वो सोयेगा क्यों, जो है सबको जगाता : कविता में गाँधी
इंटरनेट से साभारगाँधी हमारे लोकजीवन में कुछ इस क़दर विन्यस्त हैं कि वह अपने होने से अधिक व्याप्त हैं. वह एक हकीक़त हैं तो एक मिथक भी जिनसे हम जो सीखना चाहते हैं सीख लेते हैं. उन पर हमलों के दौर में आज यहाँ कुछ कविताएँ और कुछ पेंटिंग्स जो उस व्याप्ति के आयामों को चिह्नित करती हैं. लोक से लेकर व्यालोक तक. जन से अभिजन तक. हकीक़त से मिथक तक, इन्हें सुनना बेहतर होगा कुछ बोलने से. जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
अभी उठके आये हैं,बज़्म-ए-दुआ से वतन के लिये, लौ लगाके ख़ुदा से टपकती है रूहानियत सी फ़ज़ा से चली जाती है, राम की धुन, हवा से दुखी आत्मा, शान्ति पा गई है जगाओ न बापू को, नींद आ गई है। ये घेरे है क्यों, रोने वालों की टोली ख़ुदारा सुनाओ न मन्हूस बोली भला कौन मारेग बापू को गोली कोई बाप के ख़ूं से, खेलेगा होली? अबस, मादर-ए-हिन्द, शरमा गई है जगाओ न बापू को, नींद आ गई है। मोहब्बत के झण्डे को गाड़ा है उसने चमन किसके दिल का, उजाड़ा है उसने? गरेबान अपना ही फाड़ा है उसने किसी का भला क्या, बिगाड़ा है उसने? उसे तो अदा, अम्न की भा गई है जगाओ न बापू को, नींद आ गई है। अभी उठके खुद वो, बिठायेगा सबको लतीफ़े सुनाकर, हंसायेगा सबको सियासत के नुक़्ते बतायेगा सबको नई रोशनी दिखायेगा सबको दिलों पर सियाही सी क्यों छा गई है? जगाओ न बापू को, नींद आ गई है। वो सोयेगा क्यों, जो है सबको जगाता कभी मीठा सपना, नहीं उसको भाता वो आज़ाद भारत का है, जन्म दाता उठेगा, न आँसू बहा, देस-माता उदासी ये क्यों, बाल बिखरा गई है जगाओ न बापू को, नींद आ गई है। वो हक़ के लिए, तन के अड़ जाने वाला निशां की तरह, रन में गड़ जाने वाला निहत्था, हुकूमत से लड़ जाने वाला बसाने की धुन में, उजड़ जाने वाला बिना, ज़ुल्म की जिससे,थर्रा गई है जगाओ न बापू को, नींद आ गई है। वो उपवास वाला, वो उपकार वाला वो आदर्श वाला , वो आधार वाला वो अख़लाक़ वाला, वो किरदार वाला वो मांझी, अहिन्सा की पतवार वाला लगन जिसकी, साहिल का सुख पा गई है जगाओ न बापू को, नींद आ गई है। कोई उसके ख़ू से, न दामन भरेगा बड़ा बोझ है, सर पर क्योंकर धरेगा चराग़ उसका दुशमन, जो गुल भी करेगा अमर है अमर, वो भला क्या मरेगा हयात उसकी, खुद मौत पर छा गई है जगाओ ना बापू को, नींद आ गई है। तुम काग़ज़ पर लिखते हो
तुम काग़ज़ पर लिखते हो
वह सड़क झाड़ता है तुम व्यापारी वह धरती में बीज गाड़ता है । एक आदमी घड़ी बनाता एक बनाता चप्पल इसीलिए यह बड़ा और वह छोटा इसमें क्या बल । सूत कातते थे गाँधी जी कपड़ा बुनते थे , और कपास जुलाहों के जैसा ही धुनते थे चुनते थे अनाज के कंकर चक्की पीसते थे आश्रम के अनाज याने आश्रम में पिसते थे जिल्द बाँध लेना पुस्तक की उनको आता था भंगी-काम सफाई से नित करना भाता था । ऐसे थे गाँधी जी ऐसा था उनका आश्रम गाँधी जी के लेखे पूजा के समान था श्रम । एक बार उत्साह-ग्रस्त कोई वकील साहब जब पहुँचे मिलने बापूजी पीस रहे थे तब । बापूजी ने कहा - बैठिये पीसेंगे मिलकर जब वे झिझके गाँधीजी ने कहा और खिलकर सेवा का हर काम हमारा ईश्वर है भाई बैठ गये वे दबसट में पर अक्ल नहीं आई । गान्ही जी
सिर फूटत हौ, गला कटत हौ, लहू बहत हौ, गान्ही
जी
देस बंटत हौ, जइसे हरदी धान बंटत हौ, गान्ही जी बेर बिसवतै ररूवा चिरई रोज ररत हौ, गान्ही जी तोहरे घर क' रामै मालिक सबै कहत हौ, गान्ही जी हिंसा राहजनी हौ बापू, हौ गुंडई, डकैती, हउवै देसी खाली बम बनूक हौ, कपड़ा घड़ी बिलैती, हउवै छुआछूत हौ, ऊंच नीच हौ, जात-पांत पंचइती हउवै भाय भतीया, भूल भुलइया, भाषण भीड़ भंड़इती हउवै का बतलाई कहै सुनै मे सरम लगत हौ, गान्ही जी केहुक नांही चित्त ठेकाने बरम लगत हौ, गान्ही जी अइसन तारू चटकल अबकी गरम लगत हौ, गान्ही जी गाभिन हो कि ठांठ मरकहीं भरम लगत हौ, गान्ही जी