस तरह : एक कुहनी नहाने के पानी में
इस तरह: एक हाथ ड्रावर में

viii
मुझे तुम्हें बताना चाहिए अपने पहले प्रेम के बारे में जिसने मेरे बाएँ स्तन के नीचे ढूँढा एक चोर दरवाज़ा नौ साल पहले, उसमें गिरा और अब तक उसका पता नहीं। जब-तब मुझे महसूस होता है कुछ रेंग रहा है मेरी जांघ पर। उसे देना चाहिए था अपना परिचय, मैं शायद उसे दिखा सकती बाहर का रास्ता। टकरा न गया हो वह उन बाकियों से, गुमशुदा लड़के कस्बों के , जिनकी थी खुशदिल माँएँ,जिन्होने की बुरी हरकतें कुछ और मेरे बालों की भूल-भुलैया में खो गए। मैंने उनकी अच्छी खातिर की , एक ब्रेडस्लाइस, और अगर वे भाग्यशाली हुए तो फल का एक टुकड़ा भी। नीली आँखों वाले जॉनी को छोडकर जिसने मेरे ज़ुल्फों को नोचा और रेंग आया भीतर। मूर्ख लड़का, मेरे भयों के तहखाने में जंजीरों से बांधा गया, अनसुना रह जाए वह इसलिए चला देती हूँ संगीत मैं। 

ix
खट-खट
कौन है?
कोई नहीं


x
अपनी देह को दिखाते हुए कहती हूँ पार्टियों में यही है जहां प्रेम आता है नष्ट होने के लिए
स्वागत, भीतर आइए, अपना ही घर समझिए। सब हँसते हैं, उन्हें लगता है मज़ाक कर रही हूँ मैं।

(*सोमाली में)
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दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्यामलाल कॉलेज में हिन्दी की प्राध्यापक सुजाता कवि, उपन्यासकार और प्रखर स्त्री विमर्शकार हैं. एक कविता संकलन "अनन्तिम मौन के बीच", उपन्यास "एक बटा दो" और स्त्री विमर्श की पुस्तक " स्त्री निर्मिति" प्रकाशित. इधर आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय और अनुवाद. 

संपर्क :  Chokherbali78@gmail.com










टिप्पणियाँ

Onkar ने कहा…
सुन्दर कविता
Abhinav Sabyasachi ने कहा…
इन कविताओं को हम तक पहुँचने के लिए असुविधा का शुक्रिया। इन कवित्रियों ने दोहरा भेदभाव सहा होगा, रंग और जेंडर दोनों स्तरों पर। अमेरिका के रंगभेदी समाज में, खासतौर से 60 के दशक के पहले, एक अश्वेत स्त्री का जीवन मानवीय मानकों से जिस न्यूनतम दर्जे का होता था उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। शायद इसीलिए फेमिनिस्म का इतना स्पष्ट रूप इनकी कविताओं में झलकता है। इसीलिए ऐतिहासिक रूप से भी देखें तो अश्वेत फेमिनिस्ट सबसे बोल्ड नज़र आती हैं। उसी की झलक इन कविताओं में है।
Sudhanshi Vasudev ने कहा…
it was true a century ago, it was true through the centuries, it is true now too .............. we need to change the situation, but the all pervading sense of hopelessness is defeating / scary and ruthless

(फेसबुक से)
राजेश मिश्रा ने कहा…
सुजाता जी का अध्ययन व्यापक है, विशेषतः स्त्री विमर्श पर लूसिल क्लिफ्टन की पहली कविता तो सृष्टि की प्रकृति की गहराइयों को खोल कर रख देती है।
राजेश मिश्रा ने कहा…
सुजाता जी का अध्ययन व्यापक है, विशेषतः स्त्री विमर्श पर लूसिल क्लिफ्टन की पहली कविता तो सृष्टि की प्रकृति की गहराइयों को खोल कर रख देती है।
काजल भालोटिया ने कहा…
इतनी अच्छी कविताओं का अनुवाद करने के लिए आपको बहुत बधाई...मेरे द्वारा पढ़ी किसी अश्वेत स्त्री की ये पहली रचना है जो गहरे कहीं उतरी हैं.
दीबा नियाज़ी ने कहा…
बेहतरीन। मां कहती है हर औरत के अंदर होता है एक कमरा......इतनी अच्छी कविताओं को हम पाठकों तक पहुंचाने के काम के लिए शुक्रिया सुजाता जी
सपना सिंह ने कहा…
इतनी मानेखेज कविताएँ पढ़वाने का शुक्रिया सुजाता। सारी दुनिया की स्त्री किसी न किसी सूत्र से एक दूसरे से जुड़ी है। औरत के मन के भीतर ही एक कमरा नहीं होता, वह जहाँ रहती है वहाँ भी एक खुफिया कोना अपने लिए बना कर रखती है
Gulzar Hussain ने कहा…
बहुत अच्‍छी कविताएं हैं। सुजाता जी को धन्‍यवाद।

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