अरुणा राय की कवितायें


पिछले दिनों जनपक्ष पर अतिव्यस्त रहने के कारण यहां कुछ नया नहीं लगा सका। पिछली कविता पर जो आपलोगों का प्रतिसाद मिला वह अभिभूत करने वाला था-- आभार। इस बार प्रस्तुत हैं युवा कवियित्री अरुणा राय की कवितायें।)








जीवन अभी चलेगा

धूल-धुएं के गुबार...
और भीडभरी सडक..
के शोर-शराबे के बीच/
जब चार हथेलियां
मिलीं/
और दो जोड़ी आंखें
चमकीं
तो पेड़ के पीछे से
छुपकर झांकता/
सोलहवीं का चांद
अवाक रह गया/
और तारों की टिमटिमाती रौशनियां
फुसफुसायीं
कि सारी जद्दोजहद के बीच
जीवन
अभी चलेगा !




अगले मौसमों के लिए

अगले मौसमों के लिए
सार्वजनिक तौर पर
कम ही मिलते हम
भाषा के एक छोर पर
बहुत कम बोलते हुए
अक्सर
बगलें झाँकते
भाषा के तंतुओं से
एक दूसरे को टटोलते
दूरी का व्यवहार दिखाते
क्षण भर को छूते नोंक भर
एक-दूसरे को और
पा जाते संपूर्ण

हमारे उसके बीच समय
एक समुद्र-सा होता
असंभव दूरियों के
स्वप्निल क्षणों में जिसे
उड़ते बादलों से
पार कर जाते हम
धीरे धीरे
अगले मौसमों के लिए
अलविदा कहते हुए


यह प्यार

आखिर क्यों है यह प्यार
कितना भयानक है प्यार
हमें असहाय और अकेला बनाता
हमारे हृदय पटों को खोलता
बेशुमार दुनियावी हमलों के मुकाबिल
खड़ा कर देता हुआ निहत्था
कि आपके अंतर में प्रवेश कर
उथल पुथल मचा दे कोई भी अनजाना
और एक निकम्मे प्रतिरोध के बाद
चूक जाएं आप
कि आप ही की तरह का एक मानुष
महामानव बनने को हो आता
आपको विराट बनाता हुआ
वह आपसे कुछ मांगता नहीं
पर आप हो आते तत्पर सबकुछ देने को उसे
दुहराते कुछ आदिम व्यवहार
मसलन ...
आलिंगन
चुंबन
सीत्कार


बंधक बनाते एक दूसरे को
डूबते चले जाते
एक धुधलके में
हंसते या रोते हुए
दुहराते
कि नहीं मरता है प्यार
कल्पना से यथार्थ में आता
प्यार
दिलो दिमाग को
त्रस्त करता
अंततः जकड लेता है
आत्मा को
और खुद को मारते हुए
उस अकाट्य से दर्द को
अमर कर जाते हैं हम...



ई-मेल-arunarai2010@gmail.com

टिप्पणियाँ

सागर ने कहा…
अरुणा जी ने शुरूआती दिनों से ही बहुत प्रभावित किया है मुझे.... वो ऑरकुट पर मेरी मित्र थी... उनका इश्क-ए-हकीकी ब्लॉग था जिस पर उन्होंने कुछ बेहद खुबसुरत प्रेम कवितायेँ लिखी थी... कुछ महीने पहले उनका लिखा कारवां पर भी पढ़ा... पुलिस सेवा में कार्यरत अरुणा की लेखनी किसी मेडल से कम नहीं.

यहाँ के लिए शुक्रिया...
neera ने कहा…
बहुत दिनों बाद सुंदर प्रेम कवितायें पढ़ी... एक से बढ़ कर एक!... लाजवाब!... हर पढ़ने वाला यही सोचेगा यह मैंने क्यों नहीं लिखी? :-)
अरुणा जी को बधाई और असुविधा का शुक्रिया....
बढ़िया कविताएँ. उम्मीद से भरी हुईं. प्रेम का आत्मिक एकांत मौजूद है इनमें, जहाँ चीज़ें अपने ही खून के दरिया में नहाकर घुल-मिल गयीं सी लगती हैं.
Vinay ने कहा…
बहुत सुन्दर कल्पना और कृति
शरद कोकास ने कहा…
अनुभव से उपजी हुई कवितायें किसी भी शिल्प में हों मोहक लगती हैं , लेकिन इससे आगे सायास यह अर्जित करना होता है ।
कविताएं पठनीय हैं..
वाकई...बेहतर युवा कविताएं...
बेनामी ने कहा…
अरुणा की एक कविता और पेश है, आशा है आप सब कॊ पसन्द आएगी -- अनिल जनविजय

जो मिरा इक महबूब है। मत पूछिए क्या खूब है
आँखें उसकी काली हँसी, दो डग चले बस डूब है
पकड उसकी सख्त है। पर छूना उसका दूब है
हैं पांव उसके चंचल बहुत, रूकें तो पाहन बाखूब हैं

जो मिरा इक महबूब है मत पूछिए क्या खूब है
बोधिसत्व ने कहा…
क्या कहने....अति सुंदर....
rashmi ravija ने कहा…
नीरा जी से सहमत.....बहुत दिनों बाद इतनी सुन्दर प्रेम कविताएँ पढने को मिलीं.
शुक्रिया ,अरुणा जी की इतनी मोहक कविताएँ पढवाने का.
प्रदीप कांत ने कहा…
जीवन अभी चलेगा

बिल्कुल चलेगा ...
AWAJ Pratibha Chauhan ने कहा…
आपकी कविताएं मैं पहली बार पढ़ रहा हूँ,बहुत अच्छी कविताएं हैं।
AWAJ Pratibha Chauhan ने कहा…
apki rachnayen pahli bar pad rha hun. sunder kavitayen.

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