कुली लाइंस से एक अंश : यह जहाज जगन्नाथ के मंदिर की तरह है

हाल ही में वाणी प्रकाशन से आई प्रवीण झा की किताब "कुली लाइंस" ख़ूब चर्चा में है. गिरमिटिया मज़दूरों के जीवन और इतिहास पर आधारित इस किताब में प्रवीण का ज़बरदस्त रीसर्च दिखता है. इधर हिंदी में जिस तरह नॉन फिक्शन किताबों की मांग बढ़ी है वह भाषा के लिए शुभ है. 

पढ़िए इसी से एक रोचक अंश 



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हर गिरमिटिया जब जहाज़ पर चढ़ता तो उसके गले में कैदियों की तरह एक नंबर-प्लेट टंगा होता, जिसे टिन-टिकटकहा जाता। यह पूरे सफर में गले पर लटका रहेगा। यही नंबर उनकी पहचान होगी।

जहाज पर चढ़ने के समय कई अलग-अलग भाव होते। कुछ उदास होते, कुछ भावहीन होते और कुछ प्रसन्न। कई लोग अंतिम समय में भी भागने के रास्ते ढूँढते, पर यहाँ महिलाओं का व्यवहार गौरतलब है।

महिलाएँ संभवत: भारत में भी त्रस्त थीं या यूं कहिए स्वतंत्र नहीं थीं। यह जहाज इनको नयी उड़ान देने वाला था। फिर भी, देश छोड़ने का दर्द तो था ही। एक बीमार महिला जहाज पर चढ़ने से पहले मना करती है कि वह जहाज पर मर जाएगी। फिर भी उसे जबरदस्ती चढ़ा दिया गया। महिलाओं की कीमत अच्छी थी, तो उन्हें कोई खोना नहीं चाहता था। पर उस महिला की भविष्यवाणी सच निकली कि वो मर जाएगी। उसने जहाज से कूद कर आत्महत्या कर ली। वहीं दूसरी तरफ एक मुनिया नाम की विधवा महिला का जिक्र आता है, जिसे गुप्त रोग के शक पर कलकत्ता में रोक लिया गया था। पर मुनिया किसी और का पास और टिकट चुराकर जहाज पर चढ़ गई। बाद में उसकी चोरी पकड़ी गई, तो उसने कहा कि उसकी बहन रामदैया जहाज पर है और उसका साथ जाना जरूरी है। उसके दृढ़ संकल्प को देखकर उसे जाने दिया गया। मुनिया संभवत: उन महिलाओं में से थी जो किसी भी हाल में भारत से मुक्ति चाहती थी।

जहाजों की संरचना अलग-अलग थी। पर आमतौर पर सभी कम से कम दोमहले जहाज थे। ऊपर की मंजिल में अधिकारी वगैरह। निचली मंजिल में गिरमिटिया। नीचे का हिस्सा पानी के अंदर होता, इसलिए हवा की आवा-जाही अच्छी नहीं थी। हर गिरमिटिया को 6 x 6 x 1.5 (कुछ जहाजों में 6 x 6 x 2) फीट की जगह मिलती, रहने-सोने के लिए। समय के साथ जहाज की इंजनों में काफी आधुनिकता आई, जगह भी बढ़ाई गयी और सफर भी बेहतर होता गया।

जब जहाज चलता और ये हिंदुस्तान की धरती छूटते देखते, कुछ पानी में छलांग लगाकर जान भी दे देते। 1882 . में चली 'पूना 1' जहाज से 15 लोगों ने कूदकर आत्महत्या की। शुरू में तो उन्हें मरने दिया गया पर बाद में ब्रिटिश सरकार की डोंगी कुछ दूर साथ जाने लगी, जो इन्हें बचाने की कोशिश करती।
फिजी के जहाज पर एक बिदेसिया लोकप्रिय था,
 "जियरा डराए घाट क्यूँ नही आए हो, बीते दिन कई भए मास रे बिदेसिया;
आई घाट देखी फिजीया के टपूआ हो, भया मन उदास रे बिदेसिया।"
जहाज पर फिर से जाति वाला मुद्दा उठे, इसलिए सवर्णों को अक्सर भंडारी या खानसामे का काम मिलता। दलित सवर्णों का बनाया भोजन भगवान का प्रसाद समझकर खाते। जहाज पर कार्यों का एक जिक्र तोताराम सानिढ्य अपनी किताब में करते हैं। वहाँ इन गिरमिटियों को कार्य चुनने कहा गया। कई लोगों नें टोपसकी लिस्ट में अपना नाम लिखवा लिया। उन्हें टोपसका अर्थ पता नहीं था, सोचा कुछ आसान सा कार्य होगा। यह कार्य शौचालयों का मल ढोने का था, और जब लोगों ने आना-कानी की, उनसे जबरदस्ती मल ढुलवाया गया।

जहाज पर ही सबके 'स्किल' (कौशल) की नुमाइश शुरू होती। जो नेता दिखते, उन्हें सरदार बनाया जाता। ये खासकर वो लोग भी थे जो सचमुच भागकर आए थे, अपनी मर्जी से। ये खुश थे, और इसलिए अंग्रेजों की चापलूसी भी करते।

सवर्ण और दलित का भेद कभी-कभार जहाज पर नजर ही जाता। 1887 . के फॉय्ल जहाज में पोदरथ सिंह के नेतृत्व में कुछ क्षत्रियों ने बस इसलिए जहाज से कूद कर अपनी जान दे दी, क्योंकि उन्हें किसी दलित ने छू दिया था। कई मुस्लिमों को इस बात से आपत्ति थी कि हिंदू खानसामा खाना बनाए। 1891 . में जमैका जा रही जहाज जुरापर बीस मुस्लिमों ने भेड़ का मांस फेंक दिया क्योंकि वह हिंदू ने बनाया था। उन्हें हलाल मांस ही चाहिए था, जो हिंदू नहीं बनाते। जाति-भेद नहीं था, किंतु लिंग-भेद था। पुरूष-महिला के अलग खाने की पंक्तियाँ और अलग सोने का इंतजाम होता।

जहाज पर भोजन के संबंध में मशहूर भाषाविद् और प्रशासनिक अधिकारी जॉर्ज ग्रियर्सन ने लिखा,

"जहाज पर व्यक्ति कुछ भी खा सकता है। यह जहाज जगन्नाथ के मंदिर की तरह है, जहाँ कोई भेद-भाव नहीं।"

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पेशे से डॉक्टर और मूड से मनमौजी प्रवीण की संगीत पर एक और किताब जल्द ही आने वाली है. इनकी कुछ और किताबें यहाँ से हासिल की जा सकती हैं. 

टिप्पणियाँ

Nitish Tiwary ने कहा…
किताब के अंश अच्छे हैं।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बच्चों का बचपना गुम न होने दें : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
Anita ने कहा…
रोचक अंश..बधाई !
वाणी गीत ने कहा…
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सामाजिक असुरक्षा के साये में कल्याणकारी योजनाओं का लाभ क्या“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Onkar ने कहा…
सजीव वर्णन

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