कविता समय सम्मान- २०१२ से सम्मानित कवि इब्बार रब्बी की एक पुरानी कविता
इस वर्ष का कविता समय सम्मान वरिष्ठ कवि इब्बार रब्बी को दिया गया है. सम्मान की घोषणा के साथ चयन समिति ने लिखा है 'इब्बार रब्बी की कविता हाशिये के पक्ष में खड़ी ऐसी कविता है जो खुद के लिये ‘केन्द्रीय’ महत्व नहीं चाहती; कमजोर के हक़ काम करती है लेकिन ‘शक्ति केंद्र’ की तरह बर्ताव नहीं करती और सामाजिकता से अपना जीवन-द्रव्य पाने के बाद खुद कवि के व्यक्तित्व का लापरवाह प्रदर्शन नहीं बन जाती। हाशिये पर रहने की; खुद को ही दृश्य मानने, मनवाने से लगातार बचने की कठिन नैतिकता के लिये इब्बार रब्बी की कविता को कविता समय सम्मान 2012 से सम्मानित करते हुए ‘कविता समय’ सम्मानित महसूस करता है।'
इस अवसर पर असुविधा पर प्रस्तुत है उनकी एक बहुचर्चित पुरानी कविता...वर्षों पहले इसे पढते हुए ही रब्बी साहब से पक्की दोस्ती हुई थी...
भागो
दुनिया के बच्चो
बचो और भागो
वे पीछे पड़े हैं तुम्हारी
खाल खींचने को
हड्डियाँ नोचने को
बड़े तुम्हें घेर रहे हैं
हीरे की तरह जड़ रहे हैं
ठोक-पीट कर कविता में
बच्चो, पेड़, चिड़ियो
रोटी और पहाड़ो
भागो
क्रान्ति तुम छिपो
हिन्दी के कवि आ रहे हैं
काग़ज़ और क़लम की सेना लिए
भागो जहाँ हो सके छिपो।
* इस वर्ष कविता समय युवा सम्मान से सम्मानित प्रभात की कविताएँ इसके बाद....पूरी सूचना यहाँ पढ़ें.
टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर बालकविता है यह तो!
भागो
क्रान्ति तुम छिपो
हिंदी के कवि आ रहे हैं
कागज और कलम की सेना लिए
भागो जहाँ हो सके छिपो ! वाह ..गज़ब चुटीला पैना व्यंग्य :) इतनी सादा और शानदार अभिव्यक्ति..रब्बी साहब की यह कविता पढवाने के लिए हार्दिक आभार भाई !
कविता समय सम्मान के लिये कवि को बधाई....