अक्षत सेठ की दो कविताएँ


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से मीडिया स्टडीज़ में पीएचडी कर रहे अक्षत उन अर्थों में तो कवि एकदम नहीं हैं, जिन्हें सोशल मीडिया विस्फोट ने परिभाषित किया है. मसलन आप उनकी फेसबुक टाइमलाइन पर अक्सर कविता नहीं पाएँगे, साहित्य भी नहीं के बराबर. लेकिन अपने एक्टिविस्ट जीवन के भीतर उन्होंने उस कवि को लगातार जीवित रखा है जो बाहर ही नहीं भीतर की तलाश में भी विकल रहता है. इन दो कविताओं को पढ़ते हुए आप उनकी कविता की समझ में विन्यस्त जीवन की समझ के साथ-साथ एक बेचैन युवा की मुसलसाल यात्राओं की भी शिनाख्त कर पाएँगे. 


एक मिनट का मौन 

और वे कहते हैं 
'अब सब उनके सम्मान में एक मिनट का मौन धारण करेंगे'
एक मिनट का मौन
न जाने क्यों कई सारी आवाज़ें इस एक मिनट के मौन में ही सुनाई देने लगती हैं
जैसे अर्सों से खड़ी थीं प्रतीक्षारत
क़तारों में लगी कान दिए
कि कोई अदृश्य ढाल दरक जाए
और फिर एक के बाद एक
अपने हंगामों से भंग करतीं इस क्षण की गंभीरता, पवित्रता

कि वे कौन हैं जिनके लिए यह मौन है
उनके बोलने पर ऐसी सी होती थी क्या अनुगूँज?

नहीं दर्ज की पर लगता है ऐसी ही होगी
जैसी थी बचपन में........
पर बचपन में तो फूल देली होती थी
जिसमें हम अप्रैल फूल के दिन घरों में फूल लेकर जाते थे बताशा गुड़ मांगने
और अगले दिन स्कूल बस का इंतज़ार करते थे

बस की आवाज़
अब पहचानी जा रही है चूँकि हॉल में सब चुप हैं
उसके गुस्सैल ड्राइवर की आवाज़ चाबुक सी
धप्प से चढ़ते उतारते उन बच्चों की आवाज़
जिन्हें लडकियां घूरने का सलीका आ गया है
धत! हम यहाँ किसी की याद में मौन हैं
तो कहाँ था?
बस....

बस में साथ में स्कूल गया एक दोस्त
जिसने दसवीं में आत्महत्या कर ली

उसपर खूब पहले लिखी बचकानी सी कविता की आवाज़
अलमारी में दबी चिथड़ी सी डायरी में बमुश्किल
पर अचानक सारी धुल झाड़ उड़ आयी और धक् सी लगी


झिंझोड़कर खुद को हॉल के चजारों ओर नज़र दौड़ाई
हर झुकी नज़र के पीछे अचानक जीवंत कूदती फांदती आवाज़ों की आवाज़

तुम्हारी आवाज़
जो नहीं है
तुम्हारी आवाज़ इस विचारमाला के के दानों के बीच का
लगभग अदृश्य धागा है

और फिर समाप्त हुआ एक मिनट का मौन




तुम्हें प्रेम करना

सस्ती शराबों की महफ़िलों के  
धुओं में उठती भड़ास में 
तुम्हारा ज़िक्र लाने से मैं बचा 
किसी तरह 

हाँ, किसी तरह 
चूँकि जिसे भद्दे चुटकुलों की हँसी में उड़ा न सकें 
ऐसी बातों पर भी चीखना सीखते हैं हम
न कि उदास होकर रोना एकांत में 
तो सीख रहा हूँ पूरी गंभीरता से 
एस्कलेटर की उल्टी दिशा में हाँफते हुए सीढ़ियाँ चढ़ना 

पर हर वह चीज़ जो बाज़ारू मज़े की नहीं 
बन गयी है महान आदर्श 
मसलन प्यार करता हूँ मैं तुम्हें 
कभी उजली कभी थकान से सांवली तुम्हारी काया को 
तुम्हारी कठिन कोमल आवाज़ को 
तुम्हारी गंध सी प्रत्यक्ष सहजता और दृढ़ता को 
कैसे बनाऊँ तुम्हारी कोई अलग सी प्रकाशमान छवि 
कैसे बदल पाऊँ तुम्हारी चाही-अनचाही बेरुखी को सिगरेट से उन्नत किसी आग में!

जब गले लगाने से वंचित हाथों को 
मुट्ठियों में भींचकर 
तुम्हें दुत्कार देने को मन हो आता है कमसकम कल्पनाओं में 
जब खुद पर दया के अतिरेकों से घिर जाता हूँ 
तब थकान से लौटकर तुम आती हो 
मैं अपनी कसमसाहट पपड़ाये होठों की मुस्कान में लपेटकर तुम्हें चाय के लिए पूछता हूँ 
और सोचता हूँ जिन कामों से थकी-हारी आयी तुम 
अपनी प्राथमिकताओं के लिए प्रतिबद्ध हो 
चाहे उनमें वह भी है जो मैं नहीं 
पर वैसी सी कुछ प्राथमिकताएँ मेरी भी होंगी 

तब सारे उन्माद, क्षोभ और आत्मदया के बीच कहीं नीचे धंसी 
सुरंग में सुदूर किसी धुंधलके सी 
काँपती सी सहमी हुई एक आवाज़ आती है 
"तुम्हें प्रेम करना तुम्हें पाने से भी ज़्यादा उन्नत है"

बस चाहता हूँ 
कि जब ग्लेशियर पिघलने को हों 
और कुहासे जम जाएँ 
बिलकुल वैसी न हो तो भी 
वैसी सी काया 
वैसी सी दृढ़ता 
वैसी सी कोमलता लिए 
तुम साथ रहना!





टिप्पणियाँ

Basant ने कहा…
दोनों कविताओं में आवाज़ का एक अलग ही रूप। विसंगति के बीच संगति का एक तारतम्य है। कविताओं का किंचित अनगढ़ होना अलंकरण है। कविताओं की पंचलाइन गहरे स्पर्श करती है। कवि को और असुविधा को बधाई।
A.K.Arun,M.D.(Hom.) ने कहा…
असुविधा पर अक्षत ! बहूत ख़ूब ! लिखो,बोलो,गाओ,हल्ला मचाओ ! ज़िन्दाबाद !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-05-2019) को "देश और देशभक्ति" (चर्चा अंक- 3342) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Ashok Kumar pandey ने कहा…
धन्यवाद सर
शुभम ने कहा…
हृदयस्पर्शी
Pammi singh'tripti' ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 22 मई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
Sudha Devrani ने कहा…
तुम्हें प्रेम करना तुम्हें पाने से भी ज़्यादा उन्नत है"
वाह!!!
क्या बात है
बहुत ही लाजवाब
Sudha Devrani ने कहा…
तुम्हें प्रेम करना तुम्हें पाने से भी ज़्यादा उन्नत है"
बहुत ही लाजवाब रचनाएं
वाह!!!
Sudha Devrani ने कहा…
तुम्हें प्रेम करना तुम्हें पाने से भी ज़्यादा उन्नत है"
बहुत ही लाजवाब रचनाएं
वाह!!!

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