व्योमेश शुक्ल को बधाई दें…

(इस वर्ष का भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार व्योमेश शुक्ल को दिया गया है। अपनी अद्भुत और सर्वथा नवीन भाषा के लिये जाने-जाने वाले व्योमेश ने बहुत कम समय में साहित्य की दुनिया में बेहद प्रभावशाली हस्तक्षेप किया है। एक सजग कवि होने के साथ-साथ व्योमेश ने आलोचना के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है। मेरी ओर से उनको बधाई और सार्थक कवि कर्म के लिये शुभकामनायें। यहां प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कवितायें)





मेरी पसंद की तीन कवितायें…






बाइस हज़ार की संख्या बाइस हज़ार से बहुत बड़ी होती है



जून १९९६ की बात है
५२ वाराणसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस ने
दूधनाथ चतुर्वेदी को टिकट दे दिया
राष्ट्रीय महासचिव ख़ुद आये
भूतपूर्व कुलपति गांधीवादी अर्थशास्त्र के बीहड़ अध्येता
गुरुजी को पैर छूकर प्रत्याशी बनाने
इसके बाद क्या हुआ ?
वही हुआ जो होना था
गुरुजी ४२ के बाद अबकी निकले
अपने शहर में
पचहत्त्तर की उमर में पैदल
उन्हें पूरी आबादी अपने छात्रों छात्राओं में बँटी नज़र आई
जबकि पूरी आबादी दूसरी वजहों में बँटी हुई थी
उन्होंने पार्टी के भावी आर्थिक कार्यक्रमों के बारे में भाषण दिए
जो पार्टी की वर्तमान आर्थिक नीति से
क़तई मेल नही खाते थे
उन्होने ज़िले के पदाधिकारियों से पूछा :
युवक कांग्रेस के युवा कहाँ हैं ?
सेवादल के सेवक कहाँ हैं ?
झण्डा लेकर चलने वाला आदमी कहाँ है ?
फिर उन्होने पूछा : लोगो की चेतना में कौन सा झण्डा लहराता है ?
जवाब आया : गुरु जी,
अब तो बड़ा रंगीन झण्डा लहराता है ।
गुरु जी के चुनाव प्रचार में बार बार निम्नलिखित शब्द और
वाक्य सुनाई देते रहे
घोषणापत्र
स्कूलों में दोपहर का भोजन
भाईचारा
गंगा जमुनी तहज़ीब
राष्ट्रीय आन्दोलन
नेहरू
खादी
झण्डा
जबकि उनके विपक्षी के चुनाव प्रचार में बार बार
निम्नलिखित शब्द और वाक्य सुनाई देते थे
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
तुष्टिकरण
संघ
रामजन्मभूमि
मुसलमान
जय श्री राम
अयोध्या मथुरा काशी
मुसलमान
कम से कम पाँच करो.ड रुपये
सिल्क का झण्डा
भगवा
लाल किले पर भगवा
दारू मुर्गा
रोज़ दारू मुर्गा
रोज़ दारू मुर्गा और पाँच सौ रुपये
रोज़ दारू मुर्गा और पाँच सौ रुपये प्रति कार्यकर्ता
के हिसाब से दस कार्यकर्ताओं के पाँच हज़ार रुपये
अच्छा, जय श्री राम
समूह, जय श्री राम
और चुनाव परिणाम में
वही हुआ जो होना था
पहले स्थान पर भाजपा प्रत्याशी शंकर प्रसाद जायसवाल - तीन
लाख पाँच हज़ार वोट
दूसरे स्थान पर......... - दो लाख पैसठ हज़ार वोट
तीसरे स्थान पर......... - एक लाख अ.डतीस हज़ार वोट
छठे स्थान पर प्रोफेसर दूधनाथ चतुर्वेदी - बाइस हज़ार वोट
यानी गुरु जी की ज़मानत ज़ब्त हो गई है
और दो कमरों के अपने मकान में ज़मीन पर बैठे हुए
वे बचे हुए पोस्टरों, बिल्लों और झण्डों की गिनती कर रहे हैं
सूची बनाकर ये सामग्री वे ज़िला कार्यालय भेजेंगे
चमकीले चुनाव विश्लेषक आपको नतीजों के बारे में बहुत कुछ बताएंगे
जबकि गणित के एक साधारण तथ्य से भी काम चल सकता है
कि बाइस हज़ार एक ऐसी संख्या है
जो कभी भी बाइस हज़ार से कम नहीं होती

स्कूल से भागने के अनेक कारण हैं

जैसे इंटरवल के बाद एक मैच खेलने जाना या कहीं वीडियो गेम पर हाथ
आज़माना
मैच खेलने के अव्याख्येय रोमांच के उलट महाबकवास अनुभूति है बायलॉजी
की कक्षा में केंचुए का चित्र बनाना
इसलिए भी भागना
जब मनाही हो
अध्यापक निगरानी कर रहे हों
आप बतौर भगोड़े प्रसिद्ध हो चुके हों
तब फिर से भागने के लिए जो संकल्प आप हासिल करते हैं और बार-बार
भागते हुए जिस आज़ादी के आप अभ्यस्त होते हैं,
पाया गया है कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के इण्टरमीडिएट के
पाठ्यक्रम के बरअक्स वह कहीं ज़्यादा रोशन है

