प्रतिभा कटियार की कवितायें
काफी आग्रहों के बाद प्रतिभा कटियार ने अपनी कवितायें भेजीं भी तो मेल का विषय लिखा- एक अकवि की कवितायें… लेकिन उनकी कवितायें और आलेख पढ़ते हुए मुझे तो वह हमेशा ही एक आदमक़द रचनाकार लगी हैं। आप भी पढ़िये और बताईये…
वही बात
उनके पास थीं बंदूकें
उन्हें बस कंधों की तलाश थी,
उन्हें बस सीने चाहिए थे
उनके हाथों में तलवारें थीं,
उनके पास चक्रव्यूह थे बहुत सारे
वे तलाश रहे थे मासूम अभिमन्यु
उनके पास थे क्रूर ठहाके
और वीभत्स हंसी
वे तलाश रहे थे द्रौपदी.
उन्होंने हमें ही चुना
हमें मारने के लिए
हमारे सीने पर
हमसे ही चलवाई तलवार
हमें ही खड़ा किया खुद
हमारे ही विरुद्ध
और उनकी विजय हुई हम पर.
उन्होंने बस इतना कहा
औरतें ही होती हैं
औरतों की दुश्मन, हमेशा...
बंद रहने दो दरवाजा
मत खोलो उस दरवाजे को
मैं कहती हूं मत खोलो
देखो न हवाएं कितनी खुशनुमा हैं
और वो चांद मुस्कुराते हुए
कितना हसीन लग रहा है.
मैं कहती हूं मत खोलो
देखो न हवाएं कितनी खुशनुमा हैं
और वो चांद मुस्कुराते हुए
कितना हसीन लग रहा है.
अभी-अभी गुजरा है जो पल
तुम्हारे साथ
भला उससे सुंदर और क्या होगा
इस जीवन में.
तुम्हारे साथ
भला उससे सुंदर और क्या होगा
इस जीवन में.
ना, देखो भी मत
उस दरवाजे की ओर
ध्यान हटाओ उधर से
इस खूबसूरत इमारत को देखो
इसके मेहराब, रंग
इसकी बनावट
मुश्किल है कहीं और मिले.
उस दरवाजे की ओर
ध्यान हटाओ उधर से
इस खूबसूरत इमारत को देखो
इसके मेहराब, रंग
इसकी बनावट
मुश्किल है कहीं और मिले.
आओ यहां, बैठो
यहां से दुनिया बहुत हसीन दिखती है
वो तस्वीर, उसके रंग
किस कदर खिले हैं ना.
यहां से दुनिया बहुत हसीन दिखती है
वो तस्वीर, उसके रंग
किस कदर खिले हैं ना.
नीला...यही रंग पसंद है ना तुम्हें
आकाश सा नीला...समंदर सा नीला...
नीला ही रंग है इस तस्वीर का
आकाश सा नीला...समंदर सा नीला...
नीला ही रंग है इस तस्वीर का
हां, उधर भी देखो वो नया-नया सा
फूल खिल रहा है बगीचे में
उसका रंग ही नहीं, खुशबू भी बहुत अच्छी है
तुम्हें पसंद है ना...?
फूल खिल रहा है बगीचे में
उसका रंग ही नहीं, खुशबू भी बहुत अच्छी है
तुम्हें पसंद है ना...?
वो आसमान देखो,
कितना विस्तार है उसके पास
कोई अंत नहीं इसका
हमारी इच्छाओं की तरह,
हमारे सपनों की तरह.
कितना विस्तार है उसके पास
कोई अंत नहीं इसका
हमारी इच्छाओं की तरह,
हमारे सपनों की तरह.
मत देखो उस दरवाजे की ओर...
उस दरवाजे के पीछे
हम स्त्रियों ने छुपा रखा है मौन,
सदियों से सहेजा हुआ मौन
जिसके बाहर आते ही
आ जायेगा तूफान इस दुनिया में.
हम स्त्रियों ने छुपा रखा है मौन,
सदियों से सहेजा हुआ मौन
जिसके बाहर आते ही
आ जायेगा तूफान इस दुनिया में.
टूटेगा जब यह मौन,
तो मच जायेगा हाहाकार
ढह जायेंगी खूबसूरत इमारतें,
विकृत होने लगेंगे सुंदर चेहरे.
तो मच जायेगा हाहाकार
ढह जायेंगी खूबसूरत इमारतें,
विकृत होने लगेंगे सुंदर चेहरे.
