फ़रीद ख़ान की कवितायें
इस बार असुविधा में फरीद खान की कवितायें..युवा कवि फ़रीद ने पिछले कुछ समय में अपनी कविताओं से सबका ध्यान खींचा है. उनकी कवितायों में एक ख़ास तरह का टटकापन है जो उनके रंगकर्म से और समृद्ध हुआ दीखता है..
बाघ
मुझे उम्मीद है कि
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए,
बाघ बन जायेगा कवि,
जैसे डायनासोर बन गया छिपकली,
और कवि कभी कभी बाघ।
वह पंजा ही है जो बाघ और कवि को लाता है समकक्ष।
दोनों ही निशान छोड़ते हैं।
मारे जाते हैं।
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वह कुछ बोल नहीं सका।
चार साल थी उसकी उम्र,
जब उसके पिता का देहांत हुआ।
घर में लाश रखी थी।
अगरबत्ती का धुँआ सीधे छत को छू रहा था।
लोग भरे थे ठसा ठस।
वह सबकी नज़रें बचा कर,
सीढ़ियों से उतर कर
बेसमेंट में खड़ी पापा की स्कूटर के पायदान पर बैठ जाता था।
स्कूटर पोंछता और
पोंछ कर ऊपर चला आता।
मुझे पता नहीं, उसे मरने के मतलब बारे में पता था या नहीं।
लेकिन मौत के बाद बदलते समीकरण को
उसने उसी उम्र में देख लिया था।
जो रो रहे थे, वे रो नहीं रहे थे।
क़ुरान की तेलावत की भिन भिन करती आवाज़ों के
ख़ामोश मध्यांतर में,
चाभियों, वसीयत, जायदाद, खाते और इंश्योरेंस का महत्व बढ़ गया।
दफ़्न के बाद
वह खड़ा रह गया अकेला अपनी विधवा माँ के साथ
बाढ़ के बाद धुल चुके घर के बीच।
कुछ भी रोक नहीं सका।
वह कुछ बोल नहीं सका।
अभिव्यक्ति का अभ्यास नहीं था उसका।
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मुम्बई में
मुम्बई में चलते हुए पैरों के नीचे सूखे पत्ते नहीं पड़ते।
यहाँ पतझड़ नहीं हुआ करते।
यहाँ नमी है नमक है।
गुलाबी होंठ वाली साँवली सी लड़की
आँखों में डूब जाने को करती है प्रेरित।
और अनायास याद आती है गंगा
जो ऊँचाई से छलांग लगा देने का देती थी आमंत्रण।
यहाँ समुद्र आपके पैर धोता है।
और बारिश !!!
यहाँ कभी भी हो सकती है बारिश।
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नज़रबन्द
1
आईने में बने मेरे बिम्ब के पीछे से कोई झांकता है,
पलटो तो कमरा शांत और निरुपाय।
मानो दीवारों, पर्दों ने साज़िश की है उसे छिपाने की।
जबकि मेरा लोगों के बीच जाना छूट गया है,
और सिमट गया हूँ अपने छोटे से कमरे तक।
मेरे छोटे से रौशनदान से,
जिससे कभी कभी आ जाती है हवा गुज़रते हुए,
मुझे दीखता है दूर एक नक्षत्र।
2
आती है रौशनी उस रौशनदान से।
छोटी सी दीवार की जगह घेरते हुए,
स्पॉट लाईट की तरह,
आती है रौशनी उस रौशनदान से।
जैसे लगता है बस,
नाटक शुरु होने वाला है।
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अगर लोग इंसाफ़ के लिए तैयार न हों।
और नाइंसाफ़ी उनमें विजय भावना भरती हो।
तो यक़ीन मानिए,वे पराजित हैं मन के किसी कोने में।
उनमें खोने का अहसास भरा है।
वे बचाए रखने के लिए ही हो गये हैं अनुदार।
उन्हें एक अच्छे वैद्य की ज़रूरत है।
वे निर्लिप्त नहीं, निरपेक्ष नहीं,पक्षधरता उन्हें ही रोक रही है।
अहंकार जिन्हें जला रहा है।
मेरी तेरी उसकी बात में जो उलझे हैं,उन्हें ज़रूरत है एक अच्छे वैज्ञानिक की।
हारे हुए लोगों के बीच ही आती है संस्कृति की खाल में नफ़रत।
धर्म की खाल में राजनीति।
देशभक्ति की खाल में सांप्रदायिकता।
सीने में धधकता है उनके इतिहास।
आँखों में जलता है लहू।
उन्हें ज़रूरत है एक धर्म की।
ऐसी घड़ी में इंसाफ़ एक नाज़ुक मसला है।
देश को ज़रूरत है सच के प्रशिक्षण की।
और नाइंसाफ़ी उनमें विजय भावना भरती हो।
तो यक़ीन मानिए,वे पराजित हैं मन के किसी कोने में।
उनमें खोने का अहसास भरा है।
वे बचाए रखने के लिए ही हो गये हैं अनुदार।
उन्हें एक अच्छे वैद्य की ज़रूरत है।
वे निर्लिप्त नहीं, निरपेक्ष नहीं,पक्षधरता उन्हें ही रोक रही है।
अहंकार जिन्हें जला रहा है।
मेरी तेरी उसकी बात में जो उलझे हैं,उन्हें ज़रूरत है एक अच्छे वैज्ञानिक की।
हारे हुए लोगों के बीच ही आती है संस्कृति की खाल में नफ़रत।
धर्म की खाल में राजनीति।
देशभक्ति की खाल में सांप्रदायिकता।
सीने में धधकता है उनके इतिहास।
आँखों में जलता है लहू।
उन्हें ज़रूरत है एक धर्म की।
ऐसी घड़ी में इंसाफ़ एक नाज़ुक मसला है।
देश को ज़रूरत है सच के प्रशिक्षण की।
परिचय :- पले बढ़े पटना में। पटना विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में एम. ए.। तक़रीबन 12 वर्षों तक इप्टा पटना में सक्रिय रहे। भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ से नाट्यकला में दो साल का प्रशिक्षण लिया। अभी मुम्बई में व्यवसायिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय।
सम्पर्क - kfaridbaba@gmail.com
टिप्पणियाँ
दोनों ही निशान छोड़ते हैं। मारे जाते हैं।
सारी की सारी बहुत ही उम्दा कविताएँ हैं.
अच्छी,सरल कविताएँ
नहीं उदास नहीं
नहीं नाराज भी नहीं
हाँ थोडा इतिहास जरुर है
नहीं जल भी नहीं रहे हैं
ठुके-पिटे बर्तन सा मजबूर तो हैं
इसी दुनिया में रहना है
चुपचाप मजबूरी किसी से लय मिला लेती है
बेशक कवि मारा जाता है बाघों की तरह
निशान तो राहों से उठ कर बोला करते हैं ...
सभी कवितायें सरल भाषा व भाव गाम्भीर्य के साथ अभिव्यक्त हुई हैं... फरीद जी को सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये....
आपको धन्यवाद!!
padhwane ke liye
dhanyawad.
gahan anubhutiyan abhivyakt hui hain!