भागने वेᆬ नुकसान उठाते हुए आप अधिक मनुष्य बनते हैं
घरेलू परीक्षाओं प्रैक्टिकल्स और कक्षा में आपकी सीट
अधिकाधिक पीछे होती जाती है और कथित प्रतिभाशालियों की चमक
आपको हताश और प्रतिबद्ध भगोड़ा बनाती है
लेकिन कक्षा ख़त्म होने के बाद अध्यापक के पीछे भक्तिपूर्वक चलते हुए
कुछ सुविधाजनक सवाल पूछने जैसी अनेक दूसरी चापलूस हरकतों से आप
अनायास बचते जाते हैं

ठीक है कि कुछ बेधक सवाल इस बीच आपको लगातार आहत करते गए जो
घर और स्कूल दोनों जगहों से उठे थे लेकिन
बोर्ड परीक्षाओं के दिन भी आते हैं और
वहाँ आपके साथ अलग से अन्याय नहीं होता

अपनी आवारगी और चंचलता से संतुष्ट एक प्रसन्न बेचैनी में कुछ पढते हुए
एक दिन आप पाते हैं कि सिर्फ़ हिम्मत से काम लेने की अलबेली आदत ने
आपको कुछ प्रमेयों रासायनिक समीकरणों बीजगणितीय सूत्रों कुछ
अंग्रेज़ी संस्कृत हिन्दी कविताओं का ख़ास विशेषज्ञ बना दिया है
एक बौद्धिक मुश्किल में स्मृति साथ दे रही है आपकी
हैण्डराइटिंग में ईमान झलमलाता है
आप क्षमताओं का स्वस्थ इस्तेमाल करते हैं
दयनीय महत्वाकांक्षाओं की काटपीट उत्तरपुस्तिका में नहीं आपकी
फिर पास तो लगभग सब हो जाते हैं लेकिन इस तरह भागते हुए पास होने में
विजय है और जितने नंबर मिले उन्हीं से संतुष्ट होने का अद्वितीय एहसास


(महान फ़िल्मकार अकीरा कुरोसावा के पहले स्कूली अनुभव और भगोडे हमसफ़र हिमांशु पाण्डेय के
लिए, सादर)

सत्तर का दशक

सिगरेट कुर्ता जीन्स पैदल कविता
मीसा डीआईआर दिनमान
आर डी बर्मन
उसकी सहजता प्राण है १
साफ़ और सादा
चमक आज भी बाक़ी
दिखता है दूर से
उसकी रंगीन फ़िल्मों का ब्लैक एण्ड व्हाइट
ऋषिकेश मुखर्जी में विमल राय संजीव कुमार में गुरुदत्त डेविड में गाँधी
झलकते हैं
आँसू से नहाए हुए पवित्र हैं पूरे दस साल
कैलेण्डर की हर तारीख़ बाक़ी की दोस्त
कुछ भी पूरी तरह भूला नहीं गया
यादें हैं बीत गए की और हो रहा भी जैसे यादों में हो रहा है
अमिताभ की ठाँय-ठाँय सच नहीं मनोरंजन
ओछापन हाशिये पर तब
और हिन्दी की मुख्यधारा थी
और नदियों की मुख्यधारा थी और उनको कोई
एक दूसरे से जोड देने का आदेश नहीं दे रहा था
भटक गया मैं राह पैदा हुआ अस्सी में
८४ वेᆬ बाद मुझे लगातार कम अच्छा लगता गया
अफ़सोस अपमान ने अंधा किया
सत्तर की कमियाँ दिखती नहीं वहीँ रहने का मन
एक चिट्ठी एक साइकिल एक भटकन एक भूख हडताल में

१. शमशेर बहादुर सिंह की काव्यपंत्तिᆬ



और यह कवि की पसंद

क्या पहले ख़त्म हुआ


एक बहुत पुराना आडियो कैसेट बज रहा है। उसकी घरघराहट में से निकलती है पुरानी पीली बस, जो लोगों को यहाँ से वहाँ पहुंचती है और बहुत कम पैसे लेती है। उसकी घरघराहट में से निकालता है एक मेहनतकश कारीगर, जिसके कंधे पर हर शाम ईमान की धूल बैठ जाती है और उसकी शर्ट से होकर पृथ्वी पर बिखरती रहती है। उसकी घरघराहट में से निकलती है एक पुरानी मोटी किताब, जिसका नाम है पब्लिक सेक्टर इन इंडिया, जिसके पन्नों पर रोज़गार देने वाले कारखानों की तस्वीरें छपी रहती हैं उसके पन्नों पर एक वाक्य छपा रहता है जो बडी-बडी मशीनों को आधुनिक भारत का मंदिर बताता है। एक बहुत पुराने ऑडियो कैसेट की घरघराहट में से निकलता है एक गुलाब का फूल। उसी घरघराहट में से उठती है आवाज़, गुलाब के फूल को ललकारती हुई, अबे,सुन बे गुलाब!