फूल सारे गायब हो जायेंगे कहीं और
कांटों का बढऩे लगेगा आकार.
आकाश और समंदर नहीं,
जख़्म ही नीले नज़र आयेंगे तब.
कांटों का बढऩे लगेगा आकार.
आकाश और समंदर नहीं,
जख़्म ही नीले नज़र आयेंगे तब.
आह के समंदर में बह जायेगी धरती,
तो मान लो मेरी बात
रहने दो इस धरती को सुरक्षित.
बचा लो खुशियां अपनी
और छुपा रहने दो मौन
उस दरवाजे के पीछे,
मत खोलो उस दरवाजे को.
हालांकि उस दरवाजे के
टूट जाने का वक्त तो आ ही चुका है.
रहने दो इस धरती को सुरक्षित.
बचा लो खुशियां अपनी
और छुपा रहने दो मौन
उस दरवाजे के पीछे,
मत खोलो उस दरवाजे को.
हालांकि उस दरवाजे के
टूट जाने का वक्त तो आ ही चुका है.
फासलों के बीच प्रेम
न आवाज़ कोई, न इंतजार
वैसे, इतना बुरा भी नहीं
फासलों के बीच
प्रेम को उगने देना
वैसे, इतना बुरा भी नहीं
फासलों के बीच
प्रेम को उगने देना
अनकहे को सुनना,
अनदिखे को देखना
फासलों के बीच भटकना.
अनदिखे को देखना
फासलों के बीच भटकना.
आवाजों के मोल चुकाने की ताकत
अब नहीं है मुझमें
न शब्दों के जंगल में भटकने की.
अब नहीं है मुझमें
न शब्दों के जंगल में भटकने की.
न ताकत है दूर जाने की
न पास आने की.
न पास आने की.
बस एक आदत है
सांस लेने की और
तीन अक्षरों की त्रिवेणी
में रच-बस जाने की.
तुम्हारे नाम के वे तीन अक्षर...
सांस लेने की और
तीन अक्षरों की त्रिवेणी
में रच-बस जाने की.
तुम्हारे नाम के वे तीन अक्षर...
खतरा प्रेम से
किस कदर उलझे रहते हैं
वे एक-दूसरे में,
किस कदर तेज चलती हैं
उनकी सांसें
वे एक-दूसरे में,
किस कदर तेज चलती हैं
उनकी सांसें
किस कदर बेफिक्र हैं
वे दुनिया के हर खौफ से
वे दुनिया के हर खौफ से
कि दुनिया को उनसे
ही लगने लगा है डर,
ही लगने लगा है डर,
कि उन पर ही लगी हैं
सबकी निगाहें
वे कोई आतंकवादी नहीं,
न ही सभ्यताओं के
हैं दुश्मन
न उनके दिमाग में है
कोई षडयंत्र
फिर भी दुनिया को लग रहा
उनसे डर.
सबकी निगाहें
वे कोई आतंकवादी नहीं,
न ही सभ्यताओं के
हैं दुश्मन
न उनके दिमाग में है
कोई षडयंत्र
फिर भी दुनिया को लग रहा
उनसे डर.
पंचायतों की हिल गई हैं चूलें
पसीने आ रहे हैं
समाज के मसीहाओं के
कैसे रोकें वे उन दोनों को.
कैसे उलझायें उन्हें दूसरे कामों में
कि उनकी दिशायें ही बदल जायें
पसीने आ रहे हैं
समाज के मसीहाओं के
कैसे रोकें वे उन दोनों को.
कैसे उलझायें उन्हें दूसरे कामों में
कि उनकी दिशायें ही बदल जायें
कौन से जारी किये जाएं फरमान
कि खत्म हो सके उनका प्रेम
कि खत्म हो सके उनका प्रेम
कितने खतरनाक हैं
वे इस दुनिया के लिए, सचमुच?
वे इस दुनिया के लिए, सचमुच?
- प्रतिभा कटियार
टिप्पणियाँ
namaskar !
sunder abhivyakti . badhi
pandey jee ka bhi aabhar hum tak pahuchane ke liye .
punah badhai
saadar !
धन्यवाद
कब तलक बंद रखें दरवाजा?
फासलों के बीच कितना सारा प्रेम!
ख़तरा प्रेम से ... हर यूग में खौफ खाती रही है दुनिया प्रेम से...
सुन्दर अभिवय्क्ती!!
सचमुच आदमकद!
बेहतरीन रचनाएं .