गुस्से में लिखी एक कविता
इन दिनों बेहद मुश्किल में है मेरा देश
दरवाज़े की कोई भी खटखट हो सकती है उनकी
ज़रूरी नही कि रात के अंधेरों ही में हो उनकी आमद
किसी भी वक़्त हमारी ज़िंदगी में
उथल-पुथल मचा सकती है उन बूटों की आवाज़
इन दिनों संविधान की तमाम धारायें संवेदनशील हैं
कविताओं के बाहर बोलने पर
मंदिरों की तरह है देश की सुरक्षा इन दिनों
ज़रूरी नहीं कि हथियार हों आपके हाथों में
उनकी बन्दूक़ों के सामने अप्रस्तुत होना पर्याप्त है
पर्याप्त हैं अख़बार की कुछ कतरनें
फुटपाथ से ख़रीदीं कुछ किताबें
लिख दिया गया कोई सपना- गा दिया गया कोई गीत
पूछा गया एक असहज प्रश्न
यहां तक कि किसी दोस्त की लाश पर गिरा एक आंसू भी
इन दिनों बेहद मुश्किल में है मेरा देश
जितना अभी है कभी ज़रूरी नहीं था विकास
जितने अभी हैं कभी उतने भयावह नहीं थे जंगल
जितने अभी हैं कभी इतने दुर्गम नहीं थे पहाड़
कभी इतना ज़रूरी नहीं था गिरिजनों का कायाकल्प
इन दिनों देशभक्ति का अर्थ चुप्पी है और सेल्समैनी मुस्कराहट
कुछ भी असंगत नहीं चाहते वे इस आपातकाल में!
टिप्पणियाँ
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कविता उद्वेलित करती है ...
कुछ भावनाओं को आपने शब्द दे दिए... मसलन...
कविताओं के बाहर बोलने पर
मंदिरों की तरह है देश की सुरक्षा इन दिनों
इन दिनों देशभक्ति का अर्थ चुप्पी है और सेल्समैनी मुस्कराहट
बिल्ली की तरह
दबे पावँ
चुपचाप आता है
एक तानाशाह!
http://sanchika.blogspot.com/2009/03/blog-post_30.html
http://sanchika.blogspot.com/2009/03/blog-post_30.html
इशारे से ही कहो
अगर शब्दों का उपयोग भी किया
कहा की चुप रहो
मारे जाने का खतरा है !
achhi kavita.
कविता ने इसकी नव्ज़ पकड़ी है और
विवशता को सबब दिया है...
सच!
जितना अभी है कभी ज़रूरी नहीं था विकास
जितने अभी हैं कभी उतने भयावह नहीं थे जंगल
जितने अभी हैं कभी इतने दुर्गम नहीं थे पहाड़
कभी इतना ज़रूरी नहीं था गिरिजनों का कायाकल्प
और यहाँ प्रदर्शीत हो रहा है अन्याय के खिलाफ आपका आक्रोश....!! ये गुस्सा सब में बना रहे तो शायद कहीं कुछ परिवर्तन हो....!!
वर्तमान स्थिति का गहन अवलोकन .
सफल कविता.
शब्दों से झलकता आक्रोश ही पर्याप्त था ये कहने को कि कविता गुस्से में लिखी गयी है।
जायज़ और सही है !!अच्छी लगी कविता!!