जे अललै बेइमान इहां ऊ डकरै किरिया खाला लम्बा टीका, मधुरी बानी, पंच बनावल जाला चाम सोहारी, काम सरौता, पेटैपेट घोटाला एक्को करम न छूटल लेकिन, चउचक कंठी माला नोना लगत भीत हौ सगरों गिरत परत हौ गान्ही जी हाड़ परल हौ अंगनै अंगना, मार टरत हौ गान्ही जी झगरा क' जर अनखुन खोजै जहां लहत हौ गान्ही जी खसम मार के धूम धाम से गया करत हौ गान्ही जी उहै अमीरी उहै गरीबी उहै जमाना अब्बौ हौ कब्बौ गयल न जाई जड़ से रोग पुराना अब्बौ हौ दूसर के कब्जा में आपन पानी दाना अब्बौ हौ जहां खजाना रहल हमेसा उहै खजाना अब्बौ हौ कथा कीर्तन बाहर, भीतर जुआ चलत हौ, गान्ही जी माल गलत हौ दुई नंबर क, दाल गलत हौ, गान्ही जी चाल गलत, चउपाल गलत, हर फाल गलत हौ, गान्ही जी ताल गलत, हड़ताल गलत, पड़ताल गलत हौ, गान्ही जी घूस पैरवी जोर सिफारिश झूठ नकल मक्कारी वाले देखतै देखत चार दिन में भइलैं महल अटारी वाले इनके आगे भकुआ जइसे फरसा अउर कुदारी वाले देहलैं खून पसीना देहलैं तब्बौ बहिन मतारी वाले तोहरै नाव बिकत हो सगरो मांस बिकत हौ गान्ही जी ताली पीट रहल हौ दुनिया खूब हंसत हौ गान्ही जी केहु कान भरत हौ केहू मूंग दरत हौ गान्ही जी कहई के हौ सोर धोवाइल पाप फरत हौ गान्ही जी जनता बदे जयंती बाबू नेता बदे निसाना हउवै पिछला साल हवाला वाला अगिला साल बहाना हउवै आजादी के माने खाली राजघाट तक जाना हउवै साल भरे में एक बेर बस रघुपति राघव गाना हउवै अइसन चढ़ल भवानी सीरे ना उतरत हौ गान्ही जी आग लगत हौ, धुवां उठत हौ, नाक बजत हौ गान्ही जी करिया अच्छर भंइस बराबर बेद लिखत हौ गान्ही जी एक समय क' बागड़ बिल्ला आज भगत हौ गान्ही जी
के मारल हमरा गांधी के गोली हो
के मारल हमरा गांधी के गोली हो, धमाधम तीन गो ।
कल्हीये आजादी मिलल, आज चलल गोली , गांधी बाबा मारल गइले देहली के गली हो, धमाधम तीन गो । पूजा में जात रहले बिरला भवन में, दुशमनवा बैइठल रहल पाप लिये मन में, गोलिया चला के बनल बली हो, धमाधम तीन गो । कहत रसूल, सूल सबका के दे के, कहां गइले मोर अनार के कली हो, धमाधम तीन गो । के मारल हमरा गांधी के गोली हो, धमाधम तीन गो । गाँधी के चित्र को देखकर
दुख से दूर पहुँचकर गाँधी।
सुख से मौन खड़े हो मरते-खपते इंसानों के इस भारत में तुम्हीं बड़े हो जीकर जीवन को अब जीना नहीं सुलभ है हमको मरकर जीवन को फिर जीना सहज सुलभ है तुमको
आओ बापू के अंतिम दर्शन कर लें
आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ,
चरणों में श्रद्धांजलियाँ अर्पण कर जाओ, यह रात आखिरी उनके भौतिक जीवन की, कल उसे करेंगी भस्म चिता की ज्वालाएँ। डांडी के यात्रा करने वाले चरण यही, नोआखाली के संतप्तों की शरण यही, छू इनको ही क्षिति मुक्त हुई चंपारन की, इनको चापों ने पापों के दल दहलाए। यह उदर देश की भूख जानने वाला था, जन-दुख-संकट ही इसका ही नित्य नेवाला था, इसने पीड़ा बहु बार सही अनशन प्रण की आघात गोलियाँ के ओढ़े बाएँ-दाएँ। यह छाती परिचित थी भारत की धड़कन से, यह छाती विचलित थी भारत की तड़पन से, यह तानी जहाँ, बैठी हिम्मत गोले-गन की अचरज ही है पिस्तौल इसे जो बिठलाए। इन आँखों को था बुरा देखना नहीं सहन, जो नहीं बुरा कुछ सुनते थे ये वही श्रवण, मुख यही कि जिससे कभी न निकला बुरा वचन, यह बंद-मूक जग छलछुद्रों से उकताए। यह देखो बापू की आजानु भुजाएँ हैं, उखड़े इनसे गोराशाही के पाए हैं, लाखों इनकी रक्षा-छाया-में आए हैं, ये हाथ सबल निज रक्षा में क्यों सकुचाए। यह बापू की गर्वीली, ऊँची पेशानी, बस एक हिमालय की चोटी इनकी सनी, इससे ही भारत ने अपनी भावी जानी, जिसने इनको वध करने की मन में ठानी उसने भारत की किस्मत में फेरा पानी; इस देश-जाति के हुए विधाता ही बाएँ।
--
इसके अलावा वसंत दत्तात्रेय गुर्जर की प्रसिद्द मराठी कविता "गाँधी मला भेटला" का एक अंग्रेज़ी अनुवाद आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
|
टिप्पणियाँ