उसी बहुत पुराने ऑडियो कैसेट में एक मज़दूर नेता आमरण अनशन के बारहवें दिन सामने खडे अपार जनसमूह को एक सोचती हुई आवाज़ में पुकारता है। आसन्न स्थितियों पर काबू पाने के लिए पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जिन बहुत से सिपाहियों को राज्य ने उस जगह खडा किया है उनकी चेतना पर भी उस सोचती हुई आवाज़ का बुख़ार चढ गया है। वे सिपाही भी मज़दूरों का समूह हो रहे हैं। उनमें से कई तो मज़दूर हो भी गए हैं।


ऑडियो कैसेट की घरघराहट के भीतर ही मुख्यमंत्री अनशनरत मज़दूर नेता को गिरफ़्तार कराने के लिए फैक्ट्री मालिक से घूस ले लेता है और डिज़िटल म्यूज़िक के इस ज़माने में तय करना मुश्किल है कि ऑडियो कैसेट की घरघराहट पहले ख़त्म हुई कि मज़दूरों का आन्दोलन।

टिप्पणियाँ

व्‍योमेश भाई को बधाई। अगर उनकी वह कविता भी यहां दे पाते जिस पर भारत भूषण अग्रवाल पुरस्‍कार मिला है तो बेहतर होता। उनकी कविता में समकालीन राजनैतिक चेतना की उपस्थिति है1
बोधिसत्व ने कहा…
व्योमेश को बधाई.....
व्योमेश शुक्ल को बधाई ! उनकी कविता ‘चैदह भाई-बहन’ और ‘लेकिन यानी इसलिए’ हमेशा याद रह जाने वाली कविताएँ लगती हैं।
Dr Subhash Rai ने कहा…
व्‍योमेश को बधाई
rashmi ravija ने कहा…
व्योमेश जी को बहुत बहुत बधाई....सारी कविताएँ बहुत अच्छी हैं...बार-बार पढने लायक.
बेनामी ने कहा…
बधाई व्योमेश को नहीं तुम्हें मिलनी चाहिए। अब तुम नहीं पूछोगे कि व्योमेश की राजनीति क्या है ? और उसकी लेखकीय पक्षधरता और ईमानदारी क्या है ? अशोक वाजपेयी ने अपनी ही पत्रिका के संपादक को पुरस्कार से नवाज दिया तो तुम इस बात को दबा कर उन्हें बधाई ही दोगे। इतनी कम समय में व्योमेश ने जो राजनीतिक-अराजनीतिक गुल खिलाएं हैं उसका भी कोई ब्यौरा दोगे पाण्डे ? बेशर्म। पाखण्डी।
Ashok Kumar pandey ने कहा…
बेनामी महोदय, काश आपने नाम लिखा होता। मैं फिर भी आपके गुस्से को जायज समझता अगर आप गाली-गलौज़ पर नहीं उतरते। जो आपने कहा वह सच का एक पक्ष है और यह दूसरा कि जो लोग रेस में थे उनमें व्योमेश बेहतर कवि हैं…उनकी राजनीति मैं ज़रूर पूछता हूं, पर सीधे अपने नाम से। उसके लिये मुझे बेनामी नहीं बनना पड़ता।गीत, व्योमेश और दूसरे कई मित्रों से मेरी असहमतियां हैं…गहरी हैं…लेकिन इसके चलते मैने कोई ब्लैकलिस्ट नहीं बनाई, और इन्हें मैं अपनी पीढ़ी के महत्वपूर्ण लेखक मानता हूं। अगर मुक्तिबोध और अज्ञेय में, नेरुदा और बोर्हेस में संवाद हो सकता है तो मेरा और इनका क्यूं नहीं। जब जो सही-ग़लत लगा सीधे-सीधे कहा। मुमकिन है ऐसे ही कभी आपकी किसी रग पर भी हाथ रखा हो जिसकी पीड़ा अब और ज़्यादा गहरी होकर उफन आयी है।बात जब उस राजनीति की होगी तो उस पर भी उतना ही तीखा प्रतिवाद होगा जैसा पंकज बिष्ट-सबद मामले पर हुआ।

पुरस्कार कब-कब किस-किस को किन वज़हों से दिये गये…यह किसी से छुपा नहीं है।
अजेय ने कहा…
badhai.
kavitayen padh kar tippane karoonga.
प्रदीप कांत ने कहा…
व्योमेश को बधाई.....

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अलविदा मेराज फैज़ाबादी! - कुलदीप अंजुम

रुखसत हुआ तो आँख मिलाकर नहीं गया- शहजाद अहमद को एक श्रद्धांजलि

ऐनी सेक्सटन की कविताएँ : अनुवाद - अनुराधा अनन्या