मौसम निरंकुश तानाशाह है हमारे लिए - रुपाली सिन्हा
जाड़े का मौसम हमारे वांग्मय में सुखमय मौसम की तरह आता है. जीवेत शरदः शतम्! सुविधासंपन्न लोगों के लिए आनंद का अवसर. उत्तर प्रदेश के सचिव कहते हैं कि 'ठण्ड से कोई नहीं मरता'. सच भी है कि जिन्हें सरकारें मनुष्य मानती हैं वह वर्ग ठण्ड से मर ही नहीं सकता. मरते वे हैं जिन्हें वह मनुष्य मानती ही नहीं. जिन्हें बोझ समझा जाता है. जो अवांछित हैं. आख़िर देश भर से विस्थापित हो महानगरों में दो रोटी कमाने आये लोग हों या मुजफ्फरपुर के राहत शिविरों में रह रहे लोग, इन्हें जनता की परिभाषा में कब शामिल करती हैं सरकारें. फिर उनके मरने की फ़िक्र भी क्यों हो किसी को?लेकिन कवि की फ़िक्र की परिधि सरकारों की परिधियों सी तो नहीं हो सकती...रुपाली सिन्हा की यह कविता उन परिधियों का विस्तार करती है. उस दुनिया को देखने और उसका किस्सा कहने की कोशिश जो हर मुख्यधारा से विस्थापित है. और यह कहते हुए पाश से बेहतर कौन सा कन्धा हो सकता था सिर टिकाने को?
मुजफ्फरपुर के राहत शिविर से दक्कन हेराल्ड में छपा एक फोटो |
मौसम की मार
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पाश!
मौसम की मार
सबसे खतरनाक होती है
हमारे
लिए
जिनकी
रातें बीतती हैं आकाश के साये में
रात
जिन पर जी भर बरसाती
है कहर
पाश!
यह मौसम अमीरों का है
यों
तो गरीबों का कोई मौसम नहीं होता
उन्हें
तो लड़नी है लम्बी लड़ाई
अपने
खुशगवार मौसमो के लिए
फिलहाल
मौसम
कि मार बहुत खतरनाक
है पाश!
जब
दुश्मन दिखाई नहीं देता सामने
और
भाग्य उसका मजबूत
वकील बन जाता है
खतरनाक
होती है उसकी दलीलें
मौसम
की मार किसी षड़यंत्र की तरह होती है
जब
सूरज भी दे जाता है दगा
और
चाँद की कुटिल विद्रूपता
उसके
चेहरे को और भी टेढ़ा बना देती है
एक
ही मौसम कुछ के लिए सौगात
कुछ
के लिए मौत का सामान?
मौसम
निरंकुश तानाशाह है हमारे लिए
मुर्दा
शांति से भरना
बुरा
होता है पाश!
पर
तुमने कभी यह सोचा है
हमारी
धमनियों का रक्त
क्यों
जम जाता है ?
बेहतर
दुनिया का ख़्वाब देखने वाली
हमारी
आँखे पत्थर क्यों बन जाती है?
हमारी
आँखे इस दुनिया को
मुहब्बत
से चूमना नहीं चाहतीं
हमें
इस दुनिया पर
प्यार
नहीं आता.
रुपाली सिन्हा
छात्र जीवन से ही रेडिकल वाम से जुड़ीं रुपाली इन दिनों दिल्ली में रहती हैं. पत्र-पत्रिकाओं में अनेक कविताएँ तथा आलेख प्रकाशित. स्त्री मुक्ति संगठन में सक्रिय.
संपर्क : rssinharoopali@gmail.com
टिप्पणियाँ
पाठक-मन को अपनी संवेदना से कुशलता के साथ जोड़ती इस कविता के लिए रूपाली सिन्हा को हार्दिक बधाई |
अच्छी कविता है भाई
क्योँ भूल जाते हैं ऎ नेता कि कहाँ से आऎ हैं और किसने चुना??
क्या सच्ची में सत्ता और शक्ति समभालना काफी मुश्किल है??
क्यों झूठे वादे और तसल्लिया देते हैं ऎ नेता??
क्यों आते हैं ऎसे प्रश्न मन में,,??
कुछ नहीं बस ऎसे ही,,,,,,
बेहद सजीव वा सुन्दर कविता,,,
यथार्थ,,,
काश! हमारे नेताओं को थोड़ी सी मानवता की समझ होती.