मुहब्बत, रतजगे , आवारागर्दी
(मदन मोहन दानिश इस दौर के बेहद ज़रूरी शायर हैं। उनसे और अतुल अजनबी से हम शहर वालों को ढेरों उम्मीदे हैं और दोनों ही अब तक इस पर खरे उतारे हैं। पिछली बार कुमार विनोद साहब की गज़लें पेश करने के बाद तय किया की इनका भी आपसे परिचय कराया जाय...हालांकि ये परिचय के मुहताज नहीं। ये ग़ज़लें उनके संकलन 'अगर ' से )
(एक )
आप चलते अगर सलीक़े से
तय न होता सफ़र सलीक़े से
बाख़बर हमपे रश्क करने लगे
यूं रहे बेख़बर सलीके से
आबरू रह गयी फ़साने की
कर दिया मुख़्तसर सलीक़े से
बांध लेता है वो नज़र अक्सर
उसपे रखिये नज़र सलीक़े से
दिल न टूटे ग़रीब का दानिश
दीजियेगा ख़बर सलीक़े से
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(दो )
इश्क़ की मंज़िल को पाने के लिये
प्यार को कुछ कर गुज़रना चाहिये
मानता है कौन अब ये मश्वरा
वक़्त से हर वक़्त डरना चाहिये
शेर कहने के लिये दानिश मियां
रोज़ जीना, रोज़ मरना चाहिये
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और मेरा एक प्रिय शेर
मुहब्बत, रतजगे , आवारागर्दी
ज़रूरी काम सारे हो रहे हैं!
टिप्पणियाँ
उलीच दिया है
सब कुछ मगर सलीके से।
कर दिया मुख़्तसर सलीक़े से
बांध लेता है वो नज़र अक्सर
उसपे रखिये नज़र सलीक़े से
मुहब्बत, रतजगे , आवारागर्दी
ज़रूरी काम सारे हो रहे हैं!
bahut badhiya...sab ek se ek.badhkar..shukriya padhvane ka
ज़रूरी काम सारे हो रहे हैं!
aap ki pasand aul shayar ke bhav dono man bhaye
रोज़ जीना, रोज़ मरना चाहिये
सहमत... सहमत.. सहमत... सबसे उम्दा शेर....
मुहब्बत, रतजगे , आवारागर्दी
ज़रूरी काम सारे हो रहे हैं!
ये तो हम भी कर रहे हैं... कई सालों से... और ऊबे भी नहीं...
तुम्हारे लफ़्ज़ों की आवारगी में खो गए हैं...
कर दिया मुख़्तसर सलीक़े से
बढिया।
इनकी कुछ गज़लें मेरे ब्लाग के लिये संक्षिप्त परिचय व सम्पर्क के साथ भिजवा सकें तो आपका आभार होगा।
क्या कहने