मुसदिक़ हुसैन की कविताएँ
वीर मुंशी की पेंटिंग गूगल से |
मुसदिक़ हुसैन की कविताएँ
अनुवाद : अशोक कुमार पाण्डेय
कश्मीर में होना ही एक परिचय है इन दिनों. अपनी पहचान और
राष्ट्रीयता के बहुसंस्तरीय संकटों में उलझा लल द्यद और शेख़ नुरूद्दीन का यह
प्रदेश आज हब्बा खातूनों की आर्त पुकारों का देश है, कई कई रंग की बंदूकों के साए
में पलता. श्रीनगर में रहने वाले मुसदिक़
अभी-अभी अठारह के हुए हैं और बारहवीं की परीक्षा पास की है. अपने हमउम्र युवाओं की
तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. उनके
फेसबुक पेज़ ‘एम के’ के अलावा अंग्रेज़ी में लिखी उनकी कविताएँ पहल के माध्यम से
पहली बार किसी प्रिंट माध्यम में छपी हैं. वहाँ से साभार
1- तुम्हारी
आत्मा को शांति मिले
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अँधेरों
मे और आगे
जहां
आसमान किसी पुराने-जर्जर निगेटिव सा लगने लगता है
उम्मीदों
के साहिल पर मैंने इंतज़ार अकेले किया –
एक
क्लाइमैक्स मेरी अंतड़ियों मे डूबता है।
मैं
आने जाने वालों की अर्थहीन आवाज़ें सुनता हूँ
लेकिन
मेरी आँखें प्रतिध्वनियों से धुंधली हुई जाती हैं
आरिफ़-आरिफ़-आरिफ़
शौक़त-शौक़त-शौक़त
राख़
मे बदलता जाता है मेरा हृदय।
2- स्वर्ग
कड़वा हो गया है
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बर्फ़ीले
पहाड़, फैली हरियाली
कश्मीर
है यह
स्वर्ग
कहते हैं हम इसे।
आह...कैसे
नहीं देख पाते वे वह सब
जो
अपने सीने मे लिए फिरता है ये
गोलियां
चाक करती हैं इसे
मिर्च
की स्प्रे जाम करती है फेफड़े
एक
शिरा है लहू की जो जम गई है
ज़िबह, हत्या क्या क्या नहीं हुआ इसके साथ
खो
गए या खो रहे हैं
तुफ़ैल
वामिक समीर बुरहान
ज़ुबैर
इनायत ज़ाहिद बिलाल
आदिल इम्तियाज़ आरिफ़ आक़िब...
और
भी जाने कितने
अपने
पीछे आधी माओं और आधी विधवाओं को छोडकर ।
हमारे
हिममानव तक की देह पर ख़ून के धब्बे हैं ।
शाम
की हवा मे लोहे के जंग की महक है
भाई
आज
की शाम फिर से भर दो हुक्का
जब
तक लौ से बेखौफ परवाने की तरह
एक
और बार जल कर भष्म न हो जाऊँ मैं।
लेकिन
जानते हो तुम
अब
यहाँ थोड़ा कम उगती है केसर
उनसे
कह दो
स्वर्ग
अब कड़वा हो गया है।
3- बसंत
नज़दीक है
और
जब तुम्हारे बच्चे
रात
के अँधेरों मे डरकर
फिर
से जाग जाएँ मौज काशीर
अपनी
गोद मे ले लो उन्हें
और
आस बंधाओ
कि
बहुत दूर नहीं है अब
बसंत
का मौसम
4- चुप्पी
का रंग लाल है
इन्टरनेट
प्रतिबंधित
फिर
भी हमारे आसमान
आज़ाद
है
हमें
सिखाते हैं
चुप्पियों
की जबान मे बातें करना बेबाक
प्यारे
आततायी
कैसे
नहीं सुन पाते तुम
हमारी
चुप्पियों से उठते
सबसे
तेज़ नारे।
5- मिर्च
से भरी कश्मीर की गलियाँ
और
मेरी प्रिय
जब
हम फिर निकलें
काली
मिर्च के स्प्रे से भरी कश्मीर की गलियों मे
ढँक
लेना अपने प्रेम से मुझे
कि
न रुँधे मेरी सांसें
6- ज़िक्र
–ए-वतन
और
इससे पहले कि
मैं
कह सकूँ
अपनी
ज़मीन का क़िस्सा
आसमान
सुर्ख़ लाल हो गया है।
7- एक
लहूज़दा जन्नत
आज
बताना होगा तुम्हें
अपने
देश के बारे मे
जहां
रहते हो तुम
जाना
मैं
एक ऐसी धरती पर रहता हूँ
दिन
अँधेरे हैं जहां
और
रातें कर्फ़्यू की गिरफ्त मे
मैं
जहन्नुम की आग मे जलते
जन्नत
मे रहता हूँ
एक
लहूज़दा जन्नत मे
8-
आततायी
वह वादा करता है बहुत
जल्द चले जाने का
लेकिन चाहता है कि वे
उसे
केसर के दुनिया के
इकलौते बागीचे का
चौकीदार बना दें
वह संभालता है पद
लेकिन कभी नहीं निभाता
अपने वादे
वह अब उनके देश का शासक
है
और दुनिया के इकलौते
स्वर्ग मे
लिए जाता है उन्हें
नर्क की ओर।
9-
मौत ने जगाया मुझे
खामोश थी रात
आसमान तारों से भरा
यहाँ तक कि पिछली रातों
की तरह
कोई दुःस्वप्न भी नहीं
था मेरी आँखों मे
बहुत अरसा बाद साथ थे
हम
हमेशा के लिए ज़िंदगी के
लौट आने के
वादे करते हुए
हम दोनों खुश थे
वह और मैं
हवा मे भर गए रूमानी
गीत
सारी रात रही वह मेरी
पहलू मे
सच हो रहे थे मेरे
ख्वाब
लेकिन तभी जब पौ फटने
लगी
मौत ने जगाया मुझे
और जमा दिया हम दोनों
को सदा के लिए .
10-
हवा को जवाब देते हुए
रौशनी के शहर मे
एकांत के एक बेंच पर
हम साथ बैठते हैं
अपने हृदय से
मिटाते हुए सारी
सीमाएं...
अपने खामोश शब्दों को
हवा के हर सवाल का
जवाब देने देते हुए
संपर्क : kh.musadiq@gmail.com
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