तौलिया, अर्शिया, कानपुर
मेरे सामने जो तौलिया टंगा है
अर्शिया लिखा है उस पर और कानपुर
न कानपुर को जानता हूं मैं
न किसी अर्शिया को जानता हूं जानने की तरह
वे कविताओं में आती हैं जैसे कभी-कभार
ज़िंदगी में भी अक्सर नितांत अपरिचित की ही तरह
जिस इकलौती परिचित सी लड़की का नाम था उसके सबसे करीब
कालेज़ के दिनों में थी वह मेरे साथ
प्रणय निवेदन के जवाब में कहा था उसने
‘बहुत ख़तरनाक हैं मेरे ख़ानदान वाले
कभी नहीं होने देंगे हमारी शादी
हो भी गयी तो मार डालेंगे हमें ढ़ूंढ़कर’
मैं बस चौंका था यह सुनकर
शादी तब थी भी नहीं मेरी योजनाओं में
और अख़बारों में इज़्जत और हत्या इतने साथ-साथ नहीं आते थे…
उन दिनों तौलिये एक कहानी थी किसी कोर्स की किताब की
जिससे शिक्षा मिलती थी
कि परिवार में हरेक के पास होनी ही चाहिये अपनी तौलिया
मुझे नहीं याद कि उस कहानी के आस-पास था किसी तौलिये का विज्ञापन
यह भी नहीं कि क्या थी उन दिनों तौलिये की क़ीमत
आज सबसे सस्ता तौलिया बीस रुपये का मिलता है
और रोज़ बीस रुपये से कम में ही पेट भर लेते हैं
सबसे देशभक्त सत्तर फीसदी लोग
उनके बच्चे यक़ीनन नहीं पढ़ेंगे वह कहानी
कानपुर तक जाता रहा हूं तमाम रास्तों से
भगत सिंह के पीछे-पीछे
शिवप्रसाद मिश्र[1] की रोमांच कथाओं सी स्मृतियों के रास्ते
कमाने गये रिश्तेदारों की कहानियां जोड़ती-घटाती रही इसमें बहुत कुछ
सींखचों के पीछे क़ैद सीमा आज़ाद[2] की रिपोर्ट
थी आख़िरी मुलाकात उस शहर के साथ मेरी
जिसमें कथा थी उसके धीरे-धीरे मरते जाने की
और नाम था हत्यारों का
पता नहीं उनके आरोप पत्र में
शामिल था भी कि नहीं यह अपराध
ख़ैर
अरसा हुआ दंगे नहीं हुए कानपुर में
तो ठीक ही होगी जो भी है अर्शिया
बशर्ते सावधान रही हो वह भी प्रणय निवेदनों से
टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर . कविता.
सत्य .
बशर्ते सावधान रही हो वह भी प्रणय निवेदनों से
बहुत कुछ कह दिया..एक तौलिये को जरिया बना
ग़मगीन कर गयी ये कविता....
एक टिप्पणी तो मैं चिट्ठा चर्चा पर कर चुका हूँ, लेकिन "असुविधा" जो हमारे जीवन एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी है उससे गुजरे बिना रहा नही गया।
बहुत कुछ याद......... दिलाती कविता।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बशर्ते सावधान रही हो वह भी प्रणय निवेदनों से
झक्झोरती कविता
बशर्ते सावधान रही हो वह भी प्रणय निवेदनों से
बहुत सुन्दर कविता
इसी विषय पर अपनी एक प्रस्तुति आपको पढवा रही हूँ
" प्रपंच "
"दर्द की दीवार हैं,
सुधियों के रौशनदान.
वेदना के द्वार पर,
सिसकी के बंदनवार.
स्मृतियों के स्वस्तिक रचे हैं.
अश्रु के गणेश.
आज मेरे गेह आना,
इक प्रसंग है विशेष.
द्वेष के मलिन टाट पर,
दंभ की पंगत सजेगी.
अहम् के हवन कुन्ड में,
आशा की आहुति जलेगी.
दूर बैठ तुम सब यहाँ
गाना अमंगल गीत,
यातना और टीस की,
जब होगी यहाँ पर प्रीत.
पोर पोर पुरवाई पहुंचाएगी पीर.
होंगे बलिदान यहाँ इक राँझा औ हीर.
खाप पंचायत बदलेगी,
आज दो माँओं की तकदीर."
'