मत करना विश्वास
मत करना विश्वास
अगर रात के मायावी अन्धकार में
उत्तेजना से थरथराते होठों से
किसी जादुई भाषा में कहूं
सिर्फ़ तुम्हारा हूँ मैं
मत करना विश्वास
अगर सफलता के श्रेष्ठतम पुरस्कार को
फूलों की तरह गूँथते हुए तुम्हारे जूडे मे
उत्साह से लडखडाती हुई भाषा में कहूं
सब तुम्हारा ही तो है!
मत करना विश्वास
अगर लौट कर किसी लम्बी यात्रा से
बेतहाशा चूमते हुए तुम्हे
एक परिचित सी भाषा में कहूं
सिर्फ़ तुम आती रही स्वप्न में हर रात
हालांकि सच है यह
कि विश्वास ही तो था वह तिनका
कि विश्वास ही तो था वह तिनका
जिसके सहारे पार किए हमने
दुःख और अभावों के अनंत महासागर
लेकिन फ़िर भी पूछती रहना गाहे बगाहे
किसका फ़ोन था कि मुस्करा रहे थे इस क़दर ?
पलटती रहना यूं ही कभी कभार मेरी पासबुक
करती रहना दाल में नमक जितना अविश्वास!
हंसो मत
ज़रूरी है यह
विश्वास करो
तुम्हे खोना नही चाहता मैं
टिप्पणियाँ
सिर्फ़ तुम आती रही स्वप्न में हर रात
... कुछ अलग व प्रभावशाली है।
is baar to gazab kar diya aapne .. jabardasht poem , mera salaam kabul karo yaar... kya gahrai hai .. wah ji wah ...
maza aa gaya .... do baar pad chuka hoon ...
kudos dear
vijay kumar sapatti
(mail par prapt)
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युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
आप सबका उत्साह सँवर्धन मेरा प्रेरणास्रोत बनेगा।
usi ki tarah sugandhit hai,
sochta hoon apne rishte me bhi
kuchh kante hote to achha hota.
aapki rachna padhkar ruk nahin saka ye panktiyan likhne se.
jadui bhasha me nahi hakikat me pukaro wah naam jise vishvash dilana chahte ho.
achchhi hai.